मोदी यूएस मेंः मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बाइडेन पर दबाव बढ़ाया
रॉयटर्स के मुताबिक वॉशिंगटन में मानवाधिकारों की वकालत करने वाले लोगों ने मांग की है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन सार्वजनिक रूप से भारत के बिगड़ते मानवाधिकार रिकॉर्ड पर पीएम मोदी से बात करें। उन्होंने कहा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ निजी तौर पर इस मुद्दे को उठाने का अमेरिकी नजरिया अब तक नाकाम रहा है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने मोदी के नेतृत्व वाली हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तहत भारत में मानवाधिकारों के बारे में अमेरिकी कांग्रेस में सुनवाई का भी आह्वान किया। मोदी अमेरिका की चार दिवसीय यात्रा पर हैं।
विल्सन सेंटर में ग्लोबल फेलो और अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता (आईआरएफ) के अध्यक्ष नादीन मेन्ज़ा ने कहा, "हम भारत में ज़मीनी तथ्यों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते... और न ही अमेरिकी सरकार ऐसा कर सकती है।" मोदी सरकार के मानवाधिकार रिकॉर्ड के आलोचकों ने आरोप लगाया कि भारत में प्रेस की आजादी खतरे में है, अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों पर तमाम तरह के प्रतिबंध और अन्य प्रकार के भेदभाव हैं। भारत लोकतांत्रिक अधिकारों से पीछे हट चुका है। इसके कई उदाहरण भी उन्होंने दिए।
रॉयटर्स ने वॉशिंगटन में भारतीय दूतावास से टिप्पणी का अनुरोध किया लेकिन वहां से तुरंत जवाब नहीं मिला। हालांकि भारत सरकार पहले ही ऐसी आलोचनाओं को खारिज करते हुए कह चुकी है कि उसकी नीतियों का उद्देश्य सभी समुदायों का कल्याण करना है और वह कानून को समान रूप से लागू करती है।
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सूत्रों ने कहा कि व्हाइट हाउस मानवाधिकार संबंधी चिंताओं को पीएम मोदी के सामने उठा सकता है लेकिन उसने कहा कि बाइडेन इस मुद्दे पर मोदी को कोई "लेक्चर" नहीं देंगे।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए व्हाइट हाउस संपर्ककर्ता के रूप में काम कर चुके ज़की बरज़िनजी ने कहा, "हम जानते हैं कि बाइडेन प्रशासन और यूएस कांग्रेस भारत की स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ हैं।"
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले की विद्वान अंगना चटर्जी ने कहा, "भारत में मानवाधिकारों के हनन का स्तर अब इस हद तक पहुंच गया है कि इस मुद्दे को (बाइडेन द्वारा) सार्वजनिक रूप से उठाने की जरूरत है।" अमेरिकी कांग्रेस की केवल दो मुस्लिम महिला प्रतिनिधियों इल्हान उमर और रशीदा तलीब ने अलग से कहा कि वे भारतीय असंतुष्टों और अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार के आरोपों का हवाला देते हुए गुरुवार को कांग्रेस में मोदी के संबोधन का बहिष्कार करेंगी।
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आक्रामक हिंदू राष्ट्रवाद" ने "भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बहुत कम जगह छोड़ी है।
- बर्नी सैंडर्स, अमेरिकी सीनेटर, 22 जून 2023 सोर्सः रॉयटर्स
2014 में मोदी के सत्ता संभालने के बाद से, भारत विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 140वें स्थान से गिरकर इस वर्ष 161वें स्थान पर आ गया है, जो इसका सबसे निचला बिंदु है, जबकि लगातार पांच वर्षों से विश्व स्तर पर सबसे अधिक इंटरनेट शटडाउन की सूची में भी शीर्ष पर है।
आलोचकों ने 2019 के नागरिकता कानून (सीए-एनआरसी) की ओर भी इशारा किया, जिसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने मुस्लिम प्रवासियों को बाहर करने वाला "मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण" कानून बताया है। इसी तरह धर्मांतरण विरोधी कानून के जरिए भी संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार को चुनौती दी गई। 2019 में मुस्लिम-बहुल कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द कर दिया गया। ये चंद उदाहरण भारत की मानवाधिकारों के मामले में नाकामी बताते हैं।
अवैध निर्माण हटाने के नाम पर मुसलमानों की स्वामित्व वाली संपत्तियों को भी ध्वस्त किया गया। कर्नाटक में जब भाजपा सरकार थी तो क्लास में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।