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अलीगढ़ में मोदी का भाषण कल से भी तीखा, कब जागेंगे चुनाव आयोग और कोर्ट

अलीगढ़ में मोदी का भाषण कल से भी तीखा, कब जागेंगे चुनाव आयोग और कोर्ट

मुसलमानों पर केंद्रित प्रधानमंत्री मोदी के भाषण पर देश में तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में जो भाषण दिया था, उससे भी ज्यादा तीखा भाषण उनका सोमवार 22 अप्रैल को यूपी के अलीगढ़ में था। अभी चंद दिन पहले मोदी अमरोहा में क्रिकेटर मोहम्मद शमी की तारीफ करते हुए वोट मांग रहे थे। ऐसे में सवाल यह है कि क्या पीएम मोदी चुनाव आचार संहिता की धज्जियां उड़ा रहे हैं, क्या चुनाव आयोग इसका संज्ञान लेगा। क्या मोदी का भाषण हेट स्पीच में नहीं आता?

देश में पहले चरण के चुनाव के बाद पीएम मोदी की भाषा बदल गई है। वो कांग्रेस और मुसलमानों को अब सीधे टारगेट कर रहे हैं। उन्होंने रविवार को बांसवाड़ा में कांग्रेस पर हमला करते हुए मुसलमानों को घुसपैठिया कहा। लेकिन अलीगढ़ में सोमवार को उनका भाषण पिछले दिन के मुकाबले बहुत ही ज्यादा तीखा था। मोदी ने अलीगढ़ में कहा-  "मैं देशवासियों को चेतावनी देना चाहता हूं। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की नजर आपकी कमाई और आपकी संपत्ति पर है। कांग्रेस के 'शहजादा' (राहुल गांधी) कहते हैं कि अगर उनकी सरकार आती है सत्ता में, वे जांच करेंगे कि कौन कितना कमाता है, किसके पास कितनी संपत्ति है... हमारी माताओं और बहनों के पास सोना (गोल्ड) है, इसे पवित्र माना जाता है, कानून भी इसकी रक्षा करता है महिलाओं का 'मंगलसूत्र', मां-बहनों का गोल्ड चुराना है इनका इरादा... अगर आपके गांव में किसी पुराने पूर्वज का घर है और आपने अपने बच्चों के भविष्य के लिए शहर में एक छोटा सा फ्लैट भी खरीदा है दोनों में से एक को छीन लेंगे...ये माओवादी सोच है, ये कम्युनिस्टों की सोच है ऐसा करके वो पहले ही कई देशों को बर्बाद कर चुके हैं अब यही नीति कांग्रेस पार्टी और इंडिया गठबंधन भारत में लागू करना चाहते हैं।"

हालांकि मोदी कांग्रेस और मुसलमानों को जिस तरह टारगेट कर रहे हैं, उसका कांग्रेस के घोषणापत्र से लेना-देना नहीं है। कांग्रेस के घोषणापत्र में यह कहीं नहीं लिखा है कि वो हिन्दुओं की संपत्ति छीन लेगी, उनके घर, दुकान, खेत छीन लेगी, उनकी महिलाओं का गोल्ड छीन लेगी। कांग्रेस के घोषणापत्र में एक लाइन भी ऐसी नहीं लिखी है। लेकिन फिर भी मोदी इसी अंदाज में बोल रहे हैं। इसी आधार पर मोदी ने राहुल गांधी और कांग्रेस को माओवादी बोल दिया है। 

राजस्थान के बांसवाड़ा में रविवार को चुनावी रैली में अपने भाषण के दौरान, पीएम मोदी ने दावा किया कि कांग्रेस के घोषणापत्र में "माताओं और बहनों के सोने" का स्टॉक लेने और उस धन को वितरित करने की बात की गई है, उन्होंने कहा कि तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने कहा था कि मुसलमानों का देश की संपत्ति पर पहला अधिकार है। लेकिन प्रधानमंत्री का बोला गया तथ्य गलत साबित हुआ। मनमोहन सिंह ने कभी ऐसी बात नहीं कही थी। 

चुनाव आयोग के पास मोदी की हेट स्पीच की सूचना और शिकायत पहुंच चुकी है। लेकिन चुनाव आयोग खामोश है। चुनाव आयोग चाहता तो सोमवार को वो मोदी को नोटिस जारी करके पूछ सकता था। लेकिन आयोग सो रहा है। आखिर  नफरत फैलाने वाला भाषण क्या है और चुनाव आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) इसके बारे में क्या कहती है? क्या मोदी चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे हैं। देश में यह सवाल मोदी के साम्प्रदायिक भाषणों के बाद उठ खड़ा हुआ है।

निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए आदर्श आचार संहिता या एमसीसी चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशानिर्देशों का एक दस्तावेज है। इन नियमों में चुनावी रैलियों में भाषण, बयान, मतदान वाले दिन, मतदान केंद्र और सामान्य आचरण से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। जिस दिन चुनाव की तारीखों की घोषणा होती है उसी दिन संहिता लागू हो जाती है। वर्तमान चुनावी मौसम में, एमसीसी 16 मार्च को लागू है। उसी दिन चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ था। इस दौरान चुनाव आयोग कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के हेलिकॉप्टर की जांच करवा चुका है लेकिन मोदी के साम्प्रदायिक भाषण पर चुप है।

नफरती भाषण और चुनाव आयोग

हेट स्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं और 2023 में तो सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि अगर किसी जगह साम्प्रदायिक भाषण से माहौल बिगाड़ा जाता है तो वहां के डीएम और एसपी इसके जिम्मेदार होंगे। उन्हें ऐसे लोगों के खिलाफ फौरन कोई कार्रवाई करना होगी। लेकिन चुनाव के दौरान जब सबसे ज्यादा हेट स्पीच हो रही है तो चुनाव आयोग चुप बैठा है। हालांकि आदर्श चुनाव आचार संहिता में नफरत फैलाने वाले भाषण पर कोई विशेष दिशानिर्देश नहीं हैं। हालाँकि, यह संहिता राजनेताओं को ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल होने से रोकती है जो मौजूदा मतभेदों को बढ़ा सकती है या आपसी नफरत पैदा कर सकती है। आचार संहिता के पहले ही पैराग्राफ में लिखा है, "कोई भी पार्टी या उम्मीदवार ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो मौजूदा मतभेदों को बढ़ा सकता है, या आपसी नफरत पैदा कर सकता है या विभिन्न जातियों और समुदायों, धार्मिक या भाषाई के बीच तनाव पैदा कर सकता है।"

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने 16 मार्च को लोकसभा चुनाव 2024 के कार्यक्रम की घोषणा करते हुए राजनीतिक दलों को नफरत भरे भाषणों, जाति या धार्मिक अपीलों, निजी जीवन के किसी भी पहलू की आलोचना, विज्ञापनों को समाचार और सोशल मीडिया के रूप में प्रस्तुत करने के खिलाफ सलाह दी थी। लेकिन उन्हीं राजीव कुमार के पास अब मोदी के साम्प्रदायिक भाषणों को सुनने का समय नहीं है।

चुनावों के दौरान 'घृणास्पद भाषण' (हेट स्पीच) और 'अफवाह फैलाने' को नियंत्रित करने वाले किसी विशिष्ट कानून के अभाव में, केंद्रीय चुनाव आयोग ने सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारतीय दंड संहिता और जन प्रतिनिधित्व के विभिन्न प्रावधान लागू हैं। अधिनियम (आरपी ​​एक्ट)-1951 के तहत राजनीतिक दलों के लोगों पर समाज के विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्य पैदा करने वाले बयान पर पाबंदी है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (3) में कहा गया है, “किसी उम्मीदवार या उसके एजेंट या उम्मीदवार की सहमति से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसके धर्म, जाति के आधार पर वोट देने या वोट देने से परहेज करने की अपील, जाति, समुदाय या भाषा एक भ्रष्ट चुनावी प्रथा है।"

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े का कहना है कि केंद्रीय चुनाव आयोग के पास भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत आप शक्तियां हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि आयोग के पास पावर की कमी है; बात सिर्फ इतनी है कि उसमें इच्छाशक्ति (विल पावर) की कमी है।

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