वर्मा को हटाने की सिफ़ारिश करने वाले सीकरी ने नए पद का प्रस्ताव ठुकराया
सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने की सिफ़ारिश करने के बाद सुर्खियों में आए जस्टिस ए. के. सीकरी ने विदेश में नए पद पर भेजे जाने के सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। रविवार को उन्होंने कॉमनवेल्थ सेक्रटेरियट ट्राइब्यूनल में जाने से इनकार कर दिया है। उन्होने क़ानून मंत्रालय को ख़त लिख कर कहा है कि वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते। नरेंद्र मोदी सरकार ने एक महीने पहले उन्हें लंदन स्थित इस ट्राइब्यूनल में भारत का प्रतिनिधि बना कर भेजने की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने उस समय स्वीकार कर लिया था। पर इस पर विवाद होने के बाद उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है।
कौन हैं जस्टिस सीकरी?
ये वही सीकरी हैं, जो सीबीआई के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने के लिए बनी समिति में थे और जिनके वोट से वर्मा को हटाने का फ़ैसला 2-1 से लिया गया था। उनके साथ प्रधानमंत्री ने वर्मा को हटाने की सिफ़ारिश की थी,जबकि समिति के तीसरे सदस्य और कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसका विरोध किया था।क्या है विवाद?
विवाद की शुरुआत जस्टिस सीकरी की नियुक्ति की ख़बर फैलने के साथ ही हो गई। सोशल मीडिया पर लोग तरह तरह की प्रतिक्रियाएँ देने लगे और उनकी नियुक्ति को वर्मा को हटाने की सि़फ़ारिश से जोड़ कर देखा जाने लगा, हालाँकि उनकी नियुक्त एक महीने पहले ही हो चुकी थी।यह भी पढ़ें: क्या मोदी के दबाव में चयन समिति ने आलोक वर्मा को हटाया?
जस्टिस सीकरी उस पैनल में थे जिसमें सरकार एक पक्ष के रूप मे थी और उसी सरकार ने उन्हें इस अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल के लिए मनोनीत किया था। पहले मुख्य न्यायाधीश गोगोई इस पैनल में थे, बाद में उन्होंने ख़ुद को इससे यह कह कर अलग कर लिया कि उन्होंने पहले इससे जुड़े एक मामले में फ़ैसला दिया था। उसके बाद उन्होंने जस्टिस सीकरी का नाम दिया था। लेकिन जस्टिस गोगई को यह पता था कि जस्टिस सीकरी को सरकार कॉमनवेल्थ ट्राइब्यूनल भेज रही है, क्योंकि सरकार ने उस पर फ़ैसला लेने से पहले उनसे पूछा था। अब सवाल यह उठता है कि गोगोई ने जस्टिस सीकरी का नाम क्यों सुझाया था। दूसरी बात यह है कि जस्टिस सीकरी ख़ुद भी यह कह सकते थे कि उनका इस पैनल में जाना ठीक नहीं होगा। पर ऐसा नहीं हुआ। इस पर कुछ लोगों ने प्रतिक्रिया जताई है। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने ट्वीट कर कहा है कि जस्टिस सीकरी को पैनल में शामिल होने से पहले अपनी नियुक्ति के बारे में एलान कर देना चाहिए था। जयसिह ने ट्वीट कर नैतिकता का सवाल उठाया है।
Justice Sikri should have disclosed this before he sat on the committee as the nominee of the Chief Justice of India , the decision is vitiated for this reason also , and the post requires “high moral character “? Where is the constitutional morality ? https://t.co/PgBbDNG7AJ
— indira jaising (@IJaising) January 13, 2019
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने ट्वीट कर मुख्य न्यायाधीश पर ही अंगुली उठाई है।
Then simple question is: Why CJI put Justice Sikri on the high-power committee deciding Verma's case when CJI himself had given consent to Govt's proposal on nomination of Justice Sikri at CSAT, London after his coming retirement? https://t.co/9f925KYKmB
— Om Thanvi (@omthanvi) January 13, 2019
मामला विवाद में इसलिए आया कि सीबीआई मामलों की जाँच के लिए नियुक्त सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ए. के. पटनायक ने कहा था कि आलोक वर्मा के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप सही नहीं पाए गए थे। उनके मुताबिक़ आलोक वर्मा के ख़िलाफ़ लगाए गए दस में से छह आरोप ग़लत थे। चार में और जाँच की आवश्यकता थी। जस्टिस पटनायक ने कहा था, 'पैनेल सीबीआई निदेशक को हटा सकती है, पर इतनी जल्दबाज़ी क्यों? हम एक संस्था से डील कर रहे हैं। इस मामले में पूरा दिमाग लगाया जाना चाहिए। ख़ासतौर पर सुप्रीम कोर्ट के जज को। जो कुछ सीवीसी कहते हैं वह अंतिम सत्य नहीं हो सकता।'
पहले श्रीलंका भी अपना उम्मीदवार खड़ा करना चाहता था, पर बाद में वह पीछे हट गया। इसके बाद भारत के उम्मीदवार का रास्ता साफ़ हो गया। भारत सरकार ने कुछ दिन पहले ही इसकी पुष्टि कर दी। कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरियट तीन तरह के मामलों की सुनवाई करता है। सेक्रेटेरियट के मामले, सेक्रेटेरेयट के कर्मचारियों के मामले और ऐसे मामले जिनमें किसी ने सेक्रेटेरियट से कोई लिखित क़रार किया हो।
बहरहाल, जस्टिस सीकरी कॉमनवेल्थ नहीं जा रहे हैं। अब भारत सरकार उनके बजाय किसी और को उस पद पर मनोनीत करेगी। लेकिन लगता है कि यह विवाद अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है। मोदी सरकार ने इस पर कोई सफ़ाई नहीं दी है। उस सफ़ाई के बाद विपक्ष पलटवार कर सकती है और मामला गर्म हो सकता है।