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मोदी ने कहा, पर क्या सचमुच टीका के लिए दशकों इंतजार करना पड़ता था?

मोदी ने कहा, पर क्या सचमुच टीका के लिए दशकों इंतजार करना पड़ता था?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में टीका बनाने और लोगों के टीकाकरण करने के बारे में जो दावे किए, उन पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में टीका बनाने और लोगों के टीकाकरण करने के बारे में जो दावे किए, उन पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

जिस देश ने अपने करोड़ों बच्चों को कई साल तक हर बार घर-घर जाकर पोलियो टीका दिया, जो देश आज़ादी के पहले से ही टीका बनाता आया है, जिस देश के दवा उद्योग का लोहा पूरा दुनिया मानती है, उस देश को टीका के लिए दशकों इंतजार करना पड़ना था? प्रधानमंत्री का तो यही कहना है।

कितना सच है प्रधानमंत्री का दावा?

नरेंद्र मोदी ने कहा,

यदि आप भारत के टीकाकरण का इतिहास देखें, यह चेचक का टीका हो या हेपेटाइटिस बी हो या पोलियो हो, आप देखेंगे कि भारत को विदेशों से टीका हासिल करने के लिए दशकों का इंतजार करना पड़ता था।


नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री ने इसके आगे यह भी कहा कि 'जब दूसरे देशों में टीकाकरण कार्यक्रम ख़त्म हो जाता था, हमारे देश में यह शुरू भी नहीं हो पाता था।' 

प्रधानमंत्री यह बात उस देश के बारे में कह रहे थे, जहाँ टीके की खोज होने के बाद ही घरेलू स्तर पर बनने लगता था और ऐसा आज़ादी के पहले से ही हो रहा है। 

सच क्या है?

'द हिन्दू' ने एक ख़बर में कहा है कि इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च में 2012 में छपे डॉक्टर चंद्रकांत लहरिया के एक लेख में कहा गया है कि भारत में चेचक का टीका पहली बार 1802 में तीन साल के एक बच्चे को दिया गया था। 

ब्रिटेन में डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने जब दुनिया के इस पहले टीके की खोज की, उसके सिर्फ चार साल बाद यह टीका भारत पहुँच गया।

चेचक का टीका

भारत में चेचक के टीके का आयात 1850 तक ही हुआ। तरल लिंफ सोल्यूशन को सुरक्षित रखना एक चुनौती थी, लिंफ  की आपूर्ति बढ़ाने पर शोध करने के लिए संस्थान का गठन हुआ और 1895 में भारत को इसमें कामयाबी मिल गई। 

भारत में पहला एनिमल वैक्सीन डिपो 1890 में शिलॉंग में बना। 

चेचक के टीके का उत्पादन 1944-45 में कम हो गया, लेकिन विश्वयुद्ध ख़त्म होते ही इसका उत्पादन बढ़ाया गया, 1947 तक भारत चेचक के टीके के मामले में आत्मनिर्भर हो गया। 

 - Satya Hindi

पोलियो का टीका

पोलियो का टीका ओरल पोलियो वैक्सीन यानी मुंह में दिए जाने वाला टीका सबसे पहले अमेरिका में 1960 में बनाया गया। भारत में पास्चर इंस्टीच्यूट ऑफ़ इंडिया ने यह टीका 1970 में बनाना शुरू कर दिया। 

भारत में इंजेक्शन पोलियो वायरस को इसलिए प्रोत्साहित नहीं किया गया कि इसे बनाने के लिए ज़रूरी वायरस वातावरण में लीक हो सकता था।

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प्लेग का टीका

बाद में ओरल पोलियो वायरस का प्रभाव कम होने लगा तो दोनों मिला कर दिया जाने लगा। भारत 2011 तक पोलियो से मुक्त हो चुका था। 

'द हिन्दू' अख़बार के अनुसार, बाल्डमेर हैफ़किन ने 1897 में तत्कालीन बंबई स्थित ग्रांट मेडिकल कॉलेज में प्लेग के टीके की खोज की और भायकला जेल के लोगों पर इसका परीक्षण किया। 

टीका बनाने के लिए प्लेग लैबोरेटरी की स्थापना 1899 में हुई और 1925 में इसका नाम बदल कर हैफ़किन इंस्टीच्यूट कर दिया गया। 

इसी तरह मद्रास के गिंडी लैबोरेटरी में टीबी का टीका बीसीजी 1848 में बनने लगा। डिप्थीरिया और टिटेनस के टीके 1940 के पहले ही भारत में बनने लगे थे। 

लेकिन भारत के प्रधानमंत्री का कहना है कि जब पूरी दुनिया में टीकाकरण कार्यक्रम ख़त्म हो जाता था, उस समय तक भारत में वह शुरू भी नहीं हो पाता था।

ख़ैर!

मिशन इंद्रधनुष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने मिशन इंद्रधनुष के तहत टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया तो टीका दिए हुए लोगों की संख्या 60 प्रतिशत से बढ़ कर 90 प्रतिशत हो गई। 

लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण पर भरोसा किया जाए तो किसी राज्य में 90 प्रतिशत टीकाकरण नहीं हुआ है। 

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