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क्या बाइडन का राष्ट्रपति बनना मोदी सरकार को चुभ रहा है?

क्या बाइडन का राष्ट्रपति बनना मोदी सरकार को चुभ रहा है?

डोनल्ड ट्रंप की जगह जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने से भारत की नरेंद्र मोदी सरकार क्यों सहज नहीं है, सवाल यह भी है कि क्या उसे कमला हैरिस के उप-राष्ट्रपति बनने पर भी खुशी नहीं है?

अमेरिका में हुए उलट-फेर पर भारत के सत्ता प्रतिष्ठान का पूरी तरह से सहज होना अभी बाक़ी है। किसान आंदोलन के हो-हल्ले में इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया कि बाइडन की उपलब्धि पर बीजेपी और संघ सहित राष्ट्रवादी संगठनों की तरफ़ से कोई उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं हुई है।

सन्नाटे का मास्क

संदेश ऐसा गया जैसे अमेरिका में वोटों की गिनती अभी पूरी ही नहीं हुई है। ऐसे मौक़ों पर मुखर रहने वाले लोगों के एक बड़े तबके ने भी, जिसमें विदेशी मामलों पर सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाले बुद्धिजीवी शामिल हैं, सन्नाटे का मास्क ताने रखा। माहौल कुछ ऐसा है जैसे तमाम पूजा-पाठों और हवन-यज्ञों के बावजूद अमेरिका में कोई अनहोनी घट गई जिसके कारण आने वाले सालों के लिए पहले से तय खेलों के मंडप बिगड़ गए हैं।

कमला हैरिस से खुश नहीं भारत?

क्या आश्चर्यजनक नहीं लगता कि महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में घटी एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय घटना, जिसकी जड़ें ‘भारत माता’ के चरणों की मिट्टी से सनी हैं, को लेकर भी न तो अयोध्या में दीये जलाए गए और न ही नागपुर में कोई आतिशबाजी की गई? 

दो सौ से अधिक वर्षों के अमेरिकी संसदीय इतिहास में पहली बार एक महिला और भारतीय मूल की विद्वान माँ की प्रतिभावान अश्वेत बेटी कमला हैरिस के उप-राष्ट्रपति पद की शपथ लेने को भी किसी अन्य मुल्क का अंदरूनी मामला होने जैसा मानकर निपटा दिया गया।

बाइडन के ह्वाईट हाउस में प्रवेश को लेकर भारत का सत्ता प्रतिष्ठान अंतरराष्ट्रीय राजनीति की ज़रूरतों के मान से कुछ ज़्यादा ही चौकन्ना हो गया लगता है। ’अबकी बार, ट्रम्प सरकार’ के दूध से जली नई दिल्ली की कूटनीति अब ठंडी छाछ को भी फूंक-फूंककर पी रही है।

उल्टा पड़ा मोदी का दाँव?

संदेश ऐसा जा रहा है कि अमेरिकी प्रजातंत्र के जीवन में उपस्थित हुए महान क्षण का भारतीय गणतंत्र के लिए भी बड़ा अवसर बनना न सिर्फ़ शेष है, बल्कि वह और दूर खिसक गया है। जिस तरह अमेरिकी नागरिक दो भागों में बंटकर ट्रंप की वापसी की आशंकाओं से डरे-सहमे हुए हैं, शायद उसी तरह नई दिल्ली का साउथ ब्लॉक (विदेश मंत्रालय) भी चौकन्ना नज़र आ रहा है !

 - Satya Hindi

तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के साथ नरेंद्र मोदी

संयोग कुछ ऐसा रहा कि जनसंघ-बीजेपी के नेताओं को डेमोक्रेटिक राष्ट्रपतियों के साथ काम करने के अवसर रिपब्लिकन ट्रंप के मुक़ाबले कम अवधि के मिले और उनकी स्मृतियाँ भी मधुर नहीं रहीं। अटलजी के जनता पार्टी शासन (1977-1979) में विदेश मंत्री बनने के केवल दो माह पूर्व ही जिमी कार्टर (डेमोक्रेटिक) राष्ट्रपति बने थे। जनता पार्टी सरकार ही लम्बी नहीं चल पायी और अपने अंतर्विरोधों के चलते 28 महीनों में ही गिर गई।

डेमोक्रेट्स से संघ की दूरी?

अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व (1998-2004) में पहले बिल क्लिंटन (डेमोक्रेटिक) और फिर जॉर्ज बुश (रिपब्लिकन) वहाँ राष्ट्रपति रहे। क्लिंटन की मार्च 2000 में भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर कश्मीर में अनंतनाग ज़िले के छत्तीसिंहपुरा गाँव में जघन्य सिख हत्याकांड हो गया।

बुश के कार्यकाल के दौरान फ़रवरी 2002 में गुजरात में गोधरा कांड हो गया। तब नरेंद्र मोदी गुजरात में मुख्यमंत्री थे। बीजेपी के किसी राष्ट्रीय नायक का सबसे लम्बा सफ़र नरेंद्र मोदी के रूप में रिपब्लिकन पार्टी के ट्रम्प के साथ ही गुज़रा है और अधिकांश मुद्दों पर दोनों नेताओं के बीच कमोबेश सहमति भी रही।

बराक ओबामा (डेमोक्रेट) के कार्यकाल में मोदी ने दो साल से कुछ अधिक तक उनसे मित्रता निभाई, पर उस दौरान उल्लेखनीय कुछ भी नहीं हुआ। जब जनवरी, 2015 में ओबामा भारत यात्रा पर आए तब मोदी को दिल्ली पहुँचे साल भर भी नहीं हुआ था।

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तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ नरेंद्र मोदी

अपनी यात्रा की समाप्ति के बाद सऊदी अरब रवाना होते समय ओबामा ने अपनी इस अपील से सनसनी पैदा कर दी कि- ‘एक ऐसे देश में, जहाँ हिंदुओं और अल्पसंख्यकों में संघर्ष का इतिहास रहा हो, धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए।’ ओबामा ने इसे भारत का संवैधानिक दायित्व भी निरूपित किया।

राष्ट्रपति पद छोड़ने के दो वर्ष बाद जब ओबामा एक मीडिया हाउस के कार्यक्रम में भाग लेने भारत आए तो फिर कह गए, 

"भारत के लिए ज़रूरी है कि वह अपनी मुसलिम आबादी का ठीक से ख़याल रखे। यह आबादी भारत में एकाकार हो चुकी है और अपने आपको भारतीय ही मानती है।"


बराक औबामा, पूर्व राष्ट्रपति, अमेरिका

बाइडन क्यों पसंद नहीं?

आश्चर्य नहीं अगर बाइडन के पदारोहण को नई दिल्ली में ओबामा की ही वैचारिक वापसी के रूप में देखा जा रहा हो। याद रहे कि ओबामा ने बाइडन के चुनाव प्रचार में पूरा ज़ोर लगा दिया था और बाइडन ने भी ओबामा के कई सहयोगियों को अपनी टीम में शामिल किया है।

कमला हैरिस को मानवाधिकारों के मामलों में वामपंथी विचारों की पोषक और पाकिस्तान के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रुख़ रखने वाली नेता समझा जाता है। यह मुमकिन है कि बाइडन राष्ट्रपति पद के दूसरे कार्यकाल की अपनी दावेदारी छोड़ दें और हैरिस को ही राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने का मौका दे दें।

संघ की राजनीति के मुफ़ीद रिपब्लिकन?

बाइडन ने राष्ट्रपति का पद सम्भालने के बाद पहले फ़ोन कॉल्स अपने उन दो पड़ौसी देशों (कनाडा और मेक्सिको) के प्रमुखों को किए, जिनके साथ ट्रम्प के रिश्ते ज़्यादा मधुर नहीं थे। भारत समेत दुनिया के बाक़ी राष्ट्र भी प्रतीक्षा में होंगे।

ओबामा ने 2009 में राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह को अपने पहले राजकीय अतिथि के रूप में वाशिंगटन आमंत्रित किया था। देखना दिलचस्प होगा कि कोरोना पर क़ाबू पा लेने के बाद अमेरिका और भारत दोनों ही देशों में पहला विदेशी मेहमान कौन बनता है!

डोनल्ड ट्रम्प भारत की राजनीति को एक ऐसे स्वप्नलोक की यात्रा पर ले जा रहे थे, जिसमें केवल स्वर्ग की सम्पन्नता के ही नज़ारे थे; ख़ाली जगहें सिर्फ़ देशों, समाजों और नागरिकों के बीच दीवारें खड़ी करने के उपयोग के लिए सुरक्षित थीं। इसीलिए ट्रम्प ने वाशिंगटन छोड़ने के पहले आख़िरी यात्रा उस दीवार को देखने के लिए टेक्सस राज्य की की जिसे वे मेक्सिको के नागरिकों को अमेरिका में प्रवेश से रोकने के लिए बनवा रहे थे।

बाइडन ने अपना काम सम्भालने के पहले ही दिन ट्रम्प प्रशासन के जिन तमाम बड़े फ़ैसलों को उलटा, उनमें उस दीवार का निर्माण कार्य रोकना भी शामिल है। बाइडन ने दीवारों को गिराने का काम अभी अमेरिका में ही शुरू किया है और आश्चर्य है कि उसके मलबे के कतरे इतनी दूर भी आँखों में चुभ रहे हैं।

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