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मप्र: कुर्सी संभालते ही एक्शन में आये शिवराज, नरोत्तम मिश्रा के कतरेंगे पर!

मप्र: कुर्सी संभालते ही एक्शन में आये शिवराज, नरोत्तम मिश्रा के कतरेंगे पर!

सीएम की कुर्सी संभालते ही शिवराज सिंह चौहान ने अपने सियासी प्रतिद्वंद्वी नरोत्तम मिश्रा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। लगता है कि शिवराज उन्हें ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नहीं हैं। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक फ़ैसले ने सीएम पद की रेस में शामिल रहे नरोत्तम मिश्रा और उनके समर्थकों की ‘नींद उड़ाकर’ रख दी है। शिवराज ने उस आईएएस अफ़सर को अपना प्रमुख सचिव नियुक्त किया है, जिसने हजारों करोड़ रुपयों वाले मध्य प्रदेश के बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले का पर्दाफाश किया था।

मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद शिवराज ने रविवार को जैसे ही 1992 बैच के आईएएस मनीष रस्तोगी की प्रमुख सचिव के रूप में नियुक्ति की, बीजेपी में खुसर-पुसर शुरू हो गई। मिश्रा समर्थकों में ज्यादा ‘बेचैनी’ दिखाई दी। रस्तोगी वही अधिकारी हैं, जिन्होंने राज्य विद्युत विकास निगम का एमडी रहते हुए विधानसभा चुनाव 2018 से ठीक पहले ई-टेंडर प्रक्रिया की आंतरिक जांच कराई थी।

इस जांच में भारी गड़बड़ियां सामने आयीं थीं। अनेक महक़मों के साथ जल संसाधन विभाग में भी काफी सारी गड़बड़ियां मिलीं थीं। शिवराज सरकार के तीसरे कार्यकाल में यह महक़मा नरोत्तम मिश्रा के पास था। चुनाव की वजह से उस समय शिवराज सरकार ने मामले को दबा दिया था।

उधर, मध्य प्रदेश कांग्रेस ने इस मसले को टेकओवर करते हुए अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया था और इसे लेकर कई प्रेस कॉन्फ्रेंस की थीं। कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले से भी बड़ा घोटाला बीजेपी की सरकार ने ई-टेंडरों में किया है। 

कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भ्रष्टाचार से जुड़े अनेक मामलों में बीजेपी पर निशाना साधा था। ई-टेंडर घपला भी इसमें शामिल रहा था और आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने बाकायदा प्रकरण पंजीबद्ध किया था। हालांकि इसमें नामजद मामला दर्ज नहीं हुआ था और अज्ञात नेता और अफ़सरों के ख़िलाफ़ यह प्रकरण दर्ज हुआ था।

जांच और पड़ताल में ईओडब्ल्यू नरोत्तम मिश्रा के निजी सहायकों तक पहुंच गई थी। मामले में दो निजी सहायकों निर्मल अवस्थी और वीरेंद्र पांडे की गिरफ्तारी हुई थी और ये दोनों कई दिनों तक जेल में भी रहे थे। तब नरोत्तम मिश्रा और नाथ सरकार के नुमाइंदों के बीच खूब बयानबाज़ी हुई थी।

कमलनाथ सरकार में विधि मंत्री रहे पीसी शर्मा ने कई बार संकेतों में कहा था कि नरोत्तम मिश्रा जल्दी ही सीखचों के पीछे होंगे। मिश्रा इस पर कहते थे, ‘हर बड़ा टेंडर कई खिड़कियों से होकर गुजरता है। प्रमुख सचिव, अपर मुख्य सचिव और मुख्य सचिव टेंडरों को पास करते हैं।’ मिश्रा ने कहा था कि ईओडब्ल्यू जिस भी दिन उन्हें नोटिस देगी, वह बैंडबाजे के साथ अपना जवाब पेश करने जायेंगे।

रस्तोगी को मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव बनाने का फ़ैसला कई बीजेपी नेताओं को रास नहीं आया है और दबी जुबान में कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल रहे मिश्रा का करियर डांवाडोल होने वाला है।

दरअसल, रस्तोगी की गिनती बेहद ईमानदार और कड़क मिज़ाज अधिकारियों में होती है और दिलचस्प यह है कि अपने पिछले कार्यकाल में शिवराज जबलपुर के कलेक्टर पद से रस्तोगी की छुट्टी कर चुके हैं। 

शिवराज को अभी अपनी कैबिनेट का गठन करना है। कमलनाथ सरकार को हटाने में नरोत्तम मिश्रा की बेहद अहम भूमिका रही थी और मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शिवराज और नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा उनका नाम भी पूरी संजीदगी से चला था।

बहरहाल, बदले ‘समीकरणों’ के बाद इस बात की भी सुगबुगाहट तेज हो गई है कि चौहान अपनी सरकार में मिश्रा को बहुत ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नहीं हैं और वह उनके पर कतर सकते हैं।

शिवराज के सीएम बनने के बाद यह माना जा रहा था कि मिश्रा को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है लेकिन अब ऐसा नहीं लगता। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने खेमे के पूर्व विधायक तुलसी सिलावट को डिप्टी सीएम पद पर देखना चाहते हैं।

कमलनाथ सरकार ने जाते-जाते ग्वालियर की जमीनों से जुड़ी शिकायतों की जांच बैठाई थी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के ख़िलाफ़ ईओडब्ल्यू ने एक प्रकरण भी दर्ज किया था। लेकिन शिवराज की सरकार आते ही जांच को बंद किया जा चुका है। 

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