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मुंबई: कोरोना से मौत पर मुसलिम व्यक्ति को दफनाने नहीं दिया तो दाह संस्कार हुआ

मुंबई: कोरोना से मौत पर मुसलिम व्यक्ति को दफनाने नहीं दिया तो दाह संस्कार हुआ

जिस महाराष्ट्र के मुंबई में दो दिन पहले कोरोना से मरने वाले लोगों के दफनाने पर विवाद हुआ था वहीं अब मुसलिम व्यक्ति की मौत कब्रिस्तान में दफनाने नहीं दिया गया तो दाह संस्कार करना पड़ा।

जिस महाराष्ट्र के मुंबई में दो दिन पहले कोरोना से मरने वाले लोगों के दफनाने पर विवाद हुआ था वहीं अब मुसलिम व्यक्ति की मौत के बाद कब्रिस्तान में दफनाने नहीं दिया गया तो दाह संस्कार करना पड़ा। यह मामला बुधवार को मुंबई के मलाड क्षेत्र में हुआ। मृतक मुंबई के मलाड क्षेत्र में मलवानी के कलेक्टर कंपाउंड के रहने वाले थे।

दरअसल, मृतक के परिवार वालों का आरोप है कि जब हॉस्पिटल से शव को वे मलाड मलवानी कब्रिस्तान में ले गए तो उसके ट्रस्टियों ने इसलिए दफनाने से इनकार कर दिया क्योंकि वह कोरोना पॉजिटिव थे। 'एनडीटीवी' की रिपोर्ट में कहा गया है कि परिजनों का कहना है, 'ऐसा तब है जब स्थानीय निकाय के अधिकारियों ने दफनाने की अनुमति दी थी।' रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि स्थानीय पुलिस और राजनेताओं ने भी मामले में हस्तक्षेप किया और ट्रस्टियों से दफनाने के लिए आग्रह किया, लेकिन वे नहीं माने। 

किसी मुसलिम के दाह संस्कार किए जाने का यह मामला तब आया है जब तीन दिन पहले ही कोरोना से मरने वालों को दफनाने को लेकर बीएमसी के एक आदेश पर विवाद हो गया था। उस आदेश में कहा गया था कि कोरोना से मरने वाला चाहे किसी भी धर्म का हो सभी का दाह संस्कार किया जाएगा यानी किसी को भी दफनाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। आदेश में यह भी कहा गया था, 'यदि कोई दफनाने पर ही ज़ोर देता है तो उन्हें इसकी इजाज़त तभी दी जाएगी जब पार्थिव शरीर को मुंबई क्षेत्र के बाहर ले जाया जाता है।'

लेकिन इसका इतना विरोध हुआ कि कुछ ही घंटे में इस आदेश को वापस ले लिया गया था और नया आदेश जारी किया गया। नये आदेश में बीएमसी ने कहा कि शवों को शहर में ही दफनाया जा सकता है यदि कब्रिस्तान काफ़ी बड़ा हो। आदेश में यह भी कहा गया है कि शव को छूने की धार्मिक प्रथा का पालन करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। अंतिम संस्कार में पाँच लोगों से ज़्यादा लोगों को नहीं जाने दिया जाएगा।

इस विवाद के बाद आए मुसलिम व्यक्ति के दाह संस्कार को लेकर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और मालवानी के विधायक असलम शेख ने 'पीटीआई' से कहा, 'सरकारी दिशा-निर्देश के अनुसार, कोरोना पीड़ित मुसलिम को मृतक के घर से सबसे नज़दीक के कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा। लेकिन इस मामले में परिवार वाले शव को सीधे मलाड मालवानी कब्रिस्तान में ले गए। उन्होंने कब्रिस्तान के ट्रस्टी सहित किसी को भी जानकारी नहीं दी और दफनाने की माँग की।'

शेख ने कहा कि सरकारी निर्देश को जानते हुए भी शव को कब्रिस्तान लाने वाले निकाय के स्टाफ़ के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक दिन पहले ही कोरोना से मरे एक व्यक्ति को कब्रिस्तान में दफनाया गया था। 

इधर 'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार मृतक के बेटे ने कहा है कि हॉस्पिटल में मृत घोषित किए जाने के बाद कोई भी सहायता के लिए आगे नहीं आया और वह तीन घंटे से ज़्यादा समय तक शव के पास बैठे इंतज़ार करते रहे। उन्होंने कहा, 'हम मलाड मलवानी कब्रिस्तान में दफनाना चाहते थे। लेकिन जब हम वहाँ पहुँचे तो कब्रिस्तान के ट्रस्टियों ने कोरोना पीड़ित होने के कारण ऐसा करने से इनकार कर दिया।'

उन्होंने कहा कि पुलिस और दूसरे अधिकारियों के दखल देने के बाद हिंदू श्मशान भूमि में शव का दाह संस्कार किया गया।

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