एमपीः तोमर को चुनाव की कमान का मतलब शिवराज सब पर पड़े भारी
मध्य प्रदेश के चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए आज का दिन ‘राहत की बारिश’ भरा माना जा रहा है। आने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की हालत खस्ता होने और शिवराज सिंह के चेहरे को लेकर उठ रहे सवालों के बीच आलाकमान ने केन्द्रीय कृषि मंत्री एवं मध्य प्रदेश के मुरैना से सांसद नरेंद्र सिंह तोमर को राज्य विधानसभा चुनाव प्रबंधन समिति का मुखिया नियुक्त करने का आदेश जारी किया।
मध्य प्रदेश की सत्ता और संगठन में बदलाव की चर्चाएं जब-तब उठती हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री और पार्टी के बड़े रणनीतिकार अमित शाह हाल ही में अचानक मध्य प्रदेश आये थे तो तमाम चर्चाओं का बाजार सरगर्म हो गया था। शाह की अगुवाई में हुई मैराथान बैठक के बाद निकलकर सामने आ गया था कि आने वाला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष वी.डी.शर्मा की अगुवाई में ही लड़ा जायेगा।
आलाकमान ने अपने विश्वासपात्र केन्द्रीय मंत्रीद्वय भूपेन्द्र यादव और अश्विनी वैष्णव को प्रदेश भाजपा का प्रभारी एवं सहप्रभारी बनाकर संकेत दे दिये थे कि उसकी और ज्यादा पैनी नज़रें मध्य प्रदेश पर रहने वाली हैं।
तमाम समीकरणों के चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की स्थिति कमजोर दर कमजोर होती दिखलाई पड़ रहीं थीं। ऐसा माना जा रहा था कि विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह की बहुत ज्यादा चलने वाली नहीं हैं। शुक्रवार को प्रभारीद्वय भोपाल आये। बैठकों का दौर चला। बैठकों के दरमियान ही दिल्ली से खबर आ गई, जिसने शिवराज सिंह और उनके खेमे की बांछे खिला दीं।
यह खबर थी, विधानसभा चुनाव में प्रबंधन समिति के संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर होंगे। नरेंद्र सिंह तोमर और शिवराज सिंह चौहान में शानदार तालमेल है। तोमर की नियुक्ति को शिवराज के लिए कई कोणों से बेहद अहम करार दिया जा रहा है।
तोमर 2003 से ही मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में बीजेपी के रणनीतिकारों में शुमार रहे हैं। विधानसभा के 2008 और 2013 के चुनावों वे मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष की भूमिका में थे। दोनों ही चुनावों में बीजेपी ने शानदार ढंग से सत्ता में वापसी की थी। नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद केन्द्र में मंत्री बना दिये जाने के बाद भी आलाकमान ने 2018 के विधानसभा चुनाव में तोमर पर भरोसा जताया था। इन चुनावों में भी वे मध्य प्रदेश चुनाव अभियान समिति के प्रमुख थे। हालांकि 2018 में कांग्रेस से ज्यादा वोट पाने के बाद लगातार चौथी बार सरकार बनाने से बीजेपी 7 सीटों से चूक गई थी।
राज्य की 230 सीटों वाली विधानसभा में साल 2018 में भाजपा को 109 सीटें ही मिल सकीं थीं। बहुमत के 116 के आंकड़ें से वह पीछे रह गई थी। उधर 114 सीटें पाकर कांग्रेस ने कमल नाथ की अगुवाई में 4 निर्दलियों, दो बसपा और एक सपा के विधायक को साथ लेकर सरकार बना ली थी।
पन्द्रह महीनों बाद कमल नाथ सरकार के खिलाफ सिंधिया के विद्रोह और बीजेपी की सरकार में वापसी में तोमर कर रोल भी रहा था। परदे के पीछे से तोमर भी अपने कार्ड खेलते रहे थे।
तोमर के आने से पार्टी का असंतुष्ट धड़ा भी राहत महसूस कर रहा था। दरअसल तोमर सबकी सुनने और मेरिट के आधार पर निर्णय लेने वाले लीडरों में शुमार हैं।ऐसा माना जा रहा है तोमर को बागडोर की एक बेहद महत्वपूर्ण वजह असंतुष्टों के गुस्से को कम करने और काम के लिए प्रेरित करने वाला कोण भी शामिल है।
बताया जा रहा है नरेंद्र मोदी और अमित शाह चाहते हैं, तमाम नकारात्मक पहलुओं को पलटते हुए राज्य में पार्टी शानदार प्रदर्शन करते हुए अभूतपूर्व नंबरों से सत्ता में वापसी करे।
छत्तीसगढ़ से अलग होने के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा ने साल 2003 में दिग्विजय सिंह की दस साल पुराने सरकार को सत्ताच्युत करते हुए 230 में से 173 सीटें जीतने और कांग्रेस को महज 38 सीटों पर समेट देने का कीर्तिमान रचा था। उमा भारती की अगुवाई में भाजपा को यह जीत मिली थी। साल 2008 के चुनाव में 143 और 2013 में पुनः 165 सीटें हासिल कर ली थीं।
सिंधिया और कुछ के लिए ‘बुरी खबर!’: तोमर की नियुक्ति को ग्वालियर-चंबल संभाग में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए सेडबैक माना जा रहा है। ग्वालियर-चंबल संभाग के मुख्यमंत्री पद के उन दावेदारों के लिए भी ‘बुरी खबर’ है जो शिवराज को ‘धकियाकर’ मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए लालायित बने रहते हैं।
तीन दिनों तक चलेगा मंथन
भाजपा के मध्य प्रदेश प्रभारी यादव और सह प्रभारी वैष्णव शनिवार को भोपाल पहुंचे हैं। दोनों ही 17 जुलाई तक बीजेपी प्रदेश कार्यालय में होने वाली विभिन्न बैठकों में शामिल होंगे। दोनों नेता 17 जुलाई को दोपहर 1.30 बजे भोपाल से नई दिल्ली रवाना होंगे। केंद्रीय मंत्री तोमर भोपाल पहुंचे हुए हैं।प्रदेश चुनाव प्रभारी यादव और सह प्रभारी वैष्णव भोपाल में रहकर चुनावी मैनेजमेंट के साथ-साथ बूथ लेवल से लेकर प्रदेश पदाधिकारियों तक के साथ बैठकर चुनावी रणनीति बनाएंगे।