मोदी भले करें ट्रंप का भव्य स्वागत, अमेरिका बंद करेगा भारत को छूट देना
राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के कुछ ही दिन पहले भारत को ‘विकासशील देशों’ की सूची से निकाल कर ‘विकसित देशों’ की सूची में डालने के अमेरिकी फ़ैसले से कई अहम सवाल खड़े होते हैं।
सवाल यह है कि क्या ट्रंप प्रशासन भारत पर दबाव डाल कर व्यापारिक रिश्तों में भारत से अतिरिक्त रियायत चाहता है क्या वह इस बहाने भारत की बाँह मरोड़ना चाहता है ताकि वह अमेरिकी हथियार, रक्षा उपकरण वगैरह खरीदे क्या व्हाइट हाउस रूस से एस-400 एअर डिफेन्स सिस्टम के सौदे में अभी भी अडंगा डालना चाहता है
क्या ट्रंप के कैंपेन मैनेजर राष्ट्रपति चुनाव में ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ की प्रखर राष्ट्रवादी छवि को और चमकाने में भारत का इस्तेमाल कर रहे हैं ग़ौर से देखा जाए तो ट्रंप एक मास्टर स्ट्रोक से ये तमाम मक़सद पूरे कर सकते हैं।
मामला क्या है
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएस ट्रेड रीप्रेजेन्टेटिव) के कार्यालय ने भारत को विकासशील देशों की सूची से निकाल कर विकसित देशों की सूची में डाल दिया। उसका तर्क है कि भारत विकासशील देशों की परिभाषा में फिट नहीं बैठता है, वह विश्व व्यापार संगठन की ओर से तय किए गए मानदंड यानी कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार के 0.50 प्रतिशत से ऊपर निकल चुका है। भारत कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 1.67 प्रतिशत व्यापार करता है। लिहाज़ा, इसे इस श्रेणी से बाहर किया जा रहा है।यह तो व्यापार कूटनीति की भाषा में लिपटी हुई चिकनी-चुपड़ी बात है। सच्चाई थोड़ा हट कर है। इसे समझने के लिए स्वयं राष्ट्रपति के ट्वीट और उनके आदेश पर नज़र डालना ठीक होगा। डोनल्ड ट्रंप ने इस फ़ैसले के कई महीने पहले यानी 26 जुलाई, 2019 को ही ट्वीट किया था :
“
‘दुनिया के सबसे धनी देश डब्लूटीओ के नियमों से बचने के लिए विकासशील देशों की परिभाषा का इस्तेमाल कर विशेष फ़ायदा उठाते हैं। अब और नहीं। मैंने यूएस ट्रेड रीप्रेजेन्टेटिव को निर्देश दिया है कि वह कार्रवाई करें ताकि अमेरिका की कीमत पर दूसरे देश धोखाधड़ी करना बंद करें।’
डोनल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका
The WTO is BROKEN when the world’s RICHEST countries claim to be developing countries to avoid WTO rules and get special treatment. NO more!!! Today I directed the U.S. Trade Representative to take action so that countries stop CHEATING the system at the expense of the USA!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) July 26, 2019
क्या होता है विकासशील देश
यूएस ट्रेड रीप्रेजेन्टेटिव कार्यालय विकासशील देश तय करने के 3 मानदंडों पर ध्यान देता है। वे हैं :- डब्लूटीओ के ऐसे सदस्य देश, जिनकी प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय यानी ग्रॉस नेशनल इनकम (जीएनआई) 12,375 अमेरिकी डॉलर हो।
- डब्लूटीओ के ऐसे देश, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जिनका हिस्सा कुल व्यापार के 0.5 प्रतिशत के दो तिहाई हिस्से के कम न हो।
- वे देश, जो ऑर्गनाइजेशन फ़ॉर इकोनॉमिक डेवलपमेंट (ओईसीडी), यूरोपीय संघ या जी-20 के सदस्य हों।
जो देश इन तीन श्रेणियों में से किसी एक में होंगे, वे विकासशील नहीं, विकसित देश माने जाएंगे।
इन तीन मानदंडों के हिसाब से भारत विकासशील देश नहीं है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इसका हिस्सा इस मानदंड से ज़्यादा है, भारत जी-20 का सदस्य भी है। भारत यूरोपीय संघ का सदस्य देश नहीं है, पर इसकी आर्थिक स्थिति यूरोपीय संघ के कई सदस्य देशों की स्थिति से बेहतर है। भारत की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू आय भी 12,375 डॉलर से ज्यादा है।
क्या कहना है यूएसटीआर का
यूएसटीआर ने एक हालिया बयान में कहा, ‘अमेरिकी काउंटरवेलिंग नियम के हिसाब से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जिन देशों का हिस्सा 0.5 प्रतिशत या उससे ज़्यादा है, वे विकसित देश हैं। इस तरह ब्राज़ील, भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम 2 प्रतिशत की विशेष छूट के हक़दार नहीं हैं।’सच तो यह भी है कि साल 2017 में कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत के निर्यात की हिस्सेदारी 2.1 प्रतिशत और निर्यात की हिस्सेदारी 2.6 प्रतिशत है।
भारत पर असर
विकासशील देश होने की वजह से अमेरिका में भारतीय उत्पादों पर 2 प्रतिशत कम टैक्स लगता है, अब यह सुविधा नहीं मिलेगी, यानी भारतीय उत्पादों पर फ्रांस या ब्रिटेन या किसी दूसरे विकसित देश की तरह ही टैक्स लगेगा। इससे भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे, उन्हें दूसरे विकसित देशों के साथ व्यापारिक होड़ में टिकना होगा। यह संभव है कि भारतीय उत्पाद कम बिकें।भारत जीपीएस से बाहर
इसके पहले अमेरिकी ने भारत को जनरलाइज्ड प्रीफरेंस सिस्टम से बाहर कर दिया था। इसका मतलब यह है कि जीपीएस में होने की वजह से भारतीय उत्पादों को आयात में छूट मिलती थी, जो अब नहीं मिलेगी। इस सूची में होने के कारण कई भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाज़ार में बेचे जा सकते थे, जो अब इस सूची से बाहर किए जाने के बाद वहाँ नहीं बेचे जा सकेंगे।
कुल मिला कर यह होगा कि एक तो कुछ भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाज़ार में नहीं बेचे जा सकेंगे, दूसरे, जो बेचे जा सकेंगे, उन पर पहले से ज़्यादा टैक्स चुकाना होगा।
अमेरिका फ़र्स्ट!
इसकी वजह बहुत ही साफ़ है। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पिछले चुनाव में अमेरिका फ़र्स्ट का नारा दिया था। उनका चुनाव प्रचार इस पर टिका हुआ था कि वे अमेरिकी कंपनियों, व्यापार और उद्योग जगत को सबसे ऊपर रखेंगे।ट्रंप दूसरे देशों को मिल रही रियायतें बंद करेंगे, अमेरिका उन व्यापार संधियों से बाहर निकल जाएगा, जिनसे उसे बहुत फ़ायदा नहीं है, अमेरिका आयात पर नकेल कसेगा और निर्यात पर ज़ोर देगा। इससे अमेरिका में व्यापार बढ़ेगा, निर्यात बढ़ेगा और वहाँ नई नौकरियाँ निकलेंगी।
इसी नीति के तहत ट्रंप ने शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहले नॉर्थ अमेरिका फ्री ट्रेड एरिया (नाफ़्टा) के क़रार को खारिज कर दिया। उन्होंने मेक्सिको की सीमा पर दीवार लगाने की धौंस देकर उसके साथ नया क़रार दिया, उसे अधिक अमेरिकी उत्पाद खरीदने पर विवश किया।
ट्रंप प्रशासन ने उसके बाद चीन पर दबाव बनाया, उसके ख़िलाफ़ व्यापार युद्ध छिड़ गया। अमेरिका ने चीन पर चीन ने अमेरिका पर टैक्स थोपा। तनाव बढ़ा तो बीते दिनों एक शुरुआती क़रार हुआ। इसके तहत चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर नया टैक्स नहीं लगाने का भरोसा दिया और नए उत्पाद आयात की छूट दी।
यह सच है कि अमेरिका में नई नौकरियाँ निकल रही हैं, ट्रंप उससे उत्साहित हैं। उन्हें नवंबर में चुनाव भी लड़ना है, उन्हें इस नीति को और आगे बढ़ना है। इसके तहत ही भारत को निशाने पर लिया गया है।