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एमपी चुनावः केंद्रीय मंत्री तोमर के मामले में कब जगेगी ED, सवाल तो उठेंगे

एमपी चुनावः केंद्रीय मंत्री तोमर के मामले में कब जगेगी ED, सवाल तो उठेंगे

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का परिवार भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में घिरा है। लेकिन तीन वीडियो सामने आने के बाद न तो मध्य प्रदेश सरकार और न ही केंद्रीय जांच एजेंसियों ने जांच की कोई पहल की। दूसरी तरफ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेता ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग की अनगिनत जांच का सामना कर रहे हैं। ऐसे में तोमर परिवार के मामले में अगर सवाल उठ रहे हैं तो भाजपा की जवाबदेही तो बनती ही है। हालांकि यह मात्र आरोप है, लेकिन अगर आप ईमानदार हैं तो जांच से क्या डर है। डर सिर्फ यही है कि अगर कोई एजेंसी जांच शुरू करेगी तो एमपी के भावी मुख्यमंत्री कहे जाने वाले तोमर का दिमनी से चुनाव लड़ना प्रभावित हो जाएगा।

प्रधानमंत्री के बेहद नजदीकी माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का परिवार भ्रष्टाचार के संगीन आरोप का सामना कर रहा है। तोमर के बेटे पर  500 करोड़ रुपये के सौदे के कथित लेन-देन के वीडियो लगातार सामने आए हैं। मंत्री ने इन्हें फर्जी बताकर खारिज कर दिया। लेकिन जनता और विपक्षी दल इन्हें फर्जी मानने को तैयार नहीं हैं। अब राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने मध्य प्रदेश के इस मामले में गंभीर टिप्पणी की है। गहलोत ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। 

राजस्थान के सीएम ने कहा, “पूरा देश तोमर के बेटे का वीडियो देख सकता है लेकिन ईडी की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई, उनसे पूछताछ भी नहीं की गई और आप (एजेंसियां) दूसरे लोगों के बेटों के घरों में घुस रही हैं और उन्हें परेशान कर रही हैं। ईडी की विश्वसनीयता कम हो रही है।”

कांग्रेस पिछले दस वर्षों से केंद्र की सत्ता में नहीं है। एमपी में भी भाजपा सरकार है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और पूरी भाजपा कांग्रेस पर देश को लूटने का आरोप लगा रही है। उस आरोप का आधार यही है कि कांग्रेस नेताओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर केंद्रीय जांच एजेंसियां सिर्फ जांच कर रही हैं। किसी भी मामले में आरोप साबित नहीं हो पाए हैं लेकिन इसके बावजूद भाजपा ने कांग्रेस को सबसे भ्रष्ट पार्टी बता दिया है, जबकि जब उसके मंत्री या उनके परिवार के लोग फंसते हैं तो केंद्रीय जांच एजेंसियां गायब हो जाती हैं और कोई जांच वगैरह नहीं होती।

गहलोत ने अप्रत्यक्ष रूप से अपने बेटे वैभव की जांच का भी संदर्भ दिया। विदेशी मुद्रा उल्लंघन मामले में ईडी वैभव गहलोत के खिलाफ जांच कर रही है। गहलोत की यह बात सही है कि जांच में कोई हर्ज नहीं है। एजेंसियों का काम जांच करना है लेकिन उनमें तटस्थता होनी चाहिए। सारी जांच कांग्रेस नेताओं के खिलाफ ही क्यों। गहलोत के ही सवाल को पूरा भारत पूछ रहा है कि आखिर भाजपा नेताओं के भ्रष्टाचार के मामले सामने आने के बाद जांच क्यों नहीं होती।

तोमर परिवार पर क्या हैं आरोपः मीडिया रपटों के मुताबिक, पहले वीडियो में तोमर का बेटा देवेंद्र तोमर एक शख्स से जाहिर तौर पर 100 करोड़ रुपये के लेन-देन की बातचीत कर रहा है। तोमर को वीडियो में उस व्यक्ति से लेन-देन पूरा होने पर सूचित करने के लिए कहते देखा जा सकता है। एक दूसरे वीडियो में, तोमर को उसी आदमी के साथ 50 करोड़ रुपये, 100 करोड़ रुपये या 500 करोड़ रुपये के कुछ मासिक भुगतान के बारे में फिर से बातचीत करते देखा गया।

वीडियो सामने आने के बाद केंद्रीय मंत्री तोमर ने इसे फर्जी बताते हुए फॉरेंसिक जांच कराने की मांग की। सवाल है कि फॉरेंसिक जांच का आदेश कौन देगा। इस जांच का आदेश भी या तो केंद्र सरकार दे या फिर राज्य सरकार दे। इसमें केंद्रीय जांच एजेंसियों की भूमिका इसलिए बनती है कि इसके तार विदेश से जुड़े हैं। आरोप केंद्रीय मंत्री के परिवार पर है। इसलिए इसकी जांच केंद्रीय एजेंसियों के दायरे में ही आती है।

गहलोत ने ईडी की विश्वसनीयता पर जो सवाल उठाया है, उस पर विचार जरूरी है। क्योंकि वैभव गहलोत और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा के दोनों बेटों के खिलाफ ईडी इस आधार पर जांच कर रही है, क्योंकि उनके खिलाफ किसी ने आरोप लगा दिए हैं कि इन्होंने पेपर लीक में भ्रष्टाचार किया है। इस तरह की जांच तो मध्य प्रदेश के सीएम और मुख्यमंत्री के खिलाफ भी होना चाहिए। अभी हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि 2018 में कांग्रेस के विधायकों को भाजपा ने खरीद कर हमारी सरकार गिरा दी थी। यह बहुत बड़ा आरोप है। लेकिन भाजपा इस आरोप का जवाब तक नहीं दे सकी।

2014 से अब तक ईडी ने जितनी भी कार्रवाई की हैं, इनमें से 95% एक्शन विपक्ष के नेताओं पर हुए हैं। बीते 5 साल में कई बड़े छापे मीडिया हाउस और पत्रकारों पर हुए, जो सरकार से सवाल पूछते हैं। हाल ही में न्यूज क्लिक पर ऐसी ही कार्रवाई की गई थी। इससे पहले द वायर को भी परेशान किया गया। बीबीसी ने पीएम मोदी पर सवाल करती हुई डॉक्युमेंट्री बना दी तो वहां भी छापे पड़ गए।

आप कोई भी विपक्षी शासित राज्य उठा लीजिए, हर जगह ईडी, आयकर विभाग और सीबीआई ने फाइल खोल रखी है। लेकिन महाराष्ट्र में ऐसे नेताओं की जब फाइल खुली तो वो भाजपा के साथ आ गए या उनके इशारे पर चलने लगे। उनके खिलाफ अब जांच की बात कोई नहीं करता। उद्धव ठाकरे की पार्टी ने तो इसे भाजपा वॉशिंग पाउडर नाम दिया था कि उससे धुलकर जो आता है, वो रातोंरात ईमानदार हो जाता है। महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार, प्रफुल्ल पटेल समेत कई नाम इसी श्रेणी में आते हैं। 

ईडी ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के मंत्रियों, विधायकों और रिश्तेदारों के पीछे हाथ धोकर पड़ी है। ममता के भतीजे और टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी को ईडी बार-बार कथित शिक्षक घोटाले में बार-बार तलब कर रही है। हाल ही में अभिषेक ने छह हजार पन्नों का जवाब सौंपा तो ईडी अभी तक उसका जवाब तक नहीं दे पाई है।

एक और बेहतरीन उदाहरण लालू प्रसाद यादव और उनका परिवार है। जमीन के बदले नौकरी मामले में तेजस्वी यादव से लेकर उनकी बहनों, बहनोइयों और दोस्तों तक के यहां ईडी ने छापे डाले। अभी हाल ही में तेजस्वी के कारोबारी मित्र अमित कत्याल को ईडी ने इस आधार पर गिरफ्तार कर लिया क्योंकि वो समन भेजने के बाद ईडी के सामने हाजिर नहीं हो रहे थे।

इसी तरह आम आदमी पार्टी के नेताओं पर ईडी और सीबीआई के छापों पर सवाल उठते रहे हैं। कथित शराब घोटाले में आप के तेज तर्रार सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी पर ज्यादा सवाल उठे। संजय सिंह संसद के अंदर और बाहर अडानी समूह के कथित भ्रष्टाचार और पीएम मोदी से अडानी के रिश्तों पर सवाल उठा रहे थे। संजय सिंह पर सबसे पहले राज्यसभा के उपसभापति ने कार्रवाई की और उन्हें सदन में आने से रोक दिया। इसके बाद ईडी ने उन्हें कथित शराब घोटाले में गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी मात्र किसी आरोपी द्वारा संजय सिंह का नाम लेने पर की गई है। आप भी यह सवाल उठा चुकी है कि आखिर ईडी के ऊपर कौन बैठा है जो उसे कार्रवाई का आदेश देता है।

यहां यह बताना जरूरी है कि आम आदमी पार्टी के गठन के 11 साल हुए हैं और 17 से ज़्यादा नेताओं की गिरफ़्तारी हो चुकी है। संजय के अलावा मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन जैसे टॉप रैंक के नेताओं के अलावा पंजाब के कई विधायक भी शामिल हैं। छत्तीसगढ़, तमिलनाडु के नेताओं, मुख्यमंत्रियों को ईडी उलझाए हुए है। छत्तीसगढ़ में भी दिल्ली की तर्ज पर कथित शराब घोटाले की चर्चा शुरू हुई। ईडी एक्शन में आई तो कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट को पूरी जानकारी दी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सीधे ईडी को चेतावनी दी कि वो छत्तीसगढ़ में भय का माहौल न बनाए।

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