मोहन भागवत ने आख़िर किसको हिंदुओं का 'शत्रु' माना?
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का एक लंबा-चौड़ा इंटरव्यू सामने आया है। इसमें वह हिंदुओं के एक हज़ार साल से युद्ध में होने की बात कहते हैं और शत्रु का ज़िक्र करते हैं। इसके अलावा वह कई मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं।
उन्होंने यह इंटरव्यू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पत्रिका ऑर्गेनाइजर और पांचजन्य को दिया है। उनका यह इंटरव्यू तब आया है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर तक 'भारत जोड़ो यात्रा' निकाल रहे हैं। राहुल गांधी बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साध रहे हैं। वह बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई जैसे मुद्दों को छेड़ने के साथ ही 'सच्चे हिंदू' को फिर से परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं और वह 'तपस्या' और 'जबरन पूजा' व 'तपस्वी' और 'पुजारी' में फर्क बताते फिर रहे हैं। उन्होंने कहा है, 'कांग्रेस तपस्या का संगठन है जबकि बीजेपी-आरएसएस जबरन पूजा का संगठन है'। राहुल हिंदू धर्म को पढ़ने, शिव जी को पढ़ने की बात कह रहे हैं।
बहरहाल, भागवत ने पांचजन्य को दिए इंटरव्यू में हिंदू समाज को लेकर लंबा चौड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि हिंदू समाज लगभग हजार वर्ष से एक युद्ध में है- विदेशी लोग, विदेशी प्रभाव और विदेशी षड्यंत्र, इनसे एक लड़ाई चल रही है। उन्होंने कहा, 'संघ ने काम किया है और भी लोगों ने काम किया है। बहुत से लोगों ने इसके बारे में कहा है। उसके चलते हिंदू समाज जाग्रत हुआ है।' वह कहते हैं, 'हिंदू समाज में अभी पूरी जागृति नहीं आई है, व आनी पड़ेगी। इसी प्रकार लड़ाई है, लेकिन हम क्या हैं? लड़ाई है तो शत्रु का विचार करना पड़ता है, शत्रु को समझना पड़ता है। शत्रु को ध्यान में रखना पड़ता है। जैसे हम क्या हैं, हमको कब क्या करना है?'
मोहन भागवत ने कहा, 'आप देखेंगे मुगलों के आक्रमण में अंतिम प्रयोग हुआ शिवाजी महाराज का। उसके बाद इसके प्रयोग चलते रहे। शिवाजी महाराज की नीति कैसी थी? वे शत्रु के बारे में जानते थे, परंतु अपने बारे में भी जानते थे कि कब लड़ना है और कब नहीं लड़ना।'
लड़ाई का ज़िक्र करते हुए भागवत कहते हैं, 'स्वाभाविक है कि लड़ना है तो दृढ़ होना ही पड़ता है। यद्यपि कहा गया है कि आशा-कामना को, मैं एवं मेरेपने के भाव को छोड़कर अपने ममकार के ज्वर से मुक्त होकर युद्ध करो, लेकिन सब लोग ऐसा नहीं कर सकते। लेकिन लोगों ने इसके बारे में समाज को हमारे ज़रिए जाग्रत किया।'
तो सवाल है कि आरएसएस प्रमुख के अनुसार हिंदू समाज इन सभी चीजों को लेकर जागृत है या नहीं? अपने साक्षात्कार में वह इसका ज़िक्र करते हैं।
वह कहते हैं, 'जागृति की परंपरा, जिस दिन पहला आक्रमणकारी सिकंतर भारत आया, तब से चालू है। चाणक्य के बाद से अब तक की परंपरा में विभिन्न लोगों ने एक और लड़ाई के प्रति हिंदू समाज को आगाह किया है। अभी वह जागृत नहीं हुआ है। वह लड़ाई बाहर से नहीं है। वह लड़ाई अंदर से है।'
क्या हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति, हिंदू समाज सुरक्षित नहीं?
मोहन भागवत हिंदू धर्म की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित नज़र आते हैं। वह कहते हैं कि सुरक्षा को लेकर अभी भी संघर्ष जारी है। उन्होंने कहा है, 'तो हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति, हिंदू समाज की सुरक्षा का प्रश्न है, उसकी लड़ाई चल रही है। अब विदेशी नहीं हैं, लेकिन विदेशी प्रभाव है, विदेश से होने वाले षड्यंत्र हैं। इस लड़ाई में लोगों में कट्टरता आएगी। नहीं होना चाहिए, फिर उग्र वक्तव्य आएँगे। लेकिन उसी समय अंदर की कुछ हमारी बातें हैं।'
'जय श्रीराम' के नारे से क्या होगा?
भागवत कहते हैं, 'श्रीराम हमारे स्वाभिमान के प्रतीक हैं। उनका मंदिर बनना चाहिए। उसका आंदोलन चलता है। लोग जय श्रीराम कहते हैं। जय श्रीराम कहने से जोश आता है। श्रीराम ने हर जाति-पंथ के लोगों को जोड़ा, लेकिन हमारे यहाँ अभी भी किसी के डोली पर चढ़ने पर किसी को चाबुक खाने पड़ते हैं। इसको बदलना है या नहीं?'
भागवत से जानिए, हिंदू दूसरे से कितने अलग
मोहन भागवत ने हिंदुओं की तुलना दूसरे धर्म के लोगों से की है। उन्होंने कहा है, 'हिंदू समाज यदि अपने को जानेगा तो अपना समाधान क्या है, इसे समझेगा। कट्टर ईसाई कहते हैं कि सारी दुनिया को ईसाई बना देंगे और जो नहीं बनेंगे, उनको हमारी दया पर रहना पड़ेगा या तो मरना पड़ेगा। कट्टर इसलाम वाले, सारे जो अब्राहमिक विचारधारा रखते हैं, ईश्वर को मानने वाले और नहीं मानने वाले लोग हैं, कम्युनिज़्म, कैपिटलिज्म सहित, सब ऐसे ही विचार रखते हैं कि सबको हमारा अनुसरण करना, स्वीकार करना पड़ेगा क्योंकि हम ही सही हैं, हमारी दया पर रहो या मत रहो। हम नष्ट कर देंगे।'
वह आगे कहते हैं, 'हिंदू का विश्व दृष्टिकोण क्या है? क्या हिंदू कभी ऐसा कहता है कि सबको हिंदू मानना पड़ेगा? हमारा ऐसा विचार ही नहीं है। हमारा विचार यह है कि हम सब लोगों के सामने एक उदाहरण पेश करेंगे। सब लोगों से संवाद करेंगे। जिसको अच्छा बनना है, वह हमारा अनुकरण करेगा। नहीं तो, हम उनका कुछ नहीं करेंगे, लेकिन वह हमारा कुछ न कर सकें, इसकी चिंता तो करनी पड़ेगी।
इन सब लड़ाइयों में अब हम सबल हो गए हैं। अब वे हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।'
'हिंदू इस देश में रहेगा', भागवत ने क्यों कहा?
खुद को हिंदुओं का सबसे बड़ा हितैषी घोषित करने वाले आरएसएस के प्रमुख ने कहा है, 'हमारी राजनीतिक स्वतंत्रता को छेड़ने की ताक़त अब किसी में नहीं है। इस देश में हिंदू रहेगा, हिंदू जाएगा नहीं, यह अब निश्चित हो गया है। हिंदू अब जागृत हो गया है। इसका उपयोग करके हमें अंदर की लड़ाई में विजय प्राप्त करना और हमारे पास जो समाधान है, वह प्रस्तुत करना है। आज हम ताक़त की स्थिति में हैं तो हमें वह बात करनी पड़ेगी क्योंकि अगर अभी नहीं, लेकिन पचास साल बाद हमें यह करना पड़ेगा।'
साक्षात्कार में एक जगह भागवत कहते हैं, 'हिंदू हमारी पहचान है, राष्ट्रीयता है, हिंदू हमारी प्रवृत्ति है। सबको अपना मानने की, सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति। मेरा ही सही, तुम्हारा ग़लत, ऐसा नहीं है। तुम्हारी जगह तुम्हारा ठीक, मेरी जगह मेरा ठीक। झगड़ा क्यों करें, मिलकर चलें। यही हिंदुत्व है। उसके मानने वाले लोगों की संख्या बनी रहती है तो भारत एक रहता है।' वैसे, इस इंटरव्यू में भागवत भी झगड़ा नहीं करने की बात कहते हैं और भारत को एक रहने पर जोर देते हैं। यानी वह भी भारत को जोड़े रहने पर जोर देते हैं।
वैसे, इस इंटरव्यू में न तो राहुल गांधी और न ही 'भारत जोड़ो यात्रा' से जुड़ा कुछ सवाल पूछा गया है और न ही भागवत ने इसको लेकर कोई जवाब दिया है, लेकिन कुछ मुद्दे हैं जिसपर राहुल गांधी और मोहन भागवत दोनों मुखर दिख रहे हैं।