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बीजेपी बिहार में विपक्षी दलों पर 'परिवारवाद' का आरोप कैसे लगा पाएगी?

बीजेपी बिहार में विपक्षी दलों पर 'परिवारवाद' का आरोप कैसे लगा पाएगी?

प्रधानमंत्री मोदी जिस 'परिवारवाद' को मुद्दा बनाते रहे हैं, क्या वह बिहार में मुद्दा बना पाएँगे? क्या ऐसा करने में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को ही नुक़सान हो जाएगा? जानिए, आख़िर दिक्कत क्या है।

पीएम मोदी के लिए अब बिहार में 'परिवारवाद' पर हमला करना एनडीए पर ही भारी पड़ जाएगा? राज्य में बीजेपी, जदयू और एलजेपी जैसे दलों के नेता ही क्यों कह रहे हैं कि राज्य में अब भाई भतीजावाद मुद्दा नहीं है? दरअसल, क़रीब-क़रीब हर चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहे 'परिवारवाद' पर बीजेपी खुद ही घिरती दिख रही है। जेडीयू से लेकर एलजेपी तक में भी परिवार और रिश्तेदारों को खूब टिकट दिए गए हैं।

बिहार के राजनीतिक परिवारों के 11 लोगों में से जो एनडीए के टिकट की दौड़ में हैं, उनमें से चार भाजपा के हैं। इनमें मौजूदा मधुबनी सांसद हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक यादव भी शामिल हैं। पूर्व सांसद मदन जयसवाल के बेटे और पूर्व राज्य भाजपा प्रमुख संजय जयसवाल पश्चिम चंपारण सीट पर, पूर्व सांसद राम नरेश सिंह के बेटे सुशील कुमार सिंह को औरंगाबाद से फिर से उम्मीदवार बनाया गया है। पूर्व सांसद सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर नवादा से खड़े हैं।

बीजेपी ही नहीं, नीतीश की पार्टी में भी परिवारवाद है। जदयू में ऐसे परिवारवादी लोगों की सूची में पूर्व मंत्री वैद्यनाथ महतो के बेटे सुनील कुमार, पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद और पूर्व विधायक रमेश कुशवाहा की पत्नी विजयलक्ष्मी देवी शामिल हैं।

ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के मामले में तो एनडीए का हिस्सा चिराग पासवान की पार्टी अव्वल है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के पांच में से चार उम्मीदवार इसी तरह के हैं। पार्टी का नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान कर रहे हैं, जो अपने पिता के गढ़ हाजीपुर से चुनाव लड़ेंगे। जमुई से उनके जीजा अरुण भारती मैदान में हैं। बिहार के पूर्व मंत्री अशोक कुमार चौधरी की बेटी और पूर्व कांग्रेस मंत्री महावीर चौधरी की पोती सांभवी चौधरी समस्तीपुर से एलजेपी (रामविलास) की उम्मीदवार हैं, जबकि जेडीयू एमएलसी दिनेश सिंह की पत्नी वीणा देवी वैशाली से पार्टी की पसंद हैं।

'परिवारवाद' के मुद्दे पर बीजेपी बैकफुट पर दिखती है और इसके नेता भी यह मानते हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी के एक नेता ने माना कि एनडीए वास्तव में 'परिवारवाद' के मुद्दे पर विपक्ष पर हमला नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा, 'हमें अब सतर्क रहना होगा।'

रिपोर्ट के अनुसार जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने भी कहा कि भाई-भतीजावाद का मुद्दा अब ज्यादा तूल नहीं पकड़ रहा है। नेता ने कहा, 'प्रदर्शन न करने वाले कुछ परिवारवादियों को खारिज कर दिया जाएगा, जबकि योग्य लोग जीतेंगे।'

चिराग ने अपने फैसले का बचाव करते हुए अंग्रेजी अख़बार से कहा कि किसी राजनेता का रिश्तेदार होने का मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति को राजनीति में मौका नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'आखिरकार यह लोग ही हैं जो उम्मीदवारों के भाग्य का फ़ैसला करते हैं।'

एनडीए उम्मीदवारों के नाम जारी होने के बाद राजद ने मोदी से जानना चाहा कि 'मोदी का परिवार' का वास्तव में क्या मतलब है। पार्टी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, 'एनडीए के 11 परिवारवादियों के मैदान में होने के कारण अब हम चाहेंगे कि प्रधानमंत्री इस विषय पर चर्चा करें।' उन्होंने कहा कि इस विषय पर राजद की स्थिति स्पष्ट है। 'हमारे नेता लालू प्रसाद ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जब एक वकील का बच्चा वकील बनना चुन सकता है, तो राजनेताओं के बच्चे भी अपने माता-पिता का व्यवसाय चुन सकते हैं।'

बता दें कि इंडिया गठबंधन ने अभी तक अपने सभी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है, लेकिन पहले से घोषित उम्मीदवारों में इसके पांच उम्मीदवार सांसदों और विधायकों के रिश्तेदार हैं। लालू की बेटियां मीसा भारती और रोहिणी आचार्य को पाटलिपुत्र और सारण से टिकट दिया गया है। 

गया से राजद उम्मीदवार कुमार सर्वजीत शामिल हैं, जो पूर्व सांसद राजेश कुमार के बेटे हैं। कांग्रेस पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के बेटे अंशुल कुमार को पटना साहेब से मैदान में उतार सकती है।

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