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कोरोना के बाद मंकीपॉक्स का खतरा, कई देशों में मिले मामले

कोरोना के बाद मंकीपॉक्स का खतरा, कई देशों में मिले मामले

मंकीपॉक्स के मामले मिलने के बाद यूरोप के कई देशों में चिंता बढ़ने लगी है। क्या है मंकीपॉक्स और कैसे कोई शख़्स इससे पीड़ित होता है?

मंकीपॉक्स को लेकर दुनिया के कई देशों में दहशत का माहौल बनने लगा है। मंकीपॉक्स के मामले यूरोप के कई देशों में मिले हैं और अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में भी इसके मामलों की पुष्टि हुई है। 

स्पेन और पुर्तगाल में भी मंकीपॉक्स के मामलों की पुष्टि हो चुकी है और इसके बाद से ही लोग दहशत में हैं। 

बता दें कि पिछले ढाई साल से दुनिया भर में कोरोना को लेकर लोग खौफ़ में रहे हैं और अब जब कोरोना की रफ्तार धीमी पड़ी है तो मंकीपॉक्स एक बड़ी चिंता बनकर सामने आया है।

वायरल इंफेक्शन

मंकीपॉक्स मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के दूरदराज के इलाकों में एक आम बीमारी है लेकिन इसका यूरोप के देशों में फैलना चिंता का सबब है। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक वायरल इंफेक्शन है और इससे पीड़ित शख्स कुछ ही हफ्तों में ठीक हो जाता है। यह भी कहा जाता है कि इसके बड़े पैमाने पर फैलने की संभावनाएं कम होती हैं।

ब्रिटेन में मंकीपॉक्स का पहला मामला 7 मई को मिला था और इससे पीड़ित शख्स ने कुछ दिन पहले नाइजीरिया की यात्रा की थी। यह माना जा रहा है कि नाइजीरिया जाकर ही यह शख्स मंकीपॉक्स के वायरस के संपर्क में आया। 

बीते कुछ ही दिनों में ब्रिटेन में मंकीपॉक्स के मामले तेजी से बढ़े हैं और अब तक इसके 9 मामले सामने आ चुके हैं। स्वीडन में भी मंकीपॉक्स के मामले आए हैं।

कैसे होता है मंकीपॉक्स? 

मंकीपॉक्स एक वायरस के जरिए होता है और यह स्मॉलपॉक्स यानी चेचक के वायरस के परिवार का ही सदस्य है।

क्या हैं लक्षण?

इसके शुरुआती लक्षणों में बुखार आना, सिर दर्द होना, सूजन, कमर में दर्द, मांसपेशियों में दर्द और शरीर में सुस्ती का रहना शामिल है।

पीड़ित व्यक्ति को बुखार आने के बाद शरीर में धारियां पड़ जाती हैं। कई बार यह चेहरे पर होती हैं और फिर शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल जाती हैं। यह ज्यादातर हथेलियों और पैर के तलवों पर हो जाती हैं। इनमें भयंकर खुजली होती है और अंत में इसकी एक पपड़ी बन जाती है। शरीर पर इसके निशान भी रह जाते हैं। 14 से 21 दिनों के भीतर यह इंफेक्शन खत्म हो जाता है 

हालांकि यह बड़े स्तर पर जानलेवा नहीं है लेकिन फिर भी पश्चिमी अफ्रीका में इससे कुछ मौतें हुई हैं। 

साल 2003 में अफ्रीका से बाहर पहली बार इस बीमारी से पीड़ित लोग अमेरिका में मिले थे। तब इस बीमारी के कुल 81 मामले सामने आए थे लेकिन किसी की भी मौत नहीं हुई थी। 

इस बीमारी के इलाज की बात करें तो स्मॉल पॉक्स के दौरान लगने वाले टीके मंकीपॉक्स को रोकने में काफी हद तक कारगर साबित हुए हैं। 

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