मणिपुर हिंसा का असर बीजेपी पर दूसरे राज्यों में भी पड़ रहा है। मिज़ोरम बीजेपी के उपाध्यक्ष आर वनरामचुआंगा ने गुरुवार को मणिपुर में हिंसा को लेकर इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने मणिपुर में 'चर्चों के बड़े पैमाने पर विध्वंस' के विरोध में यह इस्तीफा दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि यह 'राज्य और केंद्र के अधिकारियों द्वारा समर्थन' से किया जा रहा है। वनरामचुआंगा ने इसको लेकर मिज़ोरम में बीजेपी अध्यक्ष वनलालहुमुआका को ख़त भेज दिया है।
मणिपुर में 3 मई से मेइती लोगों और एसटी कूकी-ज़ोमी लोगों के बीच लगातार जातीय हिंसा देखी जा रही है। 27 मार्च के विवादास्पद आदेश के खिलाफ एक आदिवासी विरोध के तुरंत बाद हिंसा शुरू हो गई थी। अब तक 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, सैकड़ों अन्य घायल हो गए हैं और हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं। सैकड़ों घरों में आगजनी की घटना हुई है। कई चर्चों में भी आग लगाने की घटना सामने आई है।
समझा जाता है कि हिंसा की वजह मेइती और कुकी समुदायों के बीच तनाव है। कहा जा रहा है कि यह तनाव तब बढ़ गया जब मेइती को एसटी का दर्जा दिए जाने की बात कही जाने लगी। इसको लेकर हजारों आदिवासियों ने राज्य के 10 पहाड़ी जिलों में एक मार्च निकाला। इन जिलों में अधिकांश आदिवासी आबादी निवास करती है। यह मार्च इसलिए निकाला गया कि मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध किया जाए। मेइती समुदाय की आबादी मणिपुर की कुल आबादी का लगभग 53% है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है।
मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं।
दूसरी ओर, आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू।
बहरहाल, मिज़ोरम बीजेपी अध्यक्ष को भेजे पत्र में वनरामचुआंगा ने कहा है कि उनका इस्तीफा ईसाइयों के प्रति आपराधिक अन्याय के इस कृत्य के विरोध में है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने अपने इस्तीफा में लिखा है, 'मणिपुर राज्य में जातीय संघर्ष के हालिया प्रकोप के कारण अब तक 357 ईसाई चर्च, पादरी क्वार्टर और विभिन्न चर्चों से संबंधित कार्यालय भवन जला दिए गए हैं… हालांकि, इस घटना के लिए मणिपुर राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह द्वारा किसी को दोष नहीं दिया गया है।'
रिपोर्ट के अनुसार वनरामचुआंगा ने यह भी कहा, 'केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इंफाल का दौरा किया लेकिन उन्होंने चर्च की इमारतों को जलाने के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया। यहां तक कि केंद्र सरकार ने भी ईसाई चर्चों को जलाने की निंदा करने के लिए कोई शब्द व्यक्त नहीं किया है।' द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में वनरामचुआंगा ने आरोप लगाया कि मणिपुर की घटनाओं से भाजपा पर 'ईसाई विरोधी पार्टी' होने के आरोपों को बल मिलता है।
उन्होंने कहा कि राज्य के नेताओं के साथ-साथ केंद्रीय नेताओं को भी उपद्रवियों के कृत्यों की निंदा करनी चाहिए थी, और उन्हें पीड़ितों की सुरक्षा या सांत्वना देने के लिए कुछ करना चाहिए…। रिपोर्ट के अनुसार आगे की कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर वनरामचुआंगा ने कहा कि गुरुवार को कुछ अन्य दलों के नेताओं ने उनसे मुलाकात की, लेकिन अभी तक अपने अगले कदम पर विचार नहीं किया है।
मिजोरम भाजपा उपाध्यक्ष का इस्तीफा इस साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले आया है। मिजोरम की आबादी में ईसाई समुदाय 87% से अधिक है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक सीट जीतकर राज्य में अपना खाता खोला था।