+
मोदी सरकार अपनी मर्जी से आज चुनेगी नया चुनाव आयुक्त

मोदी सरकार अपनी मर्जी से आज चुनेगी नया चुनाव आयुक्त

केंद्रीय चुनाव आयोग में नया चुनाव आयुक्त चुनने के लिए बुधवार 7 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी के आवास पर बैठक होगी। यह पहली नियुक्ति होगी, जिसे सरकार अपनी मर्जी से नए कानून के मुताबिक करेगी। इसमें भारत के चीफ जस्टिस की कोई भूमिका नहीं होगी। विपक्ष अगर आपत्ति भी करेगा, तो भी चयन समिति में बहुमत सरकार का है। कुल मिलाकर पीएम मोदी की मर्जी का चुनाव आयुक्त चुना जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए 7 फरवरी को पहली बैठक की अध्यक्षता करने वाले हैं। चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे का कार्यकाल 15 फरवरी को खत्म हो रहा है। उनकी जगह नया चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जाना है। पीएम मोदी की यह बैठक मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023 के तहत आयोजित की जाएगी।

प्रधानमंत्री के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी भी इस कमेटी के सदस्य हैं। लेकिन अब विपक्षी सदस्य की कोई भूमिका नहीं है। क्योंकि पीएम अपनी मर्जी और पसंद से किसी की भी नियुक्ति कर सकते हैं। पहले इस चयन समिति में भारत के चीफ जस्टिस भी सदस्य होते थे। 

नया चुनाव आयुक्त चुनने के लिए बुधवार शाम 7.30 बजे पीएमओ में यह बैठक होने की उम्मीद है। कांग्रेस की ओर से अभी फैसला नहीं हुआ है कि अधीर रंजन चौधरी इसमें शामिल होंगे या नहीं। कांग्रेस इस बैठक का बहिष्कार भी कर सकती है। क्योंकि बतौर सदस्य अब विपक्ष की इस कमेटी में कोई भूमिका नहीं है।

नए अधिनियम के तहत, प्रधान मंत्री, उनके द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री और विपक्ष के नेता या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता चयन समिति में होंगे जो राष्ट्रपति को किसी उम्मीदवार की सिफारिश करेंगे। राष्ट्रपति उस उम्मीदवार को चुनाव आयुक्त नियुक्त कर देंगे। चयन प्रक्रिया में दो समितियाँ शामिल हैं - प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय चयन समिति और कानून मंत्री और दो सचिव स्तर के अधिकारियों की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खोज समिति। यानी खोज समिति (सर्च कमेटी) ने जिन नामों को खोजा होगा, वो पीएम वाली तीन सदस्यीय समिति को जानकारी देगी। फिर पीएम वाली कमेटी उन नामों में से किसी को चुनेगी। लेकिन यह महज सरकारी खानापूरी है। दोनों ही समितियों में सरकार का ही बहुमत है तो उसी की मर्जी से चयन होगा। विपक्षी सदस्य की अब कोई भूमिका नहीं है। यहां तक की उसकी राय मानने को भी सरकार अब बाध्य नहीं है।

12 दिसंबर को राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) के पारित होने के दौरान, विपक्ष ने ध्वनि मत से पहले बहिष्कार किया और आरोप लगाया कि इसके प्रावधान "अलोकतांत्रिक" हैं। हालांकि, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने कहा कि विधेयक पूरी तरह से शीर्ष अदालत के निर्देशों के अनुरूप है।

इस विधेयक को 2 जनवरी, 2024 को एक अधिनियम बनाया गया। नियुक्ति प्रक्रिया ऐसे समय में चल रही है जब चुनाव आयोग 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों में व्यस्त है। इसके अलावा सरकार की एक कमेटी एक चुनाव एक देश के प्रस्ताव पर भी राजनीतिक दलों, संगठनों की राय जानने में व्यस्त है।

देश के जाने-माने न्यायविदों और कानून के जानकारों ने सरकार के इस विधेयक और बाद में नियम बनने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि देश की संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियों में विपक्ष और न्यायपालिका भी भूमिका होना चाहिए, ताकि वो संवैधानिक संस्था तटस्थ रहे। अगर संवैधानिक संस्थाओं में सरकारी धुन पर नाचने वाले लोग उस संस्था को संचालित करेंगे तो सारे फैसले एकतरफा होंगे। इसलिए यह अधिनियम सरकार की मनमर्जी को जाहिर करेगा।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें