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पाँच साल में मोदी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, नहीं दिया एक भी सवाल का जवाब 

पाँच साल में मोदी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, नहीं दिया एक भी सवाल का जवाब 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाँच साल के कार्यकाल ख़त्म होने के कगार पर पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की, पत्रकारों से कोई सवाल नहीं लिया। उनके बजाय अमित शाह बोलते रहे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पाँच साल के कार्यकाल ख़त्म होने के महज कुछ दिन पहले पहली बार एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन उसमें भी किसी पत्रकार का एक भी सवाल नहीं लिया, किसी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। उनकी ओर से भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह बोलते रहे। कम से कम दो मौकों पर सवाल पूछने वाले पत्रकार ने साफ़ कहा कि यह सवाल प्रधानमंत्री से हैं, मोदी ने उन सवालों के जवाब भी नहीं दिए। 

एक महिला पत्रकार ने नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने से जुड़ा सवाल पूछा और कहा कि इसका जवाब वह प्रधानमंत्री से चाहती है, मोदी ने अमित शाह की ओर इशारा किया। उस सवाल का जवाब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने ही दिया।

  • इसी तरह एक दूसरी महिला पत्रकार ने रफ़ाल सौदे से जुड़ा सवाल किया और उसने भी कहा कि यह सवाल प्रधानमंत्री से है। इस पर अमित शाह ने थोड़ी सख़्ती से कहा कि हर बात का जवाब प्रधानमंत्री ही दें, यह ज़रूरी नहींं है। इसके बाद उन्होंने ही उस सवाल का जवाब दिया। इसके अलावा दूसरे तमाम सवालों के जवाब शाह देते रहे। मोदी उनके बगल में बैठे मुस्कराते रहे। 

प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत अमित शाह ने की। उन्होंने काफ़ी विस्तार से बताया कि किस तरह नरेंद्र मोदी सरकार ने तमाम वायदे पूरे किए, देश का आर्थिक विकास किया, पिछड़ों और वंंचितों की सुध ली और सबका विकास किया। उन्होंने यह भी दावा किया बीजेपी के शासनकाल में देश का मान-सम्मान बढ़ा, खूब नाम हुआ। 

इसके बाद अमित शाह ने विस्तार से बताया कि किस तरह बीजेपी ने चुनाव प्रचार अभियान चलाया और उसमें मोदी ने कितनी मेहनत की और कहाँ-कहाँ गए। उन्होने कहा, 'देश की आज़ादी के बाद सबसे ज़्यादा विस्तृत और जनता तक पहुँचने वाला चुनाव अभियान नरेंद्र मोदी ने चलाया है। फरवरी से लेकर मई तक चले चुनाव अभियान में देश का कोई कोना नहीं बचा, जहाँ वह नहीं गए। उन्होंने इस दौरान 142 रैलियाँ की, जिसमें लाखों लोगों ने शिरकत की। बीजेपी के राष्ट्रीय नेताओं ने 1500 से अधिक चुनाव सभाएँ कीं।'

इसके बाद प्रधानमंत्री ने बोलना शुरू किया। उन्होने बहुत ही सीमित भाषण दिया, बहुत ही धीमे से बोलते रहे। वे बीच-बीच में मुस्कराते रहे, एक दो बार हँसे और अमित शाह की ओर देखा। उन्होंने कहा, 'कोई पार्टी पाँच साल तक सरकार चलाने के बाद चुनाव लड़े और दुबारा सरकार बनाए, यह मौका बहुत दिनों के बाद आया है। इस पाँच साल के दौरान जनता ने मेरा पूरा समर्थन किया, पूरा सहयोग दिया, मैं आभारी हूँ।' 

पिछले चुनाव में सट्टा बाज़ार ने मेरे चुनाव हारने और कांग्रेस के जीतने पर पैसा लगाया था। इसमें उन्हें करोड़ों का नुक़सान हुआ क्योंकि बीजेपी जीत गई। इस तरह मेरी सरकार की शुरुआत ही ईमानदारी से हुई थी।


नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

नरेंद्र मोदी ने कहा, 'मेरी पहली सभा मेरठ में हुई थी। यह वही जगह है, जहाँ से 1857 की क्रांति शुरू हुई थी। मेरी अंतिम सभा जहाँ हुई, वह जगह भी 1857 की क्रांति से जुड़ी हुई है।' 

हमें पूरा भरोसा है कि इस चुनाव में हमें 300 से ज़्यादा सीटें मिलेंगी, नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे।


अमित शाह, अध्यक्ष, बीजेपी

अमित शाह ने साफ़ किया कि बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलेगा, पर सरकार एनडीए की ही बनेगी। उनके कहने का मतलब साफ़ है कि पूर्ण बहुमत मिलने के बावजूद सहयोगियों को लेकर चला जाएगा और उन्हें सरकार में शामिल किया जाएगा। 

अमित शाह ने दूसरी पार्टियों के लिए दरवाजा खुले रखने का एलान करते हुए कहा कि बहुमत तो बीजेपी को ही मिलेगा, सरकार एनडीए की ही बनेगी। इसके बावजूद यदि कोई दूसरी पार्टी हमारा समर्थन करना चाहे तो उसका स्वागत है। एक तरह से बीजेपी ने यह संकेत दे दिया कि उसे दूसरे दलों से कोई परहेज़ नहीं है। 

ममता पर हमला

शाह ने ममता बनर्जी पर हमला करते हुए कहा कि राज्य में हमारे 80 कार्यकर्ता मारे गए। हम तो चुनाव पूरे देश में लड़ रहे हैं, पर हिंसा पश्चिम बंगाल में ही क्योंं हो रही है, उन्होंने सवाल किया। 

रफ़ाल सौदे से जुड़े सवालों के जवाब भी अमित शाह ने ही दिए। उन्होंने कहा कि राहुल गाँधी के पास कोई सबूत है तो वे उसे सुप्रीम कोर्ट के दे दें। 

इस पूरे प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक भी कठिन सवाल किसी ने नहीं पूछा, न ही किसी ने कोई विवादास्पद प्रश्न किया, किसी ने पाँच साल के कामकाज की चर्चा नहीं की, किसी ने गोरक्षा के नाम पर हुई गुंडागर्दी और अल्पसंख्यकों को निशाने पर लिए जाने की वारदात पर कुछ नहीं पूछा।

आर्थिक मुद्दे पर तो कोई चर्चा ही नहीं हुई। एक तरह से पूरा प्रेस कॉन्फ्रेंस ही मोदी के पक्ष में था। इसके बावजूद प्रधानमंत्री ने कोई सवाल नहीं लिया। 

यह बात कई लोगों के गले नहीं उतर रही है। चुनाव ख़त्म होने को है, अंतिम चरण का मतदान रविवार को है। ऐसे में यदि वह कोई विवादस्पद बात भी बोल देते, उन्हें या पार्टी को कोई राजनीतिक नुक़सान नहीं होता। यह सच है कि पिछले पाँच साल का कार्यकाल ऐसा कुछ नहीं रहा है, जिस पर वह गौरव कर सकें, पर अब उन्हें इसका कोई नुक़सान नहीं होता। वह समय बीत चुका है। ऐसे में उन्होंने सवाल क्यों नहीं लिया, यह वाकई अचरज की बात है। 

नरेंद्र मोदी के विरोधी भी यह मानते हैं कि संप्रेषण की कला में वह बेजोड़ हैं, अपनी बात रखने में उनका कोई जवाब नहीं है। वह अच्छे वक्ता हैं। मोदी इस मौके का फ़ायदा उठा कर विरोधियों पर हमला भी बोलते या अपनी सरकार का गुणगान भी करते तो ठीक था, उन्हें ऐसा करने का हक़ था। पर कुछ नहीं बोलना और कई सवाल छोड़ जाता है। क्या यह उनका अक्खड़पन है, क्या यह उनकी अपनी शैली है, क्या यह प्रेस को उसकी औकात बताने का उनका अपना तरीका है, ये सवाल लाज़िमी हैं। इन सवालों का जवाब मुश्किल है। 

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