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अब कृषि क़ानूनों पर और सख़्त रवैया अपनाएगी सरकार?

अब कृषि क़ानूनों पर और सख़्त रवैया अपनाएगी सरकार?

क्या केंद्र सरकार कृषि क़ानूनों पर पहले से अधिक सख़्त रुख अपनाएगी और बातचीत फिर शुरू करने में दिलचस्पी नहीं लेगी? क्या किसान संगठन ट्रैक्टर रैली और हिंसा के बाद अपने स्टैंड से पीछे हटेंगे? 

क्या केंद्र सरकार कृषि क़ानूनों पर पहले से अधिक सख़्त रुख अपनाएगी और बातचीत फिर शुरू करने में दिलचस्पी नहीं लेगी? क्या किसान संगठन मंगलवार को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद अपने पहले के स्टैंड से पीछे हटेंगे और कम पर राजी होकर किसी तरह आन्दोलन ख़त्म कर देंगे? क्या अगले एक-दो दिन में सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत होगी और यदि होगी तो किस आधार पर होगी?

मंगलवार को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद ये सवाल उठने लगे हैं। बता दें कि मंगलवार को किसानों की ट्रैक्टर परेड बेकाबू हो गई और हज़ारों किसान ट्रैक्टरों पर सवार होकर तयशुदा रूट से हट कर दिल्ली में दाखिल हो गए, जगह-जगह तोड़फोड़ हुई, लाठीचार्ज हुआ, आंसू गैस के गोले छोड़े गए। किसानों ने लाल किले पर चढ़ कर तिरंगा के साथ-साथ सिखों का पवित्र झंडा निशान साहिब भी फहरा दिया। एक किसान मारा गया और 18 पुलिसवाल घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराए गए। 

सरकार देगी नया प्रस्ताव?

'द प्रिंट' ने एक केंद्रीय मंत्री के हवाले से कहा है कि इसकी संभावना नहीं है कि केंद्र सरकार बातचीत के लिए कोई नया प्रस्ताव देगी।

इसने एक दूसरे बीजेपी नेता के हवाले से कहा है कि मंगलवार को हुई अप्रत्याशित घटना के बाद आन्दोलन बिल्कुल बदल जाएगा। 

सरकार ने इसके पहले तीनों कृषि क़ानूनों के क्रियान्वय पर डेढ़ साल के लिए रोक लगा देने और उस दौरान फिर से बातचीत करने की पेशकश की थी। लेकिन इसे किसान संगठनों ने यह कह कर खारिज कर दिया था कि वे तीन क़ानूनों को ख़त्म करने से कम पर किसी हाल में राजी नहीं होंगे। 

पर्यवेक्षकों का कहना है कि अब सरकार अपना रवैया और सख़्त कर सकती है। किसान आन्दोलन की बदनामी हुई है, इसके प्रति आम लोगों का समर्थन कम होगा और यह जिस तरह से एक जन आन्दोलन में तब्दील होने लगा था, उस पर विराम लग सकता है।

कड़ाई से पेश आएगी सरकार?

ऐसा होने से किसान आन्दोलन कमज़ोर होगा और इसके नेताओं की स्थिति ज़्यादा ज़ोर देने की नहीं रहेगी। ऐसे में सरकार अब कड़ाई से पेश आएगी। 

अब सरकार यह कह सकती है कि उसकी प्राथमिकता क़ानून व्यवस्था को मजबूत करने की है, तोड़फोड़ दुरुस्त करने की है। दूसरी ओर किसान संगठनों को यह देखना होगा कि जिन लोगों ने तयशुदा रूट से हट कर ट्रैक्टर परेड निकाली वे कौन थे।

किसान संगठनों को यह भी देखना होगा कि आन्दोलन पर उनकी कितनी पकड़ बनी हुई है और वहाँ जमा लोग उनकी बात सुनने को कितना तैयार हैं। कुछ किसानों ने उनके दिशा निर्देशों का उल्लंघन किया और उनकी बात नहीं सुनी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। 

किसान नेताओं को फँसाएगी सरकार?

मंगलवार की हिंसा के बाद सरकार को क़ानूनी कार्रवाई के ज़रिए किसान नेताओं पर दबाव डालने का मौका मिल जाएगा।

दिल्ली पुलिस ने जिस तरह सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाने वालों को फरवरी 2020 के दिल्ली दंगो में फंसाया और उनके नाम चार्जशीट या पूरक चार्जशीट में डाल दिए, वैसा ही इस मामले में भी करेगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।

पहले ही सरकार ने किसान नेताओं, आढ़तियों यहां तक कि आंदोलन का समर्थन करने वालों गायकों तक के ख़िलाएफ़ एनआईए और ईडी का इस्तेमाल किया था। 

यह तो बिल्कुल साफ है कि सरकार किसी सूरत में तीनों कृषि क़ानूनों को वापस नहीं लेगी। वह अब पहले से अधिक सख़्त रवैया अपना सकती है, पुलिस कार्रवाई के नाम पर किसान नेताओं को निशाने पर ले सकती है और किसान नेताओं को अपनी बात मानने पर मजबूर कर सकती है।

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