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मोदी सरकार का ही कबूलनामा- देश में भयावह बेरोजगारी!

मोदी सरकार का ही कबूलनामा- देश में भयावह बेरोजगारी!

लीजिए, अब मोदी सरकार ने ही रोजगार देने के अपने दावे और हकीकत को साफ कर दिया है। हर साल करोड़ों नौकरी नहीं मिली, लाखों भी नहीं! तो जानिए क्या हाल हुआ रोजगार का देश में।

2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब हर साल 2 करोड़ नौकरी का वादा किया गया था। इसके 8 साल बाद इसी मोदी सरकार ने संसद में बताया है कि इन सालों में कुल 7.22 लाख नौकरियाँ दी गई हैं जबकि 22 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किए। यानी हर साल 1 लाख से भी कम औसत रूप से क़रीब 90 हज़ार नौकरियाँ दी गई हैं। तो बाक़ी के करोड़ों लोग क्या कर रहे हैं? क्या वे बेरोजगार हैं? इसका जवाब तो नहीं दिया गया है, लेकिन बेरोजगारी बढ़ने की ख़बरें जब तब आती रही हैं। नौकरियाँ देने का ऐसा रिकॉर्ड रखने वाली मोदी सरकार ने पिछले महीने ही फिर से वादा किया है कि 2024 तक यानी क़रीब डेढ़ साल में अगले लोकसभा चुनाव तक 10 लाख नौकरियाँ दी जाएंगी। यह कैसे होगा? जो काम सरकार आठ साल में भी नहीं कर पाई वो डेढ़ साल में कैसे कर पाएगी?

नौकरियों पर पिछले आठ साल के मोदी सरकार के इसी रिकॉर्ड को लेकर बीजेपी के ही सांसद वरुण गांधी ने निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि संसद में सरकार द्वारा दिए गए ये आँकड़े बेरोजगारी का आलम बयां कर रहे हैं। उन्होंने पूछा है कि जब देश में क़रीब एक करोड़ स्वीकृत पद खाली हैं तब इस स्थिति का ज़िम्मेदार कौन है?

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार के ही इन आँकड़ों को लेकर हमला किया है। उन्होंने कहा है कि 22 करोड़ युवा 8 सालों में सरकारी नौकरियों के लिए कतार में लगे और नौकरी मिली सिर्फ़ 7.22 लाख को, यानी 1000 में से सिर्फ़ तीन को नौकरी। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर राजा कहकर तंज कसा है और कहा है कि बेरोज़गारी पर सवाल पूछने पर राजा को ग़ुस्सा आता है।

बता दें कि तेलंगाना के कांग्रेस सांसद अनुमुला रेवंत रेड्डी के सवाल के जवाब में सरकार ने बुधवार को लोकसभा को बताया कि पिछले आठ वर्षों में सरकारी नौकरियों के लिए प्राप्त आवेदनों में से 1 प्रतिशत से भी कम का चयन किया गया। 2014-15 से 2021-22 तक नौकरी के लिए 22.05 करोड़ आवेदन आए थे। इसमें से केवल 7.22 लाख या 0.33 प्रतिशत की सिफारिश केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में नियुक्ति के लिए की गई थी।

एक लिखित जवाब में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा को बताया है कि नियुक्ति के लिए अनुशंसित उम्मीदवारों की अधिकतम संख्या 1.47 लाख 2019-20 में थी। यह कोरोना महामारी से पहले की स्थिति थी। उसी साल लोकसभा के चुनाव भी हुए थे।

व्यापक रुझान बताता है कि 2014-15 से सरकारी नौकरियों के लिए चुने गए उम्मीदवारों की संख्या में गिरावट आ रही है। 2014-15 में नियुक्ति के लिए 1.30 लाख उम्मीदवारों की सिफारिश की गई थी, 2015-16 में 1.11 लाख, 2016-17 में 1.01 लाख, 2017-18 में 76,147, 2018-19 में 38,100, 2020-21 में 78,555 और 2021-22 में 38,850 हज़ार सिफारिश की गई थी।

वैसे, पिछले कुछ सालों में ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि देश में नौकरियाँ कम हुई हैं और बेरोजगारी दर बढ़ी है। अब अप्रैल महीने में बेरोजगारी का आँकड़ा ही देख लीजिये। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के अनुसार अप्रैल में बेरोजगारी दर 7.83% हो गई थी। यह मार्च में 7.60% थी। 

अप्रैल में शहरी बेरोजगारी दर बढ़कर 9.22% हो गई, जो पिछले महीने 8.28% थी। हालाँकि ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.29% से घटकर 7.18% हो गई थी। सबसे अधिक 34.5% बेरोजगारी दर हरियाणा में दर्ज की गई थी। इसके बाद राजस्थान में 28.8% थी।

अप्रैल महीने में ही समग्र श्रम भागीदारी दर को लेकर सीएमआईई का ही आँकड़ा आया था। रिपोर्ट के अनुसार 2017 और 2022 के बीच समग्र श्रम भागीदारी दर 46 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत हो गई थी।

आसान शब्दों में कहें तो कामकाजी आबादी में से जितने लोग श्रम में लगे हैं यानी रोजगार में लगे हैं, वही श्रम भागीदारी है। इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो रोजगार में नहीं हैं, लेकिन इसकी तलाश में हैं। श्रम भागीदारी दर 40 प्रतिशत होने का सीधा मतलब है कि क़रीब 60 फ़ीसदी लोगों ने नौकरी ढूंढना ही छोड़ दिया है। अपने लिए उचित नौकरी नहीं मिलने की वजह से निराश होकर ऐसे लोगों ने काम की तलाश ही छोड़ दी है।

उस रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं की स्थिति तो और बुरी थी। क़रीब 2.1 करोड़ कार्यबल से ग़ायब हो गईं, जबकि केवल 9 प्रतिशत योग्य आबादी को रोजगार मिला या नौकरी की तलाश में हैं।

 - Satya Hindi

क्या इसकी कल्पना की जा सकती है कि देश में प्रति 100 युवाओं में से 25 को कोई काम ही नहीं मिले या फिर किसी राज्य में तो 100 में से 47 युवाओं के पास कोई काम ही नहीं हो! पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था, विश्व गुरु बनने का सपना क्या ऐसे पूरा हो सकता है जिसमें इतनी बड़ी आबादी बिना किसी काम के बैठी हो?

भले ही इस सवाल की शक्ल कल्पनात्मक लगे, लेकिन देश में बेरोजगारी की सचाई ऐसी ही भयावह है। सरकारी आँकड़े ही इसकी तस्दीक करते हैं। मई महीने के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, 2021 की अप्रैल-जून तिमाही में देश भर के शहरी क्षेत्रों में युवा बेरोजगारी तेजी से बढ़कर 25.5% हो गई और उसके बाद भी दोहरे अंकों में बनी रही।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया और नौकरियों पर गंभीर प्रभाव डाला। यही वजह रही कि शहरी क्षेत्र में युवाओं में बेरोजगारी दर दहाई अंक में बनी रही।

इसका असर बेरोजगार युवाओं पर कैसा हो रहा है यह प्रयागराज में छात्रों के प्रदर्शन और उन पर पुलिस की कार्रवाई के मामले में या फिर अग्निवीर योजना के ख़िलाफ़ छात्रों के प्रदर्शन में देखा जा सकता है।

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में नौकरी नहीं मिलने की वजह से छात्रों ने सड़क पर उतरकर योगी सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया था। प्रयाग स्टेशन के रेलवे ट्रैक पर उतर छात्रों ने ट्रैक पर ही प्रदर्शन किया। बाद में पुलिस ने लाठीचार्ज कर भीड़ को ट्रैक से हटाया और छात्रों को जमकर पीटा। घटना के बाद कुछ वीडियो सामने आए जिसमें पुलिसकर्मियों को हॉस्टल में घुसकर छात्रों को बाहर निकालते, बंदूक की बट से दरवाजा तोड़ने का प्रयास करते देखा गया था। इसकी देश भर में आलोचना की गई थी।

बेरोजगारी के ख़िलाफ़ जिस तरह युवा प्रदर्शन कर रहे हैं, कुछ ऐसा ही प्रदर्शन वे अग्निवीर भर्ती योजना के ख़िलाफ़ भी कर रहे हैं। इस योजना पर युवाओं की आपत्ति इस बात को लेकर है कि वे अग्निवीर बनने के 4 साल बाद ही फिर से बेरोजगार हो जाएँगे। अग्निवीर योजना के ख़िलाफ़ और बेरोजगारी के ख़िलाफ़ देश भर से प्रदर्शन करने दिल्ली आने वाले युवाओं को पुलिस बीच में ही रोक रही है। तो सवाल है कि आख़िर रोजगार के लिए लोग क्यों प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार प्रदर्शन करने वालों को रोकने का प्रयास क्यों कर रही है? संसद में नौकरी के आँकड़ों को रखकर क्या सरकार ने खुद ही इन सवालों का जवाब नहीं दे दिया है।

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