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देश की ज्यादातर आबादी आज भी धार्मिक बहुलतावाद के पक्ष में है 

देश की ज्यादातर आबादी आज भी धार्मिक बहुलतावाद के पक्ष में है 

सीएसडीएस-लोकनीति की ओर से लोकसभा चुनाव 2024 के पूर्व कराये गए एक सर्वे में सामने आया है कि देश की अधिकतर आबादी धार्मिक बहुलतावाद के समर्थन में है।   

सीएसडीएस-लोकनीति की ओर से लोकसभा चुनाव 2024 के पूर्व कराये गए एक सर्वे में सामने आया है कि देश की अधिकतर आबादी धार्मिक बहुलतावाद के समर्थन में है। 

इस सर्वे को लेकर अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस सर्वे में भाग लेने वाले उत्तरदाताओं का भारी बहुमत इस विचार का समर्थन करता हुआ दिखाई दिया कि भारत केवल हिंदुओं का नहीं, बल्कि सभी धर्मों का समान रूप से है। 

रिपोर्ट कहती है कि भारत सदियों से एक बहु-धार्मिक समाज रहा है। विभिन्न धर्मों ने सह-अस्तित्व में रहते हुए सामाजिक क्षेत्र में अपने लिए सांस्कृतिक स्थान बनाए हैं। देश का यह धार्मिक बहुलवाद ऐतिहासिक दुर्घटनाओं और राजनीतिक संकटों से बचा हुआ है। 

लेकिन कुछ सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं और देश को 'हिंदू राष्ट्र' में बदलने की बढ़ती मांग ने संदेह पैदा कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या धार्मिक सहिष्णुता का लंबे समय से चला आ रहा आदर्श अभी भी लोगों के दिलों के करीब है? क्या भारत का धर्मनिरपेक्ष सामाजिक ताना-बाना गंभीर खतरे में है? रिपोर्ट कहती है कि चुनाव पूर्व सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे से इन शंकाओं को दूर करने में मदद मिलती है।

इस सर्वे के निष्कर्षों से पता चलता है कि इसमें भाग लेकर सवालों का जवाब देने वाले लोगों का भारी बहुमत (79 प्रतिशत) इस विचार का समर्थन करता हुआ दिखाई दिया कि भारत सभी धर्मों का समान रूप से है, न कि केवल हिंदुओं का है। 

इस सर्वे में निकल कर सामने आया है कि लोग मानते हैं कि यह एक ऐसा देश बना रहना चाहिए जहां विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग स्वतंत्र रूप से रह सकें और अपनी आस्था का पालन कर सकें। धार्मिक बहुलवाद के लिए यह उल्लेखनीय समर्थन दर्शाता है कि धार्मिक सहिष्णुता सामाजिक ताने-बाने का एक निर्णायक तत्व बनी हुई है। 

द हिंदू की इस रिपोर्ट के मुताबिक जब इस सर्वे में भाग लेने वाले लोगों ने इस सवाल कि, क्या भारत केवल हिंदुओं का ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के नागरिकों का समान रूप से है?  के जवाब में 79 प्रतिशत लोगों ने सहमति जताई।

वहीं सवाल कि क्या भारत केवल हिंदुओ का है के जवाब में मात्र 11 प्रतिशत लोगों ने सहमति जताई है। वहीं 10 प्रतिशत लोग इस पर कोई राय नहीं बता पाएं। 

रिपोर्ट कहती है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए धार्मिक बहुलवाद पर जोर देना स्वाभाविक है। लेकिन यह विचार कि भारत सभी धर्मों के अनुयायियों का है, बहुसंख्यक हिंदू धर्म के सदस्यों का भी मानना ​​है। 

प्रत्येक 10 में से लगभग आठ हिंदुओं ने कहा कि उन्हें धार्मिक बहुलवाद में विश्वास है। केवल 11 प्रतिशत हिंदुओं ने कहा कि वे सोचते हैं कि भारत हिंदुओं का देश है।  

81 प्रतिशत युवा मानते कि भारत सभी धर्मों का 

द हिंदू की यह रिपोर्ट कहती है कि इस सर्वे में बेहतर बात यह भी दिखती है कि बुजुर्गों से अधिक युवा मानते हैं भारत हिंदुओं का ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के नागरिकों का समान रूप से है। इस बात के समर्थन में जहां 73 प्रतिशत बुजुर्गों ने सहमति जताई है वहीं 81 प्रतिशत युवाओं ने धार्मिक बहुलवाद पर अपनी सहमति जताई है।

इसमें बताया गया है कि यूं तो धार्मिक सहिष्णुता का समर्थन पूरे सामाजिक दायरे में अधिक है, लेकिन शैक्षिक योग्यता से फर्क पड़ता है। 72 प्रतिशत अशिक्षित लोगों की तुलना में, 83 प्रतिशत उच्च शिक्षित लोगों ने कहा कि वे सभी धर्मों की समान स्थिति के पक्ष में हैं। 

रिपोर्ट कहती है कि आमतौर पर तनाव/संघर्ष को एक शहरी घटना के रूप में देखा जाता है लेकिन इस सर्वे से प्राप्त आंकड़े एक अलग पैटर्न दिखाते हैं। आम धारणा के विपरीत, शहरी परिवेश में रहने वाले लोग ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की तुलना में धार्मिक बहुलवाद और सहिष्णुता के अधिक समर्थक प्रतीत होते हैं।

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