मोदी-अमित शाह के निशाने पर क्यों हैं अहमद पटेल?
लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान क़रीब है। प्रधानमंत्री मोदी धुआंधार चुनाव प्रचार अभियान पर हैं। उन्होंने शुक्रवार को कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल पर ज़ोरदार निशाना साधा। चुनावी रैली में मोदी ने अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और कोषाध्यक्ष अहमद पटेल के नाम लिए जाने को बड़ा मुद्दा बनाया। उन्होंने आरोप लगाया कि हेलीकॉप्टर सौदे में जिन लोगों ने रिश्वत ली थी उनमें एक का नाम 'एपी' और दूसरे 'एफएएम' है, 'एपी' का मतलब है अहमद पटेल और 'एफएएम' का मतलब है फैमिली। उन्होंने कहा कि अब आप ख़ुद अंदाज़ा लगा लीजिए कि पटेल किस परिवार के नज़दीक हैं।
प्रधानमंत्री के आरोपों के बाद अहमद पटेल ने पलटवार करते हुए मोदी पर 'गटर वाली राजनीति' करने का आरोप लगाया है। पटेल ने टि्वटर पर यह भी लिखा, 'चुनावों का मौसम है, सो जुमलों की बौछार शुरू हो गई है। बेबुनियाद और हास्यास्पद आरोपों की बारिश हो रही है। हमें न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है कि सच्चाई कभी छुप नहीं सकती। दूध का दूध और पानी का पानी हो कर रहेगा। लगता है कि अब ईडी एनडीए का अहम हिस्सा बन चुकी है।'
नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही अहमद पटेल उनके और अमित शाह के निशाने पर रहे हैं। पिछले पाँच साल में कब-कब अहमद पटेल पर निजी हमले हुए और उन्हें परेशान करने की कोशिश की गई, इसकी पड़ताल करने पर कई पहलू सामने आते हैं।
गाँधी परिवार का विश्वास पात्र होना
अहमद पटेल यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी परिवार के बेहद विश्वासपात्र हैं। वह कांग्रेस के संकट मोचक रहे हैं। यही वजह है कि क़रीब 16 साल तक वह सोनिया गाँधी के राजनीतिक सचिव बने रहे। मोदी और अमित शाह को शायद लगता है कि अगर अहमद पटेल की राजनीतिक हैसियत कांग्रेस में कम कर दी जाए तो कांग्रेस की ताक़त आधी हो जाएगी।
अहमद पटेल पार्टी के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं। जिस वक़्त पूरे देश में कांग्रेस के ख़िलाफ़ हवा बह रही थी, उस वक़्त 1977 में अहमद पटेल मात्र 26 साल की उम्र में गुजरात के भरूच लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर आए थे। उसके बाद 1980 और 1984 का चुनाव भी उन्होंने वहीं से जीता। 1993 से वह लगातार राज्यसभा में हैं। वह कांग्रेस में लगातार पाँचवीं बार राज्यसभा का टिकट पाने वाले पहले नेता हैं। सोनिया गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अहमद पटेल उनके राजनीतिक सचिव बने। तब से कांग्रेस की राजनीति में वह शिखर पर हैं।
अहमद पटेल ने एक बार ख़ुद यह बताया था कि उन्हें राजीव गाँधी की सरकार में भी मंत्री पद ऑफर हुआ था। डॉ. मनमोहन सिंह ने भी उन्हें दो बार मंत्री पद ऑफर किया था। लेकिन उन्होंने सरकार में रहने के बजाय पार्टी के लिए काम करना बेहतर समझा।
बीजेपी के 'कांग्रेस मुक्त' भारत के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा
बीजेपी में तमाम नेताओं का मानना है कि मोदी और अमित शाह के 'कांग्रेस मुक्त' भारत के सपने के रास्ते में अहमद पटेल सबसे बड़ा रोड़ा हैं। अहमद पटेल ने जबर्दस्त राजनीतिक कौशल दिखाया है, चाहे वह राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल का मामला हो या फिर कर्नाटक में सरकार गिराने के प्रयास का मामला हो या हाल ही में जितिन प्रसाद को कांग्रेस से तोड़कर बीजेपी में शामिल कराने की कोशिश का मामला रहा हो। बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि जितिन प्रसाद का बीजेपी में शामिल होना तय था, लेकिन ऐन वक़्त पर अहमद पटेल हरकत में आये और स्थिति संभाल ली।
राज्यसभा चुनाव की लड़ाई
मोदी और अमित शाह ने 2017 में राज्यसभा चुनाव के दौरान अहमद पटेल को हराने की पूरी तैयारी कर ली थी। शाह ने कांग्रेस के कई विधायकों को तोड़कर उनका इस्तीफ़ा करा दिया था। वहीं केंद्र सरकार के इशारे पर सीबीआई, इनकम टैक्स, प्रवर्तन निदेशालय तक का राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया। इसके बावजूद अहमद पटेल चुनाव जीतने में कामयाब रहे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस की यह पहली जीत थी।
पीएम मोदी ने गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान भी अहमद पटेल को निशाना बनाया। मोदी ने कहा था कि पाकिस्तान में बैठीं ताक़तें अहमद पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाना चाहती हैं। चुनाव के दौरान कई जगह पर उर्दू में छपे इस तरह के पोस्टर लगे मिले थे जिसमें लिखा हुआ था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो वह मुख्यमंत्री होंगे। कांग्रेस ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की थी। कांग्रेस के किसी भी नेता ने इस तरह के पोस्टर नहीं लगवाए थे, कांग्रेस के नेता मानते हैं कि यह अहमद पटेल को बदनाम करने की साज़िश थी। हालाँकि बीजेपी ने सत्ता हासिल तो की, लेकिन उसके पसीने छूट गए थे।
अहमद पटेल का मुसलमान होना
बीजेपी को ध्रुवीकरण से फ़ायदा होता है। अहमद पटेल के नाम पर गुजरात में बीजेपी को उसका फ़ायदा मिला था। शायद इसीलिए मोदी ने अहमद पटेल को निशाने पर लिया है। एक बड़ा तबक़ा ऐसा है जो मुसलमानों से नफ़रत करता है। इसलिए कई नेता अक्सर मुसलमानों के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी करके अपने कट्टर समर्थकों को 'तुष्ट' करने की कोशिश करते हैं। मोदी भी ऐसा करने में नहीं हिचकिचाते। 2002 के चुनाव में उन्होंने 'मियां मुशर्रफ' और 2007 में तब के मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह का पूरा नाम 'जेम्स माइकल लिंग दोह' बार-बार कहकर ध्रुवीकरण की कोशिश की थी। लिहाज़ा लोकसभा चुनाव में भी नरेंद्र मोदी 'अहमद पटेल' का नाम लेकर इस कामयाबी को दोहराना चाहते हैं।
अमित शाह और अहमद पटेल के बीच छत्तीस का आँकड़ा
अमित शाह और अहमद पटेल के बीच छत्तीस का आँकड़ा है। उनके बीच यह विवाद 2010 से चल रहा है। 2010 में अमित शाह हत्या के आरोप में जेल भेजे गए थे और उस वक़्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी। शायद अमित शाह मानते हैं कि उन्हें जेल भिजवाने के पीछे अहमद पटेल का ही हाथ था। बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि इसको लेकर वह हमेशा अहमद पटेल से खुन्नस रखते हैं।
अहमद पटेल के परिवार पर ईडी का शिकंजा
गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद अचानक अहमद पटेल के बेटे फैजल पटेल और उनके दामाद इरफान सिद्दीकी पर ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने शिकंजा कसा है। आरोप लगा है कि 500 करोड़ के बैंक लोन फ्रॉड मामले में अहमद पटेल के बेटे और दामाद का नाम सामने आया है।
तब ईडी के एक अफ़सर ने बताया था कि संदेसरा ग्रुप के एग्ज़िक्यूटिव सुनील यादव ने ईडी को दिए गए एक लिखित बयान में आरोप लगाया है कि इस ग्रुप के मालिक चेतन संदेसरा और उनके सहयोगी गगन धवन ने इरफान सिद्दीकी को कैश के रूप में मोटी रक़म दी थी। इन पैसों को चेतन संदेसरा की तरफ से अहमद पटेल के बेटे को दिया जाना था।
मोदी ने अहमद पटेल को क्यों बताया था दोस्त
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक निजी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी ने अहमद पटेल से दोस्ती का दावा किया था। मोदी ने कहा था, 'कांग्रेस पार्टी में मेरे बहुत से नज़दीकी दोस्त हैं और अहमद पटेल उनमें से एक हैं। हालाँकि वह अब इतने क़रीबी नहीं हैं। मुझे नहीं पता क्या समस्या है। क्योंकि आजकल वह मुझे नज़रअंदाज़ करते हैं। पहले मैं उनके घर बहुत जाया करता था। और उनके साथ मैंने खाना भी खाया है। हम बहुत अच्छे दोस्त थे। मैं व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता कि अब हमारे बीच ऐसा अच्छा रिश्ता क्यों नहीं है। मैं उन्हें कभी अहमद भाई नहीं कहता था। मैं उन्हें 'भाऊभाई' बुलाता था और बड़े भाई की तरह ही उनका सामान भी करता था।'
यह दावा बेहद चौंकाने वाला था। इससे अहमद पटेल की उनकी पार्टी में ही काफ़ी किरकिरी हुई थी। हालाँकि अहमद पटेल ने तब इसका ज़ोरदार खंडन किया था और साफ़ तौर पर कहा था कि वह मोदी से कभी नहीं मिले और मोदी का दावा एकदम बकवास है। हालाँकि इसके बावजूद पार्टी में कई नेता अहमद पटेल पर मोदी के साथ साँठ-गाँठ करके पार्टी को हरवाने का आरोप लगाते रहे हैं।
ऐसा लगता है कि पीएम मोदी और अमित शाह के लिए अहमद पटेल दुश्मन नंबर वन हैं। उन्हें लगता है कि कांग्रेस की सारी ताक़त अहमद पटेल में है। जब तक उन्हें नहीं निपटाया जाएगा तब तक कांग्रेस को नहीं निपटाया जा सकता। लेकिन अहमद पटेल भी राजनीति के ऐसे मंझे हुए खिलाड़ी हैं कि मोदी और शाह के हर चक्रव्यूह की काट ढूंढ ही लेते हैं।