वैक्सीन नीति की आलोचना पर केंद्र की यह कैसी 'उदार नीति'?
देश में वैक्सीन की कमी और सुप्रीम कोर्ट से लेकर आम लोगों द्वारा वैक्सीन नीति की आलोचनाओं के बीच केंद्र सरकार ने सफ़ाई दी है। इसने असमानता की ओर इशारा करने वाली मीडिया रिपोर्टों को 'ग़लत और अटकल लगाने वाला' क़रार दिया है। इसके साथ ही इसने कहा है कि उसने उदार वैक्सीन नीति अपनाई है और 1 मई से लागू होने वाली वैक्सीन नीति राज्य पर बोझ को कम करती है।
सरकार की यह प्रतिक्रिया तब आई है जब दो दिन पहले ही यह ख़बर आई थी कि सरकार ने निजी क्षेत्र को देने के लिए जितने कोरोना टीके सुरक्षित रखे, उसमें से आधा टीके सिर्फ 9 कॉरपोरेट अस्पतालों ने ले लिए, जिनके अस्पताल बड़े शहरों में हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि मझोले व छोटे शहरों के निजी अस्पतालों को कोरोना वैक्सीन नहीं मिलीं और इस तरह इन शहरों के लोगों को निजी अस्पतालों में टीका नहीं दिया जा सका। रिपोर्टों में कहा गया कि यह केंद्र सरकार की कोरोना टीका नीति की नाकामी उजागर करता है क्योंकि इससे यह साफ़ हो गया कि कोरोना टीके का समान व न्यायोचित वितरण नहीं हुआ।
बता दें कि केंद्र सरकार ने यह तय किया था कि कंपनियाँ जितने कोरोना टीके बनाएँगी, उसका आधा केंद्र सरकार लेगी और बाक़ी आधे में राज्य सरकारें और निजी क्षेत्र। 'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, यह फ़ॉर्मूले तय होने के बाद के पहले महीने में 1.20 करोड़ खुराकें निजी क्षेत्र के लिए सुरक्षित रखी गईं। इनमें से 60.57 लाख खुराक़ें नौ कॉरपोरेट अस्पताल कंपनियों को मिल गईं। इन कंपनियों के कुल मिला कर 300 अस्पताल हैं और ये सभी अस्पताल महानगरों व बड़े शहरों में स्थित हैं।
ऐसी रिपोर्टों के बाद सरकार की ओर से सफ़ाई जारी की गई।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने ट्वीट किया, 'कोरोना टीकों के वितरण में असमानता की ख़बरें पूरी तरह से निराधार हैं।
देश भर के निजी अस्पतालों को मई 2021 में 1.2 करोड़ खुराक पारदर्शी तरीक़े से प्राप्त हुईं और इससे दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन ड्राइव को प्रभावी रूप देने में मदद मिली।'
Reports of inequities in distribution of #COVID19vaccines are completely baseless.
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) June 5, 2021
Pvt hospitals across the country received 1.2 cr doses in May ‘21 procured in a transparent manner & helping drive efficiencies in world’s #LargestVaccineDrive.https://t.co/WcShuZQZ4A@PMOIndia
सरकार की ओर से भी बयान में कहा गया, 'यह साफ़ किया जाता है कि उदारीकृत वैक्सीन नीति में निजी क्षेत्र और केंद्र के लिए एक बड़ी भूमिका तय की गई है। निजी क्षेत्र के लिए 25% टीकों को अलग रखा गया है। यह तंत्र बेहतर पहुँच की सुविधा देता है और सरकारी टीकाकरण सुविधाओं पर परिचालन दबाव को कम करता है। ख़ासकर ऐसा उनलोगों के लिए जो भुगतान कर सकते हैं और एक निजी अस्पताल में जाना पसंद करेंगे।'
निजी क्षेत्र में बड़े अस्पतालों द्वारा वैक्सीन के ज़्यादा इस्तेमाल के आरोपों पर सफ़ाई में केंद्र की ओर से कहा गया, '1 जून 2021 तक, निजी अस्पतालों को मई 2021 के महीने में कोरोना टीकों की 1.20 करोड़ से अधिक खुराक मिली है। 4 मई, 2021 तक, बड़ी संख्या में निजी अस्पतालों ने सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक से अनुबंध किया है और उनको कोविशील्ड और कोवैक्सिन खुराक की आपूर्ति की गई है। ये निजी अस्पताल बड़े महानगरों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि राज्यों में दूसरे और तीसरे दर्जे के शहर भी शामिल हैं।'
सुप्रीम कोर्ट ने जो सवाल उठाए, उसका क्या
बता दें कि इस मामले से पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की वैक्सीन नीति को लेकर जबरदस्त आलोचना की है। सुप्रीम कोर्ट ने तो केंद्र सरकार से यहाँ तक कह दिया था कि वह कोरोना नीति से जुड़ी अपनी फ़ाइलों पर लिखे गए नोट्स पेश करे।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि 18-44 की उम्र के बीच के लोगों को भी कोरोना टीका की वैसी ही ज़रूरत है जैसे 45 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए। ऐसे में 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को मुफ्त कोरोना टीका देना और 18-44 के लोगों से इसके लिए पैसे लेना 'अतार्किक' और 'मनमर्जी' है।
अदालत ने इस पर संदेह जताया था कि कोरोना टीका उत्पादन का 50 प्रतिशत राज्यों और निजी क्षेत्र के लिए छोड़ देने से टीका उत्पादन के लिए वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों में प्रतिस्पर्द्धा होगी और टीके की कीमत कम हो जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने टीके की कीमत पर भी सरकार की नीति पर आपत्ति की है। उसने कहा है कि सरकार कोरोना वैक्सीन की कीमत अलग-अलग रखने का तर्क यह कह कर देती है कि उसे कम कीमत पर टीका इसलिए मिल रहा है कि उसने एकमुश्त बड़ा ऑर्डर दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि इसी तरह केंद्र सरकार अकेले ही सभी टीका क्यों नहीं खरीद सकती है, जिससे उसे कम कीमत अदा करनी होती।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर भी सफाई माँगी कि विदेशी टीका निर्माता सीधे राज्यों और केद्र-शासित क्षेत्रों से टीका देने पर बात नहीं करना चाहते और वे सीधे केंद्र सरकार से बात करना चाहते हैं तो इस पर सरकार का क्या कहना है।
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना टीका देने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य करने पर भी केंद्र सरकार की खिंचाई की। इसकी वजह यह थी कि देश की आबादी का एक बड़ा तबका ऑनलाइन से परिचित नहीं है या उसे मोबाइल फोन या ऐप या कंप्यूटर तक पहुँच नहीं है, सवाल यह है कि वह तबका कैसे रजिस्ट्रेशन कराए और कैसे टीका ले।
हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के इन सवालों और आलोचनाओं का जवाब सरकार सुप्रीम कोर्ट में देगी, लेकिन इसने जो ताज़ा बयान जारी किए हैं, वे कितने सही हैं, इससे आप ख़ुद अंदाज़ा लगा सकते हैं।