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क्या हमारी 'ग़ज़ापट्टी' का नाम विपक्ष है?

क्या हमारी 'ग़ज़ापट्टी' का नाम विपक्ष है?

भारत में ईडी और विपक्ष के बीच की जंग बिलकुल हमास और इजराइल की जंग की तरह है। इस जंग में कोई तीसरा दखल दे ही नहीं सकता।

इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच की जंग में फास्फोरस बम चल रहे हैं, पूरी दुनिया चिंतित है, लेकिन हमारे यहां जंग दूसरे क़िस्म की है। हमारे यहाँ सरकार ने समूचे विपक्ष को ग़ज़ापट्टी समझ लिया है और ईडी को फास्फोरस बम बनाकर विपक्ष पर जमकर हमले शुरू कर दिए हैं। पहले सत्तापक्ष देश को कांग्रेस मुक्त बनाना चाहता था लेकिन अब लक्ष्य बदलकर शायद देश को विपक्ष मुक्त बनाने का है। अब जो भी सत्ता प्रतिष्ठान के ख़िलाफ़ है वो सरकार की दृष्टि में हमास जैसा आतंकवादी है। उसे येन-केन मैदान से हटाना ही है।

सत्ता प्रतिष्ठान की इस नीति का अगला शिकार झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हैं। ईडी ने उन्हें भी समन भेजकर पीएमएलए एक्ट के तहत अपना बयान दर्ज कराने को कहा था। सोरेन इस कार्रवाई के खिलाफ सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए थे लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हेमंत सोरेन के वकील पी. चिदंबरम ने हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा और जस्टिस आनंद सेन की पीठ को बताया कि यह साफ़ नहीं है कि सोरेन को भेजा गया समन बतौर गवाह भेजा गया है या फिर आरोपी। अब हाईकोर्ट 13 अक्तूबर को इस मामले में सुनवाई करेगा।

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संख्या पर हेमंत सोरेन ईडी के रडार पर आये थे। उन्हें 14 अगस्त को समन भेजा गया था। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर झारखंड में रक्षा मंत्रालय की जमीन को घोटाला कर बेचने का आरोप है। इस घोटाले में कई नौकरशाह, राजनेता और जमीन माफिया कथित रूप से शामिल हैं। मुख्यमंत्री  सोरेन के नज़दीकी पंकज मिश्रा भी इस घोटाले  में गिरफ्तार हो चुके हैं। इसी मामले में सोरेन से पूछताछ होनी थी। एक कथित अवैध खनन के मामले में भी बीते साल हेमंत सोरेन से ईडी ने पूछताछ की थी। ईडी के शिकार दूसरे नेताओं की ही तरह सोरेन ने याचिका में मांग की है कि ईडी के समन पर रोक लगाई जाए। ईडी द्वारा उन्हें समन भेजने के अधिकार क्षेत्र पर भी सोरेन ने सवाल उठाए। हेमंत सोरेन का आरोप है कि बदले की भावना से उनके खिलाफ यह कार्रवाई की जा रही है।

सत्ता प्रतिष्ठान के इस फास्फोरस बम की जद में अब तक जितने भी लोग आये हैं, सभी का एक ही आरोप है कि ईडी बदले की भावना से काम कर रही है। ईडी अब  इतनी ज्यादा स्वायत्त है कि जिसे चाहे उसे आरोपी बना सकती है। समन भेज सकती है, छापे मार सकती है और यदि तब भी बात न बने तो गिरफ्तारी भी कर सकती है। देवयोग से अभी तक देश में सत्तारूढ़ दल का एक भी नेता, कार्यकर्ता या समर्थक नौकरशाह ईडी का शिकार नहीं बना है। सिर्फ इसी वजह से ईडी भी शंका के घेरे में है लेकिन अब तक देश की अदालतों ने ईडी को काम करने से रोका नहीं है। शायद ईडी देश में पहली बार काम करती दिखाई दे रही है। ये बात और है कि ईडी एक आँख से देखकर कार्रवाई कर रही है। ईडी को सत्ता-प्रतिष्ठान से जुड़े लोग दूध से स्नान किये हुए दिखाई देते हैं।

पिछले एक दशक ने ईडी ने जितना काम सरकार के लिए किया है उतना पूरे सात दशक में नहीं किया। पिछली सरकारें ईडी से काम लेना जानती ही नहीं थीं। उन्हें पता ही नहीं था कि पिछली सरकारों ने कितना ताक़तवर फास्फोरस बम बनाकर रखा हुआ था। ईडी रूपी फास्फोरस बम से भगवान भी इंसान को नहीं बचा सकता। ये ताकत केवल और केवल सत्ता प्रतिष्ठान के पास है। और ये स्वाभाविक भी है। 

ईडी ने बिना राग-द्वेष के विपक्ष के नेताओं, पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की है। ईडी की निष्पक्षता की सराहना करने के बजाय विपक्ष उसे अदालतों में घसीटता है। ये क्या अच्छी बात है?

भारतीय फास्फोरस बम किसी अयातुल्लाह पर तो चलाया नहीं जा सकता इसलिए ईडी ने अमानतुल्लाह को अपने निशाने पर ले लिया। बेचारे अमानतुल्लाह इंद्र के बेटे जयंत की तरह इधर से उधर शरण मांगते फिर रहे हैं लेकिन कोई उन्हें शरण देने को तैयार नहीं है। खुद आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अपने विधायक अमानतुल्लाह को अभयदान देने की स्थिति में नहीं है। अब अमानतुल्लाह को कौन नारद आकर बताये कि उन्हें ईडी के फास्फोरस बम से केवल सत्ताप्रतिष्ठान ही बचा सकता है। उन्हें वहीं जाकर नतमस्तक होना चाहिए। जो नमस्तक नहीं होते उनका मस्तक धड़ से अलग होता ही है।

देश में शायद मैं अकेला व्यक्ति हूँ जो ईडी की स्वामिभक्ति का प्रशंसक हूँ। तमाम संवैधानिक संस्थाओं को ईडी की ही तरह आँखें बंद कर अपने मालिकों का हुक्म मानना चाहिए। हालाँकि अधिकांश संस्थाएं ऐसा कर भी रही हैं किन्तु वे ईडी का मुकाबला नहीं कर सकतीं। ईडी का मुकाबला करना आसान भी नहीं है। आसान काम तो कोई भी कर सकता है। कठिन काम केवल ईडी ही कर सकती है, जो वो कर रही है। देश को ईडी पर  नाज होना चाहिए। ईडी जो भी कर रही है राष्ट्रहित में कर रही है। राष्ट्रहित में किया जाने वाला हर काम दोष रहित माना जाता है। ईडी की कार्रवाई के लिए ईडी को, या सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता है। नहीं दिया जाना चाहिए। मैं तो ईडी के शिकार तमाम लोगों से कहता हूँ कि वे बेकार अदालतों के फेर में पड़े हैं उन्हें भी जयंत की तरह ईडी के अधिष्ठाता से क्षमा मांग लेनी चाहिए। जेल के सींखचों में तो प्राण नहीं देना पड़ेंगे।

भारत में ईडी और विपक्ष के बीच की जंग बिलकुल हमास और इजराइल की जंग की तरह है। इस जंग में कोई तीसरा दखल दे ही नहीं सकता। हमास मानवता का अपराधी है और भारत का विपक्ष लोकतंत्र का अपराधी। दोनों को सजा मिलना ही चाहिये। और ये सजा है हर तरह के आतंक का सफाया करना। जैसे फिलिस्तीन को हमास विहीन होना चाहिए वैसे ही भारत को विपक्ष विहीन। विपक्ष विहीन लोकतंत्र में विकास के एक-दो इंजन वाली रेलें कितनी तेजी से दौड़ेंगी, इसकी कल्पना आम जनता नहीं कर सकती। जनता को कल्पना करना आता ही कहाँ है? उसे तो कल्पना लोक में ले जाना पड़ता है। शायद इसीलिए मध्यप्रदेश की डगमगाती सरकार ने पूरे सूबे में जगह-जगह लोक ही लोक बनाने का ऐलान कर दिया है। 17 नबंवर को यदि जनता डबल इंजन की सरकार को चुनती है तो ये सारे लोक बन जायेंगे अन्यथा सबका राम नाम सत्य तो अपने आप हो जाएगा। चलिए, हम और आप दूर खड़े होकर ईडी, सीबीआई, आईटी का तमाशा देखें। तमाशा देखने का ये सबसे सुहाना मौसम है।

(राकेश अचल की फ़ेसबुक वाल से)

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