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संगीतकार गुलाम हैदर की भविष्यवाणी सच साबित हुई

संगीतकार गुलाम हैदर की भविष्यवाणी सच साबित हुई

लता ने कैसे कई पीढ़ियों, कलाकारों, संगीतकारों को प्रभावित किया, जानिए इस महत्वपूर्ण लेख से।

लता मंगेशकर ने लगभग एक सदी तक भारतीय उपमहाद्वीप में कलाकारों की अनगिनत पीढ़ियों को प्रभावित किया। तारीफ के अन्य विशेषणों के बीच यह कहना हास्यास्पद होगा कि लता मंगेशकर प्रतिभाशाली थीं। सिर्फ इसलिए कि वह लता मंगेशकर थीं - मोजार्ट, बाख या बीथोवेन की तरह, लता मंगेशकर उत्कृष्टता का एक उपनाम हैं। आने वाले दशकों तक यह नाम अमिट रहेगा।  उनकी प्रतिभा हर गीत के साथ उनके संबंध बताती थी, एक ऐसा कनेक्शन जो उनके श्रोताओं को भी बांधे रखता था। गीत-संगीत अनिवार्य रूप से सबसे अच्छा तब बन जाता था, जब उसमें लता की आवाज घुल जाती थी। एक कलाकार इतना विशिष्ट और असंभव रूप से विपुल, कैसे हो सकता है, लता के गायन और जिन्दगी इसे बयान करती है। 

लता मंगेशकर ने हमें 30,000 से अधिक गाने देने के अलावा बहुत कुछ दिया। संगीत औऱ गायन में अनुशासन और धैर्य के साथ ही प्रतिभा का संगम काम करता है। उन्होंने भारत और पाकिस्तान में जो एक आम राय कायम की वो थी उनकी आवाज की उत्कृष्टता। चाहे वह लाहौर से ऑल इंडिया रेडियो पर आए एक पत्र की प्रसिद्ध कहानी हो, जिसमें कहा गया था कि भारत कश्मीर ले ले लेकिन वो लता मंगेशकर को पाकिस्तान को दे दे ।

सरहद के उस पार उनके चाहने वालों की कहानियां बिखरी हुई हैं। उनमें से कुछ वरिष्ठ शास्त्रीय संगीतकार, जिन्होंने उन्हें भारत-पाकिस्तान विभाजन की सबसे बड़ी क्षति बताया था। लता की आवाज के जादू ने दोनों देशों के अवाम और कलाकारों के बीच एक खास रिश्ता बना रखा था।

नूरजहां जैसी प्रतिष्ठित गायिका ने सफल गायिका के रूप में अपनी पहचान बनाने से पहले लता का उनका अनुसरण किया। नूरजहां ने एक इंटरव्यू में एक बार उनके बारे में कहा था, “लोग कहते हैं कि वह मेरी तारीफ करती हैं। पर लता तो लता है। मेरी नज़र में लताजी की तरह कोई आज तक पैदा नहीं हुआ।”

लता ने संगीत की पूर्णता का एक स्तर हासिल किया जो हिंदी फिल्म संगीत में बेजोड़ है। मरहूम उस्ताद बड़े गुलाम अली खान की ये लाइन इतिहास में दर्ज हैं, जब एक बार उन्होंने इंटरव्यू में कहा था - 

कम्बखत गलती से भी बेसुरा नहीं गाती।


- मरहूम उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब, एक इंटरव्यू में लता के लिए

लता मंगेशकर के पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर ग्वालियर घराने के संगीतकार थे, जो एक ड्रामा कंपनी चलाते थे और लता के पहले गुरु थे। लता सिर्फ एक दिन के लिए स्कूल गई थीं। वह लगभग पाँच वर्ष की थी और अपनी बहन आशा (भोसले) को अपने साथ ले गईं। लेकिन स्कूल इतने छोटे बच्चे को अपने साथ क्लास में नहीं बैठने दे रहा था। फिर उन्होंने कभी स्कूल वापस नहीं जाने का फैसला किया।

 - Satya Hindi

लता मंगेशकर के कुछ यादगार फोटो

घर पर, वह अपने पिता को संगीत सीखने वाले छात्रों को पढ़ाते हुए सुनती थीं और उन टुकड़ों को याद कर लेती थीं। एक दिन उनके पिता ने उनके रूप में अपनी छात्रा को कुछ सुर सुधारते हुए देखा तो चकित रह गये कि बच्चे ने कितनी चतुराई से याद किया है। उन्होंने लता को शास्त्रीय संगीत की गुत्थियां सिखाने का फैसला किया। लेकिन उनकी असामयिक मृत्यु ने परिवार की सबसे बड़ी संतान लता को 13 साल की उम्र में काम शुरू करने के लिए मजबूर किया।

उनके परिवार के करीबी दोस्त और नवयुग चित्रपट फिल्म कंपनी के मालिक मास्टर विनायक ने मंगेशकर परिवार की देखभाल की और लता को गायिका बनने में मदद की। उनका पहला गाना वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म किटी हसाल के लिए था, लेकिन इससे कोई नाम नहीं मिला। 1945 में मुंबई जाने से पहले उन्होंने कुछ मराठी फिल्मों के लिए गाने गाए।

यहीं पर उन्होंने भिंडी बाजार घराने के उस्ताद अमन अली खान के नेतृत्व में गायन की ट्रेनिंग शुरू की। विनायक ने लता मंगेशकर को संगीतकार वसंत देसाई से भी मिलवाया। लेकिन देसाई का भी, 1948 में निधन हो गया। इसके बाद संगीतकार गुलाम हैदर थे, जिन्होंने लता मंगेशकर को अपने संरक्षण में ले लिया, और उन्हें फिल्म निर्माता ससाधर मुखर्जी से मिलवाया, जिन्होंने उस समय यानी 1948 के आसपास फिल्मिस्तान स्टूडियो की स्थापना की थी। लेकिन लता मंगेशकर को मुखर्जी ने खारिज कर दिया, जिन्होंने सोचा कि उनकी आवाज बहुत पतली है। इस बात से गुलाम हैदर मुखर्जी से नाराज़ हो गए। तब गुलाम हैदर ने एक पेशीनगोई उस समय की - 

संगीतकार एक दिन लता से गाना गाने की भीख माँगेंगे।


स्व. गुलाम हैदर, संगीतकार, जिन्होंने बॉलीवुड में लता को स्थापित किया

गुलाम हैदर ने लता मंगेशकर को अपना पहला महत्वपूर्ण ब्रेक दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का न छोड़ा गाने से दिया। हालांकि कि यह गीत थोड़ा नूरजहां की शैली की नकल की तरह लगता था। लेकिन कुछ ही वर्षों में, लता मंगेशकर अलग तरह से अपनी शैली में गाने लगीं। वही पतली लेकिन परिपक्व आवाज, जिसने आने वाले वर्षों में संगीतकार गुलाम हैदर की पेशीनगोई को सच कर दिया।

जल्द ही, 'आयेगा आनेवाला', 'महल' (1949) के गानों की धूम मच गई। इस गाने ने देश की सांसें रोक लीं और आने वाले दशकों में भारतीय फिल्म उद्योग में उनके वर्चस्व पर मुहर लगा दी, जिसका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। गाने ने रेडियो सिलोन में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए क्योंकि लोगों ने गायिका का नाम पूछने के लिए रेडियो सिलोन के दफ्तर में खतों की बाढ़ आ गई। ग्रामोफोन कंपनी ने नाम गुप्त रखा यानी नाम बदल दिया लेकिन हर संगीतकार ने इस गाने का नोटिस लिया। लता मंगेशकर छा चुकी थीं।

मुग़ल-ए-आज़म (1960) का गाना प्यार किया तो डरना क्या या साहिर लुधियानवी का लिखा भजन अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम (हम दोनों) या पिया तोसे नैना लागे (गाइड, 1965) ने लता के नाम को हर भारतवासी की जबान पर ला दिया। लता मंगेशकर के प्रति कृतज्ञता की भावना तब बढ़ी जब उन्होंने सी. रामचंद्र की धुन पर कवि प्रदीप का 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया। भारत-चीन युद्ध के समय राष्ट्र की सामूहिक चेतना जाग उठी। इस गाने पर देश ही नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरू भी रोए।

संगीतकार नौशाद, अनिल बिस्वास, एसडी बर्मन, शंकर जयकिशन, सी रामचंद्र, सलिल चौधरी, हेमंत कुमार, रोशन, मदन मोहन, खय्याम, जयदेव और रवि के साथ उनकी कुछ सबसे सफल फिल्में थीं।

आशा भोसले से विवादहालांकि लता मंगेशकर जैसे-जैसे सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गईं, एक-एक गीत, प्रतिद्वंद्विता और उनके अहंकार के बारे में कहानियां भी सामने आईं। खासकर उनकी बहन और दिग्गज गायिका आशा भोंसले के साथ। यह तथ्य है कि आशा के पति संगीतकार ओपी नैयर ने लता मंगेशकर को उनके लिए गाने के लिए कभी नहीं कहा। 1984 में मशहूर रेडियो प्रेजेंटर (तब आरजे यानी रेडियो जॉकी मशहूर नहीं था) अमीन सयानी के साथ एक रेडियो इंटरव्यू में, जिसका शीर्षक 'लता से डरते डरते' है, लता मंगेशकर ने कहा था कि आशा 14 साल की उम्र में गणपतराव भोसले से शादी करने के लिए घर से भाग गई थी और परिवार दुखी था। लता ने कभी कहा था -  

आशा मेरी बहन है और हमारे पास बहुत अलग स्टाइल हैं। उसे उसके गीतों का हिस्सा और उसका उचित हिस्सा मिलता है। प्रतिद्वंद्विता का कोई सवाल ही नहीं है... जहां तक ​​नैय्यर साहब का सवाल है...मैं कुछ नहीं कहना चाहती।


- लता मंगेशकर, स्व. अमीन सायनी के साथ इंटरव्यू में रेडियो सिलोन पर

लता-रफी विवादमशहूर गायक और लता की तरह प्रसिद्धि पाने वाले मोहम्मद रफ़ी के साथ भी उनका रॉयल्टी विवाद हुआ था। हांलाकि दोनों ने अधिकांश प्रसिद्ध युगल गीत गाए। यह तर्क रॉयल्टी के मुद्दे पर था। लता मंगेशकर रिकॉर्ड कंपनी से अपने गीतों के लिए रॉयल्टी चाहती थीं, रफ़ी का मानना ​​​​था कि एक बार गीत गाया गया और गायक ने इसके लिए पैसा लिया, अब यह गायक की संपत्ति नहीं है। 

रॉयल्टी पर विवाद बढ़ने की वजह से 1963-1967 के बीच लता और रफी ने साथ में गाना नहीं गाया।

लता मंगेशकर ने मधुबाला और वहीदा रहमान से लेकर काजोल और माधुरी दीक्षित तक कई अभिनेत्रियों के लिए आवाज दी। उन्होंने 1990 और 21वीं सदी के कुछ हिस्से और यारा सीली-सीली (फिल्म लेकिन 1990), माई नी माई (हम आपके हैं कौन 1994), जिया जले (दिल से, 1998), जैसे गाने गाए। मेरे ख्वाबो में जो आए (दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे, 1994) इस बात का प्रमाण थे कि युवा अभिनेत्रियों के लिए आवाज के मामले में एक निश्चित उम्र का होना जरूरी नहीं था। लता मंगेशकर ने लगभग सभी के लिए गाया। उनकी अंतिम लोकप्रिय फिल्म वीर ज़ारा (2004) थी, जहाँ संगीतकार मदन मोहन की पुरानी धुनों को पुनर्जीवित किया गया था, और रंग दे बसंती (2006) में मार्मिक लुक्का छुप्पी वाला गाना कैसे भुलाया जा सकता है। वीर जारा के गाने भारत से ज्यादा पाकिस्तान में सुने जाते हैं। कई सम्मानों के बीच, उन्हें 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार और 2001 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

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