शिवराज और मोदी की फोटो लेकर 42 किलोमीटर पैदल क्यों चले बच्चे?
मामला शिवपुरी ज़िले की पोहरी नगर परिषद के सिरसौद गांव का है। इस गांव के कुछ गरीब बच्चों और उनके परिजनों ने अपनी बात ज़िले के कलेक्टर तक पहुंचाने के लिए 42 किलोमीटर की पदयात्रा की। हाथों में बैनर थामे बच्चों का जत्था हाईवे पर लोगों का ध्यान खींचता रहा। बैनर में एक तरफ़ आंखों पर काली पट्टी वाला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का फोटो था और दूसरी तरफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फ़ोटो लगा था।
अपने परिजनों के साथ पैदल निकल पड़े बच्चों और उनके परिजनों ने आरोप लगाया गांव में राइट टू एजुकेशन के तहत दाख़िला करने वाला प्राइवेट स्कूल गरीब बच्चों पर अब 10 हज़ार रूपया फ़ीस चार्ज कर रहा है। फ़ीस न दे पाने वाले बच्चों को परीक्षा से वंचित कर उनका साल तक बर्बाद कर दिया गया है।
विभाग से लेकर पुलिस और सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।स्कूल प्रबंधन की कथित दादागिरी की शिकायत अब रुबरू मिलकर डीएम से करने और सोई हुई सरकार को जगाने जा रहे हैं।
गाँव के निवासी बृजेश लोधी ने बताया, “उनके बेटे ऋतुराज और बेटी कृतिका का सिरसौद के प्रायवेट स्कूल में दाख़िला आरटीई (राइट टू एजुकेशन) के तहत हुआ था। अब स्कूल संचालक 10 हजार रुपए की मांग कर रहे हैं। इसकी शिकायत अनेक स्तरों पर कर चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।”
दिनेश लोधी ने कहा, “मेरी बेटी का दाखिला आरटीई के तहत रेनबो पब्लिक स्कूल में हुआ था। इसके बावजूद हर साल फीस बढ़ाकर ली जा रही है।” एक अन्य अभिभावक ने बताया कि फीस नहीं देने पर स्कूल संचालक ने बच्चों को पढ़ाने से मना कर दिया। अभिभावक ममता का कहना है, “मेरा बच्चा सातवीं कक्षा से पास होकर आठवीं में पहुंचा है, वह आरटीई के तहत पढ़ रहा है। फीस जमा नहीं करने पर उसे स्कूल से भगा दिया गया।”
सिर्फ दो बच्चों को मना कियाः स्कूल प्रबंधन
स्कूल संचालक श्याम सिंह सोलंकी ने मीडिया से कहा, “ब्रजेश लोधी का व्यवहार ठीक नहीं है। वह दिसंबर से हमारे खिलाफ फिजूल शिकायतें कर रहा है। हमने केवल उसी के बच्चों को पत्र लिखकर पढ़ाने के लिए मना किया है और किसी बच्चे को हमने यहां से नहीं भगाया।” उन्होंने कहा, “ब्रजेश माहौल बनाने के लिए अन्य ऐसे पेरेंट्स को भी इकट्ठा कर ले गया, जिनके बच्चे लगातार स्कूल आ रहे हैं। हम स्कूल की रिकॉर्डिंग के वीडियो दिखा सकते हैं।”
मामले के तूल पकड़ने के बाद शिक्षा विभाग के अफ़सर ने स्वीकारा, “आरटीई के तहत पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों ने जनसुनवाई में पहुंचकर स्कूल संचालक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। बच्चों ने बताया कि आरटीई के तहत एडमिशन होने के बावजूद फीस मांगी जा रही है। इस मामले की जांच कराई जाएगी। अगर बच्चों का आरटीई के तहत दाखिला हुआ है तो हर हाल में स्कूल प्रबंधन को बच्चों को निशुल्क पढ़ाना होगा। जांच में स्कूल प्रबंधन दोषी पाया गया तो उस पर कार्रवाई भी की जाएगी।”
क्या है राइट टू एजुकेशन एक्ट
भारत में 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षा का अधिकार क़ानून 2009 में बनाया गया। शिक्षा के अधिकार का यह अधिनियम 2009, देश के बच्चों को अनिवार्य/जरुरी शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है।इस अधिनियम के तहत अब 6 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जा रही है। देश के 6 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे आरटीई एक्ट 2009 के तहत मुफ्त शिक्षा का अधिकार रखते हैं।