कमलनाथ ने कराया हनुमान चालीसा का पाठ; दिग्विजय ख़राब कर रहे खेल?
मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की जुगत में लगे पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का खेल क्या राज्य के कद्दावर कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ख़राब करने में जुटे हैं यह सवाल राम मंदिर निर्माण को लेकर पांच अगस्त को अयोध्या में होने जा रहे भूमिपूजन से ठीक पहले नाथ और सिंह के इस कार्यक्रम को लेकर अलग-अलग ‘स्टैंड’ के बाद उठ रहा है।
कमलनाथ पिछले सप्ताह भर से राम मंदिर के पक्ष में राग अलाप रहे हैं। हालांकि नाथ का ‘राम मंदिर प्रेम’ और सॉफ़्ट हिन्दुत्व कोई नई बात नहीं है।
मध्य प्रदेश विधानसभा के 2018 के चुनाव के दौरान भी नाथ ने खुलकर सॉफ़्ट हिन्दुत्व का कार्ड खेला था। बरसों पुराने बीजेपी के राम वनगमन पथ निर्माण के मुद्दे को उन्होंने कांग्रेस के संकल्प पत्र में शामिल किया था और सरकार बनने पर इस पर काम भी शुरू हुआ था।
बीजेपी और आरएसएस के गौवंश प्रेम के मुद्दे को भुनाने में भी नाथ पीछे नहीं रहे थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस पर पर खूब ‘काम’ किया था।
बीजेपी के हार्डकोर विषय राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखे जाने की तारीख़ के एलान के बाद से ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ख़ासे सक्रिय हैं। उन्होंने पिछले सप्ताह वीडियो संदेश जारी करते हुए राम मंदिर निर्माण का स्वागत किया था। नाथ ने संदेश में कहा था, ‘देश के करोड़ों लोगों की आकांक्षा पूरी होने जा रही है। हरेक देशवासी मंदिर चाहता है।’
कमलनाथ यहीं नहीं रुके और उन्होंने मंगलवार को भोपाल में अपने सरकारी आवास पर हनुमान चालीसा के पाठ का आयोजन करके मंदिर निर्माण के भूमिपूजन की खुशियां जताईं। काफी संख्या में कांग्रेसी इस पाठ में शामिल हुए और हनुमान जी के साथ कमलनाथ के जयकारे भी लगाये।
कमलनाथ भले ही राम मंदिर की पैरवी कर रहे हैं और हनुमान चालीसा का पाठ करा रहे हैं लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भूमिपूजन के वक्त को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केन्द्र सरकार, बीजेपी तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को घेरने में जुटे हुए हैं।
दिग्विजय सिंह ने पिछले तीन-चार दिनों में एक के बाद एक कई ट्वीट करके पीएम मोदी और उनकी सरकार को घेरा। दिग्विजय सिंह ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स करते हुए भी इस मामले को उठाया था। राममंदिर निर्माण की आधारशिला रखे जाने के लिए चुने गए वक्त को लेकर वे सबसे ज्यादा आक्रामक बने हुए हैं। दिग्विजय सिंह ने सवाल उठाते हुए कहा है, ‘चतुर्मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं होता। फिर चतुर्मास में मंदिर की आधारशिला क्यों रखी जा रही है।’
दिग्विजय सिंह ने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनकी काबीना के सदस्यों, संगठन के पदाधिकारियों, कर्नाटक के सीएम येदियुरप्पा, यूपी सरकार की मंत्री की मौत समेत बीजेपी-संघ से जुड़े लोगों की स्वास्थ्यगत समस्याओं को कथित अशुभ मुहूर्त में मंदिर की आधारशिला रखे जाने के कदम से जोड़ा है।
दिग्विजय सिंह ने कहा है, ‘अमित शाह के कोरोना संक्रमित मिलने के बाद पीएम और उनकी काबीना के सदस्यों को क्वारेंटीन में जाना चाहिए था। यूपी की मंत्री की कोरोना से मृत्यु के बाद वहां के सीएम और अन्य मंत्रियों को आइसोलेट होना चाहिए था। मगर ऐसा नहीं हुआ, जो प्रोटोकाॅल के हिसाब से अनुचित है।’
दिग्विजय सिंह के बयानों और ट्वीट पर बीजेपी और उसके लीडरान बेहद मुखर होते हैं। राम मंदिर की आधारशिला वाले मसले पर भी वे दिग्विजय सिंह की जमकर आलोचना कर रहे हैं। शिवराज सरकार में गृह मंत्री और सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने तो दिग्विजय सिंह को संकेतों में अधर्मी तक बता डाला है।
चुनाव के लिए रणनीति
बीजेपी की घेराबंदी अपनी जगह है। इधर, मध्य प्रदेश कांग्रेस में भी कमलनाथ से जुड़ा धड़ा और सॉफ़्ट हिन्दुत्व को समय की मांग बताने वाले कांग्रेसी भी दिग्विजय सिंह की बयानबाज़ी को ‘समझ’ नहीं पा रहे हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। कमलनाथ ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए तमाम चालें चल रहे हैं।
राम मंदिर निर्माण से जुड़ी नाथ की बयानबाजी और हनुमान चालीसा के पाठ का आयोजन भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। नाथ के अपने पत्तों के बीच दिग्विजय सिंह द्वारा अलग ढंग से पत्ते फेंटना कमल नाथ के समर्थकों को रास नहीं आ रहा है।
कांग्रेस को होगा नुकसान
मध्य प्रदेश की जिन 27 सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें कई सीटें उस मालवा-निमाड़ से हैं जहां राममंदिर मुद्दा असर डालता रहा है। इन सीटों में 16 सीटें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की भी हैं, इन क्षेत्रों में जातिगत समीकरण पहली पायदान पर रहता है। दूसरे क्रम पर धर्म-कर्म होता है। कांग्रेसी मानकर चल रहे हैं कि दिग्विजय सिंह की बयानबाजी और ट्वीट इस कमलनाथ की रणनीति को नुकसान पहुंचायेंगे।
सभी 27 सीटें जीतनी होंगी
मध्य प्रदेश में खोयी हुई सत्ता दोबारा हासिल करने के लिए कांग्रेस को सभी 27 सीटें जीतनी होंगी तभी वह बिना किसी के सहारे सरकार बना पायेगी। अभी कांग्रेस के पास 89 विधायक हैं। मध्य प्रदेश में अपने दम पर सत्ता पाने का नंबर 116 है। बीजेपी के पास 107 सीटें हैं। बीएसपी के पास दो और एसपी के पास एक तथा चार निर्दलीय विधायक हैं।
कमलनाथ ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की 114 सीटें आने पर सरकार बनायी थी, तब बीएसपी-एसपी और चारों निर्दलीय विधायक कांग्रेस के साथ थे। बीजेपी के सत्ता में लौटने के बाद से इन सात में से कई कांग्रेस से छिटककर बीजेपी के साथ जा खड़े हुए हैं।