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नेता जी को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है!

नेता जी को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है!

नेता जी के यह बयान देने के बाद कि नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनें, राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर जोरदार चर्चा हो रही है कि आख़िर उन्होंने ऐसा क्यों कहा?

नेता जी (मुलायम सिंह यादव) ने मजमा लूट लिया। मोदी सरकार के लोकसभा में आख़िरी दिन सोनिया गाँधी के ठीक बगल में बैठे नेता जी ने अपने संबोधन में सदन में कहा, ‘जितने सदस्य इस बार जीत कर आए हैं, वे दोबारा जीत कर आएँ और मोदी जी दोबारा प्रधानमंत्री बनें’, इसे सुनकर संसद अवाक रह गया। पत्रकार दीर्घा में बैठे वरिष्ठ पत्रकार एक पल के लिए तो सकते में आ गए और दूसरे पल उनमें होड़ मच गई कि कौन इस एक्सक्लूसिव ख़बर को सबसे पहले डिजिटल रास्ते से दुनिया में फैला दे। 

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हर जगह नेता जी के बयान की चर्चा 

ख़बर के हवा में तैरते ही मीडिया दफ़्तरों, राजनीतिक पार्टियों के दफ़्तरों, चायखानों और हर किस्म के राजनीतिक चकल्लस के गलियारों में नेता जी का बयान बीच बहस था। सोशल मीडिया के सारे प्लेटफ़ॉर्म नेता जी के बयान पर हर रंग की टिप्पणियों से भर गए। अटकलबाज़ियों ने प्रतिद्वंदी सोशल मीडिया ग्रुपों को कन्फ़्यूज कर दिया।

  • नेता जी ने हमेशा ही उनके बारे में राय बनाने का दावा करने वालों को चकित किया है। 1977 में पहली बार मंत्री बनते वक़्त उनकी कुल घोषित हैसियत 75 हज़ार रुपये के आस-पास थी और अब उनके परिवार/कुनबे को लोग 75 हज़ार करोड़ की हैसियत का मानते हैं। लोग तख़मीना लगाते हैं कि इनके पंद्रह-बीस हज़ार करोड़ रुपये तो अमर सिंह ही मार ले गए।

कितनी संपत्ति है नेताजी के पास

सरगोशियाँ यहाँ तक हैं कि सहारा ग्रुप में नेता जी का सबसे बड़ा हिस्सा है। लखनऊ के शालीमार ग्रुप और एनसीआर का ACE ग्रुप भी उनकी बेनामी संपत्ति का अड्डा बताया जाता है। ईडी द्वारा रॉबर्ट वाड्रा की लंदन की कथित प्रॉपर्टी की जाँच तो हो रही है लेकिन लखनऊ की व्यावसायिक गतिविधियों के शीर्ष पर रहने वाले लोग दावा करते हैं कि लंदन समेत यूरोप, अमेरिका और दुबई में अखिलेश यादव, डिंपल यादव और प्रतीक यादव की संपत्तियाँ हैं। 

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सीबीआई ने दर्ज की थी प्राथमिकी

लोग अब भूल चुके होंगे कि 1 मार्च 2007 को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के चलते 5 मार्च 2007 को नेता जी (मुलायम सिंह यादव), अखिलेश यादव, डिंपल यादव, प्रतीक यादव और तमाम अन्य पर आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई ने पीई ( प्राथमिक जाँच, सीबीआई ज़्यादातर मामलों में एफ़आईआर दर्ज करने से पहले प्राथमिक जाँच दर्ज करती है) दर्ज की थी। बाद में दाख़िल स्टेटस रिपोर्ट में सीबीआई ने अनियमितताएँ पाईं थीं और कोर्ट को आगे की जाँच का भरोसा दिया था। लेकिन नेता जी की अकूत क्षमता देखते हुए उस जाँच का क्या हुआ, आज तक किसी को कोई पता नहीं।

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रिबेरो ने जाँच के लिए पीएम को लिखा पत्र

नेता जी के बहुत सारे राजनीतिक फ़ैसलों के पीछे सीबीआई द्वारा दर्ज इस प्राथमिकी का बड़ा रोल है। जब मोदी जी प्रधानमंत्री बने तो मशहूर रिटायर्ड आईपीएस ऑफ़िसर जे. एफ़. रिबेरो ने 23 जनवरी 2015 को उन्हें एक पत्र लिखा और इसमें कहा कि, ‘सीबीआई के पास बहुत सारे हाई प्रोफ़ाइल मामले जाँच के लिए पड़े हुए हैं, जिसमें से एक मामला (मुलायम सिंह और उनके परिवार की संपत्तियों की जाँच) यहाँ संलग्न कर रहा हूँ और यह मामला सीबीआई को पहले ही भेजा जा चुका है।’ रिबेरो ने लिखा, ‘हमें उम्मीद है कि आपकी सरकार के समय में देश को संदेश देने के लिए सरकार इस मामले में सीबीआई से जाँच पूरी करके कार्रवाई करके दिखाएगी।’ 

  • आईपीएस ऑफ़िसर जे. एफ़. रिबेरो आईआरआई (इंडिया रिजूविनेशन इनीशिएटिव) नाम की एक संस्था के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। यह संस्था हाईप्रोफ़ाइल सरकारी भ्रष्टाचार के मामलों पर विभिन्न एजेंसियों और मीडिया को लिखती रहती है और सामाजिक दबाव बनाती रहती है।

इस पत्र के तीन दिन पहले यानी 20 जनवरी 2015 को सीबीआई के तब के डायरेक्टर एके सिन्हा को नेता जी और उनके परिवार से संबंधित आय से अधिक धन जमा करने के मामले में 5 मार्च 2007 से दर्ज प्राथमिकी में जाँच तेज कर कार्रवाई करने के लिए भी आईआरआई ने पत्र लिखा था। 

चुप बैठी रही सीबीआई 

संसद और देश को यह जानने का हक़ है कि इस पूरे साढ़े चार साल में सीबीआई ने इस मामले में क्या किया अगर मामले के शिकायतकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी की मानें तो सीबीआई इस मामले में पूरे साढ़े चार साल हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। चतुर्वेदी के अनुसार, इसीलिए नेता जी ने प्रधानमंत्री को भरी संसद में धन्यवाद और आशीर्वाद दिया।

बिहार चुनाव से क्यों पीछे हटी सपा

इसके पहले जब बिहार विधानसभा के चुनावों में लालू और नीतीश ने पिछड़े वर्गों का मोर्चा बना लिया था और लालू यादव ने पटना के गाँधी मैदान में इस मोर्चे की ताक़त दिखाने के लिए रैला बुलाया था, तब अखिलेश यादव ने जोश दिखाते हुए अपने चाचा शिवपाल को उस रैले में भाषण देने के लिए भेज दिया था। लेकिन रैले के बाद शिवपाल यादव के पटना हवाई अड्डे से उड़कर लखनऊ हवाई अड्डे पर पहुँचने से पहले ही रामगोपाल यादव का दिल्ली से बयान जारी हुआ कि बिहार के पिछड़े मोर्चे में समाजवादी पार्टी शामिल नहीं होगी। इसके ठीक पहले लालू यादव परिवार से नेता जी के परिवार के एक वैवाहिक समारोह में मोदी जी ने खु़द मौज़ूद रहके काफ़ी समय बिताया था।

लंबी लिस्ट है राजनीतिक चतुराई की  

राजनीति के शुरुआती दिनों में नेता जी चौधरी चरण सिंह के साथ थे, फिर वह चौधरी देवीलाल और वीपी सिंह के साथ चले गए और उनके साथ भी ज़्यादा नहीं रुक सके। चंद्रशेखर ने जब विद्रोह किया तो वीपी सिंह को छोड़कर उनका हाथ पकड़ लिया। 

नेता जी ने फिर चंद्रशेखर को भी गच्चा दे दिया और राजीव गाँधी के सरकार से समर्थन वापस लेने पर उनके साथ चले गए। इसके बाद नेता जी ने उत्तर प्रदेश में वामपंथी पार्टियों के साथ गठबंधन किया और मित्रसेन यादव समेत कई नेताओं समेत पूरी पार्टी (सीपीआई) को ही लगभग ख़त्म कर दिया। नेता जी यहीं नहीं रुके, इसके बाद उन्होंने बसपा से गठबंधन किया और एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। पर 2 जून 1993, गेस्ट हाउस कांड में मायावती के साथ उन्होंने जो किया वह अब इतिहास बन चुका है। 1999 में नेता जी ने सोनिया गाँधी का समर्थन किया और ऐन मौक़े पर उनका भी साथ छोड़ दिया। 

  • 2008 में वाम मोर्चे के साथ रहते हुए भी परमाणु समझौते पर आख़िरी वक़्त में कांग्रेस के साथ चले गए और वाम मोर्चे के नेतृत्व वाला पीपुल्स फ़्रंट हैरान रह गया। 

राष्ट्रपति चुनाव में भी मारी पलटी

पीपुल्स फ़्रंट का हिस्सा रहते हुए भी राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने एनडीए का साथ दिया और कैप्टन लक्ष्मी सहगल को अकेले छोड़ते हुए एपीजे अब्दुल कलाम के साथ चले गए। राष्ट्रपति के अगले चुनाव में पहले नेता जी ने प्रणब मुखर्जी का विरोध किया और बाद में ममता बनर्जी के साथ साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कलाम, मनमोहन सिंह या सोमनाथ चटर्जी में से किसी एक को प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन प्रेस कॉन्फ़्रेंस के बाद सोनिया गाँधी से मुलाक़ात की और फिर पलटी मार ली और प्रणब मुखर्जी के समर्थन में आ गए। इसी तरह 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए राजद-जदयू-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया। इस महागठबंधन के नेता बने और फिर इससे भी पीछे हट गए।

अबूझ पहेली हैं नेता जी 

नेता जी ने बहुत ही कठिनाइयों से और बहुत अपमानजनक चुनौतियों का सामना करके अपना राजनीतिक और आर्थिक साम्राज्य बनाया है। जब वह अखिलेश यादव के पक्ष में पावर ट्रांसफ़र कर रहे थे तब भी अटकलबाज़ समझ नहीं पाए थे कि वे शिवपाल यादव को कैसे हैंडल करेंगे 

 - Satya Hindi

एक मंच पर मौजूद मुलायम, अखिलेश और शिवपाल यादव।

आज भी कोई समझ नहीं पा रहा है कि कैसे एक ही समय में अखिलेश की समाजवादी पार्टी की जानी दुश्मन रही मायावती की पार्टी से सपा का समझौता हो रहा है और शिवपाल की पार्टी अमित शाह और मोदी जी की आँखों में आशा की किरण जगाए हुए है। 

कई लोग इस बात से भी चकित रह जाते हैं कि एक ही समय में नेता जी का आशीर्वाद शिवपाल को भी प्राप्त है और अखिलेश को भी प्राप्त है।

लोकदल के नेता बनना चाहते थे मुलायम

पुराने लोग जानते हैं कि 1980 के दौरान आज के कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के जरिये नेता जी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी से एक फ़ेवर चाहते थे और उसके लिए वह मलिक को खुश करने की हर कोशिश किया करते थे। दरअसल, नेता जी तब उत्तर प्रदेश विधानसभा में मरहूम चौधरी चरण सिंह जी की पार्टी लोकदल के विधायक दल के नेता बनना चाहते थे जिससे वह नेता विरोधी दल बन जाते, बाद में इसी रूट से बन भी गए।

  • फिर ऐसा वक़्त भी आया कि सत्यपाल मलिक तो क्या चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह को विधायकों की ग़िनती में हराकर 1989 में नेता जी पहली बार मुख्यमंत्री बने और बरसों अजित सिंह नेताजी से एक फ़ोन कॉल के लिए भी तरस गए। अब चौधरी साहब का पोता जयंत चौधरी कुल 4 लोकसभा सीटों के लिए अखिलेश यादव के रहमो-करम पर निर्भर है।

सीएम कार्यालय पहुँचती है रिश्वत

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। एक अनुमान के अनुसार यहाँ अवैध बालू मोरंग गिट्टी आदि के खनन का क्षेत्र इतना बड़ा है कि लगभग एक हज़ार करोड़ की रिश्वत प्रतिवर्ष इसके ठेकों से मुख्यमंत्री कार्यालय पहुँचती है। इसके बाद दूसरा कमाऊ विभाग है आबकारी, छह सौ से आठ सौ करोड़ रुपये की सालाना रिश्वत यह मुख्यमंत्री कार्यालय पहुँचाता है। 

  • बीते दशक में हरे, नीले, भगवे हर रंग की सरकार में एक ही आबकारी ठेकेदार सारी सरकारों को रास आया है जिसका उत्तर प्रदेश के बाजार पर कब्जा बरक़रार है। इसके बाद औद्योगिक और रिहाइशी इलाक़ों के भूमि आवंटन, भूमि उपयोग की श्रेणी में परिवर्तन आदि क्षेत्र हैं जो तीन सौ से पांच सौ करोड़ तक की उगाही मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए करते हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राइवेटाइजेशन भी एक बहुत बड़ा मलाईदार क्षेत्र है, इससे भी राजनीतिक चंदे के रूप में अपार धन इकट्ठा होता है जो मुख्यमंत्रियों के निजी और पारिवारिक आर्थिक विकास में खप कर खो जाता है। 

नेता जी से ज़्यादा इस असलियत को कौन जानता है, जो ख़ुद इस राज्य के 3 बार मुख्यमंत्री रहे हैं और चौथी बार अपने बेटे को पूरे 5 साल के लिए मुख्यमंत्री बनवाकर राजनीतिक वारिसाना ट्रांसफ़र करने में सफल रहे हैं। अंत में यही कहा जा सकता है कि नेताजी सब समझते हैं और हम ही नेता जी को नहीं समझते!

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