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वाह मोदी जी वाह, ‘आप करें तो रासलीला, वे करें तो कैरेक्टर ढीला!’

वाह मोदी जी वाह, ‘आप करें तो रासलीला, वे करें तो कैरेक्टर ढीला!’

पीएम मोदी विपक्षी दलों पर हमला बोलते हैं कि ये दल सिर्फ़ सत्ता पाने के लिए गठबंधन बना रहे हैं। लेकिन ख़ुद वह गठबंधन की सरकार चला रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के नेता लोकसभा चुनाव के लिए बनने वाले विपक्षी दलों के संभावित गठबंधन पर हमला करते रहे हैं। उनके मुताबिक़, ये सभी दल मौक़ापरस्त हैं और सिर्फ़ मोदी को हराने के लिए ही गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कोलकाता में ममता बनर्जी की रैली के बाद ये हमले और तेज़ हो गए हैं। लेकिन ख़ुद बीजेपी ने 2014 का चुनाव 22 से ज़्यादा दलों के साथ गठबंधन करके लड़ा। 2014 के बाद बीजेपी ने कई छोटी पार्टियों को एनडीए में शामिल करवाया था। इस वजह से, एक समय एनडीए के घटक दलों की संख्या बढ़कर 42 हो गई थी।

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बीजेपी ने पिछले पाँच सालों में कई राज्यों में सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार चलाई है और कई राज्यों में वह अभी भी सहयोगियों के साथ सरकार चला रही है। तो फिर गठबंधन के नाम पर वह कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों पर हमले क्यों कर रही है क्यों वह विपक्षी दलों के संभावित गठबंधन को अराजक बता रही है पहले बात करते हैं कि बीजेपी अपने किन सहयोगी दलों के साथ मिलकर केंद्र और राज्यों में सरकार चला रही है।

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केंद्र में लोकजनशक्ति पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया (आठवले), शिरोमणि अकाली दल, जनता दल (यूनाइटेड) और कई अन्य दलों के साथ मिलकर वह एनडीए गठबंधन की सरकार चला रही है। बात राज्यों की करें तो महाराष्ट्र में वह शिवसेना, बिहार में जदयू, नगालैंड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ उसका गठबंधन है। इंडीजिनस पीपल्स फ़्रंट ऑफ़ त्रिपुरा भी बीजेपी की सहयोगी पार्टी है। मिजोरम में मिज़ो नैशनल फ़्रंट के साथ उसका गठबंधन है। मेघालय में वह नेशनल पीपल्स पार्टी ( एनपीपी) और उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (एस) के साथ मिलकर सरकार चला रही है।

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अब बात करते हैं कि वे कौन-कौन से दल हैं जो एनडीए को छोड़ रहे हैं। पिछले साढ़े चार साल में एनडीए के 16 घटक दल गठबंधन छोड़ चुके हैं। कौन से हैं ये 16 दल, आइए देखते हैं -

  • सबसे पहले हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) ने एनडीए को अलविदा कहा था। पार्टी अध्यक्ष कुलदीप बिश्नोई ने बीजेपी पर क्षेत्रीय दलों को ख़त्म करने का आरोप लगाया था। 2016 में हजकां का कांग्रेस में विलय हो गया। 
  • इसके कुछ समय बाद तमिलनाडु की मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एमडीएमके) ने अपना नाता तोड़ते हुए बीजेपी पर तमिलों के ख़िलाफ़ काम करने का आरोप लगाया था। 
  • तमिलनाडु में विजयकांत की देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कषगम (डीएमडीके) ने और फिर एस. रामदास की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) ने गठबंधन से अपना रिश्ता ख़त्म कर लिया था। 
  • तेलगू फ़िल्मों के सुपरस्टार पवन कल्याण ने 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के लिए जमकर प्रचार किया था। लेकिन लंबे समय तक वह भी इसका हिस्सा नहीं रहे और अपनी जन सेना पार्टी को इससे अलग कर लिया। 
  • 2016 में केरल की रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) ने एनडीए छोड़ा तो जनादिपथ्य राष्ट्रीय सभा (जेआरएस) के नेता सी. के. जानू ने भी एनडीए को यह कहकर छोड़ दिया कि केरल में आदिवासियों से किए गए वादों को नहीं निभाया गया। 

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  • इसके अगले साल, महाराष्ट्र में एनडीए की सहयोगी पार्टी स्वाभिमानी पक्ष ने इसे अलविदा कह दिया। पार्टी के अध्यक्ष राजू शेट्टी ने बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया। 
  • 2018 में एनडीए को बड़ा झटका तब लगा जब आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने इससे नाता तोड़ लिया। टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू का कहना था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष राज्य के दर्जे़ को लेकर किया गया वादा नहीं निभाया। 
  • 2018 में ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम माँझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने भी एनडीए से अलग राह पकड़ ली। नगालैंड में बीजेपी की पुरानी सहयोगी नगा पीपल्स फ़्रंट ने और कर्नाटक में कर्नाटक प्रज्ञन्यावंथा जनता पार्टी ने इससे नाता तोड़ लिया। 
  • कुछ समय बाद जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार चला रही बीजेपी ने जब समर्थन वापस ले लिया तो वह भी एनडीए से बाहर आ गई। बिहार के क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने भी कुछ महीने पहले ही गठबंधन को बाय-बाय कह दिया। 
  • बिहार के ही एक अन्य दल विकासशील इंसान पार्टी ने भी एनडीए को अलविदा कह दिया है। 

  • पश्चिम बंगाल में लंबे समय तक बीजेपी की सहयोगी रही गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने भी सोमवार को एनडीए छोड़ दिया। 

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ये दल चल रहे हैं नाराज़

एनडीए की अहम सहयोगी शिवसेना के बीजेपी से रिश्ते काफ़ी समय से ठीक नहीं चल रहे हैं और इसकी आशंका है कि शिवसेना लोकसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेगी। इसके अलावा अपना दल (एस) भी कई बार एनडीए में अपनी उपेक्षा को लेकर नाराज़गी जता चुका है। उत्तर प्रदेश सरकार में सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी आए दिन गठबंधन से बाहर निकलने की धमकी देती है। 

बीजेपी को उम्मीद थी कि लाेकसभा चुनाव में इस बार वह पूर्वोत्तर में बेहतर प्रदर्शन करेगी, लेकिन नागरिकता विधेयक उसके गले की फाँस बन चुका है। इस विधेयक को लेकर असम गण परिषद (एजीपी) बीजेपी का साथ छोड़ चुकी है। इसके अलावा नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी), इंडीज़िनस पीपल्स फ़्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफ़टी), मिज़ो नेशनल फ़्रंट (एमएनएफ़) और नगालैंड डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) भी बीजेपी से ख़ासे नाराज हैं। 

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बीजेपी को विपक्षी दलों पर हमला करने के बजाए एनडीए छोड़कर जा रहे दलों को साधना चाहिए। वरना लोकसभा चुनाव में उसे काफ़ी मुश्किल हो सकती है। 

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