मोहन भागवत-योगी की गोरखपुर मुलाकातः एक खबर कई नजरिेए
देश के कथित राष्ट्रीय मीडिया ने सोमवार को दो खबरें बताईं।
- आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ के साथ बंद कमरे में बैठक की
- संघ प्रमुख मोहन भागवत का गोरखपुर प्रवास खत्म, योगी को मुलाकात का वक्त नहीं दिया
संघ प्रमुख पांच दिनों तक गोरखपुर में रहे। लेकिन अंतिम दिन यही दोनों शीर्षक अलग-्अलग अखबारों में थे। मीडिया का एक वर्ग कह रहा था कि योगी से भागवत मिले हैं। दूसरा वर्ग कह रहा था कि योगी को इस बार भागवत ने समय ही नहीं दिया। अगर किसी के घर में दोनों अखबार आते हों या उसने संबंधित अखबारों की वेबसाइट पर अलग-अलग ये खबरें देखी हों तो वो क्या निचोड़ निकालेगा।
यूपी में भाजपा की सरकार बनने के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत हर साल 4-5 दिनों के लिए गोरखपुर आते हैं और वहां कई प्रांतों की बैठक करते हैं। हर बार बाकायदा सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल कर कार्यक्रम होता है। राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मेजबान की भूमिका में आगे-आगे नजर आते हैं। लेकिन 2024 के गोरखपुर प्रवास कार्यक्रम में खीर से लेकर पूड़ी तक यानी सबकुछ मोहन भागवत के लिए था लेकिन योगी न तो कहीं मेजबान की भूमिका में नजर आए और न ही भक्त के रूप में किसी कार्यक्रम में मौजूद थे।
राजनीति में समय बलवान होता है। चुनाव के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि हमें आरएसएस की जरूरत नहीं है। चुनाव नतीजे आए तो भाजपा चारों खाने चित्त थी यानी अपने दम पर लोकसभा में बहुमत नहीं मिला। अब बारी मोहन भागवत के बोलने की थी। उन्होंने इशारों ही इशारों में नरेंद्र मोदी तक को धो डाला। लेकिन उधर मोदी और अमित शाह खेमा मोहन भागवत के मुंहबोले चेले योगी आदित्यनाथ के बारे में लगातार खबरें बनवा रहा था कि योगी अब गए कि तब गए। इसी नुक्ते में योगी-भागवत मुलाकात का नुक्ता भी छिपा है।
योगी-भागवत मुलाकात होने या न होने को लेकर जो सवाल बन रहे हैं, उन्हीं के बीच इस सवाल का जवाब भी छिपा है।
* संघ प्रमुख मोहन भागवत मुख्यमंत्री योगी से इसलिए नहीं मिले कि अब योगी जाने वाले हैं तो भागवत ऐसे में नरेंद्र मोदी से बिगाड़ना नहीं चाहते, ताकि पांच साल तक सरकार की ओर से संघ को कोई परेशानी न हो। यह वही संघ है, जो इमरजेंसी में इंदिरा गांधी के साथ खड़ा हो गया था।
*क्या योगी खुद आरएसएस प्रमुख से इसलिए नहीं मिले, ताकि कहीं नरेंद्र मोदी और अमित शाह न नाराज हो जाएं। क्योंकि वैसे भी योगी पर यूपी के सीएम की कुर्सी पर बैठने के पहले दिन से संघ के आदमी की छाप लगी हुई है। योगी संघ की वजह से मोदी-शाह से कोई बिगाड़ नहीं करना चाहते।
*क्या योगी और आरएसएस प्रमुख भागवत की गुप्त मुलाकात अकेले में 30 मिनट इसलिए हुई ताकि मीडिया कोई खबर न बना सके। क्या दोनों ने मोदी और शाह के खिलाफ कोई व्यूह रचना रची है।
आरएसएस का गिला और गतिविधियां
आरएसएस-भाजपा संबंध अब 2014 के लेवल पर हैं। संघ को ऐसा लगता है कि सरकार 10 साल तक कुछ भी करने की स्थिति में थी, लेकिन आरएसएस के संसाधनों की कीमत पर एक व्यक्ति को बढ़ावा देने में लगी रही, जबकि ईमानदारी से उसकी विचारधारा का पालन नहीं कर रही थी। आरएसएस ने जिन हिंदुओं को एकजुट किया था, पिछले 10 वर्षों में वे बिखर गए क्योंकि भाजपा के मंत्रियों और नेताओं ने उन्हें निराश किया। यह स्थिति तब है जब संघ से किसी न किसी व्यक्ति को भाजपा में राजनीतिक जिम्मेदारी लेने भेजा जाता है। पहले राम माधव के बारे में यह प्रचार था। फिर बीएल संतोष के बारे में यही प्रचार हुआ। कर्नाटक में कांग्रेस की आंधी ने जब संतोष को उड़ा दिया तो अब विनोद तावड़े का नाम संघ के एजेंट के रूप में लिया जाता है। उन्हें अब एजेंट विनोद की तरह पेश किया जाता है।
वाजपेयी काल का संघः राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आरएसएस को कभी भी संघ सरकार पर हावी नहीं होने दिया। वो संघ की भूमिका स्वीकार करते थे लेकिन सरकार के काम में दखल नहीं देने देते थे। वाजपेयी सरकार का साफ कहना था कि वो एनडी गठबंधन की सरकार चला रहे हैं। सारे फैसले खुद नहीं कर सकते। अब फिर से केंद्र में गठबंधन सरकार है। संघ या तो पिछले दस वर्षों की तरह अब भी सत्ता का आनंद लेता रहे। लेकिन भागवत के तेवर से लगता है कि एक दशक की राजनीतिक निर्भरता के बाद संघ अब अपना काम अलग करेगा।
मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी की नूरा कुश्ती
राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा भी वर्ग है जो यह मानता है कि इस समय आरएसएस प्रमुख भागवत भाजपा से लेकर मोदी को जो डांट फटकार लगा रहे हैं, वो महज पूरा कुश्ती है। ताकि विपक्ष अपनी भूमिका नहीं निभा पाए। जनता को इससे यह संदेश जा रहा है कि कम से कम संघ तो मोदी को फटकार लगा रहा है। लेकिन दोनों का हिन्दू राष्ट्र का जो लक्ष्य है, उस तरफ तो बढ़ ही रहे हैं।मोहन भागवत ने जेड प्लस सुरक्षा क्यों ली
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोहन भागवत और संघ के छुटभैया नेता मोदी-शाह को अप्रत्यक्ष कोस रहे हैं, जो कि पिछले 10 वर्षों में भाजपा की सत्ता का सबसे बड़ा फायदा उठा रहे थे। तमाम राज्यों में कौड़ियों के दाम पर आरएसएस को अकूत जमीन कैसे मिली की आज उसके पास अपना लैंड बैंक है। हरियाणा में एक बड़ा केंद्र किसके पैसे से और किसकी जमीन पर चल रहा है।हकीकत यह है कि भागवत मोदी को दोष नहीं दे सकते। मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद संघ ने अपने कार्यकर्ताओं को भाजपा राजनेताओं और मंत्रियों के साथ घुलने-मिलने की अनुमति दी।
“
भागवत ने खुद 2015 में मोदी सरकार से जेड-प्लस सुरक्षा स्वीकार की और अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दिया कि चीजें बदल गई हैं। आरएसएस के लोगों को पता होना चाहिए कि के.एस. सुदर्शन (2000 से 2009 तक आरएसएस प्रमुख) ने वाजपेयी सरकार से किसी भी तरह की सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया था। आरएसएस में तमाम छुटभैये नेताओं ने सरकार की सुरक्षा क्यों स्वीकार की।
आरएसएस की चाल
निचोड़ यह निकल रहा है कि आरएसएस अब जो कुछ भी कर रहा है वह एक चाल हो सकती है। हो सकता है कि वह असली विपक्ष को हाशिए पर रखने के लिए मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का मुखौटा बनने की कोशिश कर रहा हो। 2014 से 2024 तक विपक्ष कमजोर था, इसलिए संघ को ऐसा करने की जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन इस साल के लोकसभा चुनाव के बाद अब विपक्ष मजबूत है। मजबूत विपक्ष भाजपा और आरएसएस दोनों के लिए स्थायी सिरदर्द है।
अब एक बार फिर से अटल बिहारी वाजपेयी के समय के आरएसएस को याद करना होगा। उस समय संघ प्रमुख सुदर्शन के निर्देश पर आरएसएस ने इसी तरह वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान (प्रॉक्सी) विपक्ष की भूमिका निभाई थी। उस समय भी विपक्ष मजबूत था। आरएसएस ने तब राम मंदिर नहीं बनाने और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में विफल रहने के लिए वाजपेयी सरकार की आलोचना की थी। आरएसएस अब फिर से सुदर्शन वाले संघ पर लौटना चाहता है। हालांकि वो लंबे समय तक भाजपा को त्यागने का जोखिम नहीं उठा सकता है। तमाम प्रमाण हैं कि आरएसएस ने ही मोदी का सबसे ज्यादा फायदा उठाया है। मोदी ने ही सबसे ज्यादा आरएएस के लक्ष्यों (अयोध्या, धारा 370, तीन तलाक) को पूरा किया है।