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पटेल-आंबेडकर के बहाने कांग्रेस को घेरने की कोशिश में मोदी

पटेल-आंबेडकर के बहाने कांग्रेस को घेरने की कोशिश में मोदी

नरेंद्र मोदी ने आंबेडकर, सुभाष और पटेल की अनदेखी के बहाने कांग्रेस को कटघरे में खड़े करने की कोशिश की है। इसका राजनीतिक मक़सद साफ़ है। 

चुनाव की बिसात पर कांग्रेस को मात देने के लिए प्रधानमंत्री सुभाष. पटेल और आंबेडकर को मुहरा बनाने की फिराक में है। वे इन बड़े नेताओ को उपेक्षित और 'विक्टिम' के रूप में पेश कर कांग्रेस को घेरने की कोशिश में हैं। नरेंद्र मोदी ने सोमनाथ मंदिर के एक कार्यक्रम में जवाहरलाल नेहरू का नाम लिए बग़ैर उन पर ज़ोरदार हमला बोल दिया। उन्होंने कहा कि एक ही परिवार के लोगों को महत्व देने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस और सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे बड़े नेताओं की अनदेखी की गई। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सुभाष और पटेल जैसे लोगों के दिशा निर्देश में देश चला होता तो आज हालत बिल्कुल अलग होते।मोदी ने कहा, ‘यह ग़लत है कि एक परिवार का महत्व बढ़ा चढ़ा कर दिखाने के लिए कई महान नेताओं के योगदान को जान बूझ कर भुला दिया गया। अब समय आ गया है कि ज़्यादा भारतीय सरदार पटेल, बाबासाहेब आंबेडकर और नेताजी सुभााष चंद्र बोस जैसे दिग्गजों के बारे में जानें।’ 

नरेंद्र मोदी ने एक सोची समझी रणनीति के तहत सुभाष और आंबेडकर की उपेक्षा का मुद्दा उठाया है। वे बोस, आंबेडकर और पटेल के नाम पर कांग्रेस को घेरना चाहते हैं। वे ऐसा नैरेटिव तैयार करना चाहते हैं जिससे यह लगे कि कांग्रेस ने वाक़ई इन लोगों के ख़िलाफ़ काम किया या उनकी उपेक्षा की और मोदी इस स्थिति को बदल कर उन नेताओं से न्याय करेंगे।

पर वे झूठ बोलते नज़र आते हैं। सुभाष चंद्र बोस की बनाई आज़ाद हिंद फ़ौज के सैनिकों पर धोखाधड़ी, यंत्रणा देने और हत्या करने के आरोप लगाए गए थे और  लाल क़िला में मुक़दमा चला था।

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आज़ाद हिंद फ़ौज़ पर चले मुक़दम के दौरान ख़ुद जवाहरलाल नेहरू ने वकील के रूप में पैरवी की थी। adityaaryaarchive.com

कांग्रेस पार्टी ने इस मुक़दमे में इन सैनिकों के पक्ष में वातावरण बनाने के लिए एक कमिटी बनाई और पूरे देश में अभियान चलाया था। गांधी इस अभियान की अगुआई कर रहे थे।

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आज़ाद हिंद फ़ौज़ के सैनिकों के साथ गांधीadityaaryarchive.com

कांग्रेस ने बनाई कमिटी

पार्टी ने वरिष्ठ और नामी वक़ीलों की एक टीम बनाई, जिसने इन सैनिकों की पैरवी की। कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरबख़्श सिंह और मेजर जनरल शहनवाज़ ख़ान की पैरवी के लिए बनी टीम में स्वयं जवाहर लाल नेहरू, कैलाश काटजू और तेज़बहादुर सप्रू थे। मुक़दमे के बाद सभी सैनिकों को रिहा कर दिया गया था।

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नेहरू के साथ आईएनए डीफेन्स कमिटी के दूसरे लोगadityaryaarchive.com

नेहरू मंत्रिमंडल में बोस के साथी

शहनवाज़ ख़ान बाद में कांग्रेस पार्टी में आए, सांसद चुने गए और नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल हुए। नेहरू सरकार ने नेताजी की मृत्यु के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए शहनवाज़ ख़ां की अगुवाई में ही एक समिति बनाई। उसके बाद की कांग्रेस सरकारों ने भी एक के बाद एक कई समितियां बनाईं। उनमें नेताजी के परिवार लोग भी शामिल थे। एक समिति में सुभाष के भतीजे शिशिर बोस शरीक थे। भारत सरकार के दस्तावेज़ से ज़ाहिर होता है कि नेहरू सरकार ने नेताजी की जर्मन पत्नी एमिली शेंकल और बेटी अनिता का ख्याल रखा था। सरकार उन्हें नियमित रूप से पैसे भेजती रही। 

नेहरू के क़ानून मंत्री थे आंबेडकर

इसी तरह मोदी ने आंबेडकर के मुद्दे पर भी झूठ बोला है। यह नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस पार्टी या नेहरू ने आंबेडकर की उपेक्षा की। आंबेडकर संविधान सभा के मुख्य व्यक्ति थे, उन्हें संविधान निर्माता माना जाता है। वे आज़ाद भारत के पहले क़ानून मंत्री थे।

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मंत्री के रूप में शपथ लेते हुए बीआर आंबेडकर, सामने नेहरूadityaaryaarchive.com

हिंदू महासभा ने आंबेडकर का किया था विरोध

सच तो यह है कि महिलाओं को बराबरी के अधिकार, गोकशी और दूसरे कई मुद्दों पर आंबेडकर का सबसे तीखा विरोध हिंदु महासभा के प्रतिनिधियों ने ही किया था। इसी तरह हिंदु मैरिज कोड के सवाल पर भी आंबेडकर और हिंदु महासभा बिल्कुल आमने सामने थे। 

पटेल ने आरएसएस को किया था प्रतिबंधित

इसी तरह नेहरू पटेल के नाम पर भी झूठ बोल रहे हैं। पटेल नेहरू मंत्रिमंडल में गृह मंत्री थे। यह पेटल ही थे, जिन्होंने महात्मा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था।

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नेहरू और पटेल में मित्रवत रिश्ते थे, लेकिन मोदी पटेल को 'विक्टिम' के रूप में पेश कर रहे हैंadityaaryarchive.com

लोकसभा चुनाव की तैयारी?

दरअसल मोदी अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। वे हर मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इस रणनीति के तहत ही उन्होंने बड़े नेताओं को चुना है और यह वातावरण बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस ने उनके साथ बड़ा अन्याय किया है। आंबेडकर के बारे में स्थिति ज़्यादा साफ़ है। पिछले चार सालों में दलितों पर हमले बढ़े हैं। आरक्षण के मुद्दे को बेवजह बार बार उठा दिया जाता है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आरक्षण व्यवस्था के पुनर्विचार की बात कह चुके हैं। दलित उत्पीड़न क़ानून में संशोधन के मुद्दे पर सरकार की किरकिरी हो चुकी है। भीमा कोरेगांव में बची खुची कसर भी पूरी हो गई। ऐसे में बीजेपी दलित वोटों को किसी भी मुद्दे पर तो एकजुट करने की कोशिश करे। मोदी का यह झूठ इसी कोशिश का नतीज़ा है। दलित प्रधानमंत्री की बातों पर कितना यक़ीन कर रहे हैं, इसका फ़ैसला तो अगले साल ही होगा।  

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