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सुस्त और चापलूस कोरोना विशेषज्ञों से खराब हो रहा है ब्रांड मोदी!

सुस्त और चापलूस कोरोना विशेषज्ञों से खराब हो रहा है ब्रांड मोदी!

क्या आनाकानी करने वाले और सुस्त व चापलूस कोरोना विशेषज्ञों की वजह से केंद्र सरकार कोरोना से निपटने में धीमे चल रहा है और क्या इससे नरेंद्र मोदी को राजनीतिक नुक़सान होगा? नरेंद्र मोदी कई चुनावी युद्ध जीत चुके हैं और भविष्य में भी जीत सकते हैं। पर वे कोविड के ख़िलाफ़ लड़ाई में हार बर्दाश्त नहीं कर सकते। अभी कोई कदम उठाने से बचना और भविष्य में उस पर अफ़सोस करना निश्चित रूप से सरकार की रणनीति नहीं है। 

ऐसे समय में जब टीके का विरोध बगैर किसी औचित्य के किया जा रहा है, यह कहावत बिल्कुल सही है कि 'रोकथाम उपचार से बेहतर है'। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह चुनाव वाले राज्यों में चुनाव के काम में व्यस्त हैं और बाबू व टेक्नोक्रेट एकीकृत टीका नीति तैयार करने को लेकर अनिच्छुक हैं। वे प्रधानमंत्री के पास भरोसेमंद समाधान के लिए किसी तरह का शोध या अध्ययन भी ले जाने को तैयार नहीं हैं।

इससे बुरा तो यह है कि कई लोगों के पास अधिकार होने और कुछ लोगों के दबदबे के कारण महामारी से निपटने का काम गंदला हो चुका है। अफ़सरशाही के कोरोना कप्तान यह सीख सकते हैं कि जो कुछ आज किया जा सकता है, उसे कल पर न छोड़ा जाए। 

महामारी का डर पूरी दुनिया पर छाया हुआ है और अर्थव्यवस्थाओं को मानो लकवा मार गया है। इसके बावजूद दुनिया के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य क्षेत्र के पेशेवर व प्रशासक लोग भलाई के बियाबान में खोए हुए हैं।

समाधान नहीं, प्रवचन!

किसी के पास कोई फौरी समाधान या उपचार नहीं है, सारे लोग सिर्फ प्रवचन दे रहे हैं। दवा कंपनियों के गुटों ने अपना तुच्छ प्रचार अभियान ऊँचा व तेज़ कर रखा है ताकि वे अपने मुनाफ़े के लिए दवाओं व मेडिकल थेरैपी को आगे बढ़ा सकें। कोविड कलयुग का कर्मफल है क्योंकि जब तक किसी एक म्यूटेन्ट की रोकथाम की जाती है, नई किस्म का वायरस आ जाता है।

फिर भी प्रशासक व उनके सलाहकार उस दानव पर जीत हासिल करने को लेकर एकमत नहीं है, जिसने दुनिया भर के 55 लाख लोगों की जान ले ली है। ओमिक्रॉन पहले के वायरस किस्म से 70 गुणा तेज़ी से फैल रहा है और 80 देशों को संक्रमित कर चुका है। इस संक्रमण को फैलने से रोकने के उपायों पर आम राय नहीं होने से हर देश अपनी रणनीति पर चल रहा है। कुछ देश अपनी सीमाओं को बंद कर रहे हैं तो कुछ दूसरे टीकाकरण को अनिवार्य कर रहे हैं।

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कुछ दूसरों ने तो इसे बस भगवान के भरोसे छोड़ दिया है। एक विशेषज्ञ तो लोगों को ओमिक्रॉन को लेकर चेतावनी दे रहे हैं जबकि इसने अभी तक पूरे देश में सौ का आँकड़ा भी पार नहीं किया है। एक दूसरे का मानना है कि भारत को अतिरिक्त खुराक़ की ज़रूरत नहीं है। ऐसी उलझन व अफरातफरी पहले कभी नहीं रही है। हमारी कोविड रणनीति पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।

उठ रहे हैं सवाल?

  • क्या कोविड को थोड़े समय या लंबे समय के लिए रोकने के लिए कोई रोडमैप या टीकाकरण  नीति है?
  • भारत ने बूस्टर शॉट में देरी क्यों की?
  • पाँच से अठारह साल के लोगों के लिए टीकाकरण पर सरकार साफ क्यों नहीं है?
  • अतिरिक्त स्टॉक होने के बावजूद सरकार पहली और दूसरी खुराक के बीच के समय को कम क्यों नहीं करती है?
  • ऐसे में जब अतिरिक्त स्टॉक का निर्यात हो रहा है या वे निजी प्रयोगशालाओं में एक्सपायर हो रही हैं, सरकार को बूस्टर डोज़ का आयात करने से किसने रोक रखा है?
  • क्या जबरदस्त तीसरी लहर से निपटने के लिए हमारे पास स्वास्थ्य सुविधाएं हैं?

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स्पष्ट नीति नहीं

ऊपर से नीचे तक की शासन संरचना में इन मुद्दों पर कुछ भी स्पष्ट नहीं है। भारत दुनिया का शायद अकेला देश है जहाँ कई लोग रोग की जाँच और उसके निदान के नुस्खे पर प्रयोग कर रहे हैं।  

टीका उत्पादकों के आवेदनों पर विचार करने के लिए इंडियन  कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च के अलावा सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन के तहत सबजेक्ट एक्सपर्ट कमेटी है। हाल ही में जब सिरम इंस्टीच्यूट ऑफ़ इंडिया ने दावा किया कि इसका कोविशील्ड बूस्टर डोज़ के लिए उपयुक्त है तो उसे कहा गया कि वह अतिरिक्त क्लिनिक डेटा पेश करे। इसी समय जीनोम सीक्वेंसिंग की शीर्ष संस्था इंडियन सार्स कोव टू कंसोर्शियम ऑन जीनोमिक्स (आईएनएसएसीओजी) ने बूस्टर डोज़ के मुद्दे पर एक सप्ताह के अंदर यू-टर्न ले लिया।

चालीस साल से ऊपर की उम्र के लोगों के लिए अतिरिक्त बूस्टर डोज़ की सिफ़ारिश करने के बाद इसने कहा कि भारत के इम्युनाइजेशन कार्यक्रम के लिए नहीं था, यह तो बस अधिक जोखिम वाली आबादी में अतिरिक्त कोविड टीके की संभावित भूमिका पर एक बहस मात्र के लिए था।

 विचित्र बात तो यह है कि आईएनएसएसीओजी ने यह ज़िम्मेदारी दूसरी एजेंसियों पर डाल दी।

इसने एक प्रेस बयान में कहा, "बूस्टर खुराक के प्रभाव के आकलन के लिए अभी और अधिक वैज्ञानिक प्रयोगों की आवश्यकता है। इन पर निगरानी रखने का काम नेशनल टेक्निकल एडवायज़री ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन (एनटीएजीआई) और नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड-19 (एनईजीवीएसी) का है।"

कौन देगा सुझाव?

बुनियादी तौर पर इसका मतलब यह हुआ कि सिर्फ एनटीएजीआई और एनईजीवीएसी ही सरकार को टीकाकरण पर कोई सुझाव दे सकती हैं। जब स्वास्थ्य मंत्री ने संसद में कहा कि बच्चों के लिए बूस्टर डोज़ पर निर्णय वैज्ञानिक आधार पर ही लिया जाएग तो कई केंद्रीय एजेन्सियाँ पीछे हट गईं। स्वास्थ्य मंत्री ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि सरकार दूसरी खुराक पर ध्यान देगी। उनका ज़ोर साफ तौर पर दूसरी खुराक पर था, बूस्टर खुराक पर नहीं। 

सरकार और टेलीविज़न पर बोलने वाले इसके हाई प्रोफ़ाइल प्रवक्ताओं ने दो खुराकों के बीच के समय को कम करने या पूर्ण रूप से टीकाकरण किए जा चुके लोगों के लिए बूस्टर डोज़ पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

बूस्टर डोज़

नीति आयोग के सदस्य और कोविड पर सरकार की बात रखने वाले सबसे मुखर आवाज़ डॉक्टर वी. के. पॉल ने कहा कि तीसरी खुराक (बूस्टर डोज़) पर निर्णय और अधिक वैज्ञानिक जानकारी और अध्ययन हासिल  करने के बाद ही लिया जाएगा। उन्होंने कहा, "हम आँकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं और शोध कार्य चल रहा है, लोगों को यह समझना चाहिए  कि कुछ देशों में बूस्टर डोज़ तब दिया गया जब सभी नागरिकों का पूर्ण टीकाकरण कर लिया गया।"  उन्होंने इसके आगे कहा,

पहले हमे पूर्ण टीकाकरण का काम पूरा करने पर ध्यान देना चाहिए। मेरा मानना है कि बूस्टर डोज़ तभी दिया जाए जब वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित शोध ऐसा करने को कहे।


डॉक्टर वी. के. पॉल, सदस्य, नीति आयोग

संतुष्ट है सरकार?

आईसीएमआर के एपिडेमियोलॉजी एंड कम्युनिकेबल डिज़ीज़ के प्रमुख डॉक्टर समीरन पांडा का कहना है कि शोर मचाने से कोई फ़ायदा नहीं है क्योंकि हमें अभी भी नहीं पता है कि आखिर में वायरस कैसा होने जा रहा है, हमें बुजुर्गों पर इसके असर के बारे में भी नहीं मालूम है।

महामारी के विनाश के दो साल बाद भी सत्ता प्रतिष्ठान अधिकतम भारतीयों का टीकाकरण करने व मत्यु दर और पॉजिटिविटी दर को कम रखने में अपनी कामयाबी पर संतुष्ट है। आबादी के 50 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों को दोनों खुराक व लगभग 75 प्रतिशत लोगों को एक खुराक दी जा चुकी है। महामारी को रोकने के मामले में भारत निश्चित रूप से दूसरों से आगे है। लेकिन आत्मसंतुष्ट होने और अधिक आत्मविश्वास होने से दुख होता है जैसाकि पहली लहर से साफ है।

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एक्सपायर हो रहे हैं टीके?

भारत टीका उत्पादन का अंतरराष्ट्रीय केंद्र है। फ़िलहाल, लगभग 20 करोड़ वॉयल स्टॉक में हैं। पर टीकाकरण की रफ़्तार धीमी हो गई है, जिसका कारण नहीं पता। दुर्भाग्यवश निजी टीकाकरण केंद्र सिर्फ दो हज़ार हैं और यह संख्या घटती जा रही है। टीका उत्पादकों को भविष्य के ऑर्डर के बारे में पता नहीं है। दूसरी ओर कई देश बच्चों के टीका और बूस्टर डोज़ की तरफ काफी तेज़ी से बढ़ रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने टीवी पर लोगों से अपील की है कि वे टीका के प्रति हिचक ख़त्म करें।

भारतीय प्रतिष्ठान व्यक्ति विशेष से संचालित होते हैं। यदि यह समय पर काम करने से इनकार कर दे तो अपने नेता को नाकाम कर देता है।

मोदी हर काम की दशा व दिशा तय करते हैं। उन्हें वोट हासिल करने के लिए तय समय से कुछ समय निकाल कर इसे दुरुस्त करना होगा। समय आ गया है कि वे अब बोलें ताकि भविष्य में पछताना न पड़े। वे कई चुनावी युद्ध जीत चुके हैं और भविष्य में भी जीत सकते हैं। पर वे कोविड के ख़िलाफ़ लड़ाई में हार बर्दाश्त नहीं कर सकते। अभी कोई कदम उठाने से बचना और भविष्य में उस पर अफ़सोस करना निश्चित रूप से सरकार की रणनीति नहीं है। 

('द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' से साभार)

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