अलग-अलग समय पर अलग-अलग संस्थानों ने भारत की अर्थव्यवस्था पर चिंता जताई है कहा है कि इसकी वृद्धि दर कम हो रही है। एक नए घटनाक्रम में अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी मूडीज़ ने साल 2019-2020 के लिए भारत के सकल घरेल उत्पाद की अनुमानित वृद्धि दर घटा कर 5.8 प्रतिशत कर दी, पहले यह 6.2 प्रतिशत थी। इसकी वजहें निवेश और माँग में कमी, ग्रामीण इलाक़ों में मंदी और रोज़गार के मौके बनाने में नाकामी हैं।
मूडीज़ ने यह भी कहा है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान इसमें सुधार हो सकता है और वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत तक पहुँच सकती है। मूडीज ने साफ़ शब्दों में कह दिया कि 8 प्रतिशत वृद्धि दर की संभावना बहुत ही कम है। मूडीज़ का कहना है कि जीडीपी गिरने की कई वजहें हैं, लेकिन ज़्यादातर वजहें घरेलू हैं। ये कारण लंबे समय तक बने रहेंगे।
मूडीज़ का कहना है कि हालाँकि इस गिरावट की शुरुआत निवेश में कमी से हुई, पर बाद में खपत भी कम हो गई, ग्रामीण अर्थव्यवस्था बिगड़ी और रोजग़ार में कमी आई। इन सबका नतीजा यह हुआ कि वृद्धि दर का गिरना तय है।
दूसरी ओर, भारत सरकार ने ख़ुद यह माना है कि जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर जून में गिरकर पाँच फ़ीसदी पर पहुँच गई है। यह छह साल में सबसे निचला स्तर है। केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय ने यह आँकड़ा जारी किया है। जिस तरह से आर्थिक मोर्चे पर सरकार की स्थिति है उस लिहाज़ से ऐसी गिरावट अपेक्षित थी। स्वतंत्र रूप से काम करने वाले अर्थशास्त्री ऐसी गिरावट का अंदेशा जता रहे थे।
अप्रैल-जून 2019 की यह जीडीपी वृद्धि दर पिछले साल इसी तिमाही की वृद्धि दर 8 फ़ीसदी की अपेक्षा काफ़ी कम है। पाँच फ़ीसदी की यह वृद्धि दर 25 क्वार्टर में सबसे कम है। सबसे बड़ी गिरावट विनिर्माण क्षेत्र में आई है। इसमें सिर्फ़ 0.6 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है जो पिछले साल इसी अवधि की वृद्धि दर 12.1 फ़ीसदी से काफ़ी कम है। विश्लेषकों का भी कहना है कि गिरावट के लिए मुख्य तौर पर उपभोक्ताओं की कमज़ोर माँग और कमज़ोर निजी निवेश ज़िम्मेदार है। बता दें कि 8 अगस्त को रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने अप्रैल-सितंबर के दौरान अर्थव्यवस्था के 5.8-6.6 फ़ीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई थी। हालाँकि यह उसके जून की 6.4-6.7 फ़ीसदी के अनुमान से भी कम थी।