दस साल की कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंक मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ़) मिज़ोरम में सरकार बनाएगी। उसे पूर्ण बहुमत मिला है। कांग्रेस की बुरी हालत है। उसे सिर्फ़ 5 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। एमएनएफ़ को 26, भाजपा को 1 और निर्दलीय व अन्य को 8 सीटें मिली है। मुख्यमंत्री ललथनहवला ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था और दोनों सीटों सरछिप और दक्षिण चंपाई से चुनाव हार गए। इससे पता चलता है कि सत्ताविरोधी लहर अधिक थी।
जोरामाथांगा भी हारे थे दो सीटों से चुनाव
वर्ष 2008 में भी सत्ताविरोधी लहर के चलते एमएनएफ़ के अध्यक्ष जोरामाथांगा को भी दो सीटों से चुनाव हारना पड़ा था। इस बार के चुनाव में भाजपा को 1 सीट मिली है। उसने मिज़ोरम में पहली बार खाता खोला है। पर इसमें भाजपा के बजाय कांग्रेस की अंदरुनी कलह ज़्यादा काम कर गई। कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री डॉ .बी. डी. चकमा को टिकट नहीं मिला तो उन्होंने भाजपा का दामन थामा। भाजपा ने डॉ. चकमा को टिकट दिया और वे अपनी विधानसभा सीट टिवचांग से चुनाव जीत गए। वैसे एमएनएफ़ भाजपा के नेतृत्व वाली नॉर्थ ईस्ट डिमोक्रेटिक अलांयस (नेडा) में शामिल है लेकिन अब नेडा के प्रति क्या रुख होगा, यह एमएनएफ़ की बैठक में तय होगा।आज जीतने के बाद उन्होंने कहा कि वे फ़िलहाल नेडा यानी राजग में हैं। उन्होंने कहा कि पहला काम राज्य में शराबबंदी लागू करने का होगा। एमएनएफ के अध्यक्ष होने के नाते जोरामाथांगा ही राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। मिज़ोरम के राजनीतिक टीकाकार प्र. जे डोंगल ने कहा कि भाजपा को एक सीट मिलना उसकी सफलता नहीं बल्कि डॉ. चकमा की अपनी सफलता है।
पूर्वोत्तर हुआ कांग्रेस-मुक्त
भाजपा का पूर्वोत्तर को कांग्रेस-मुक्त करने का सपना मिज़ोरम में एमएनएफ़ की जीत से पूरा हो गया है। नेडा के समन्वयक डॉ. हिमंत विश्वशर्मा ने कहा कि पिछले तीन साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमने इसके लिए कार्य किया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिज़ोरम में एक-एक चुनावी सभा को संबोधित किया था, पर दोनों अपनी पार्टी को बेहतर प्रदर्शन कराने में सफल नहीं हो सके। एमएनएफ़ के सलाहकार लालस्वामजुआला ने कहा कि कांग्रेस के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर थी। शराब से राज्य का हाल बेहाल है। सड़कें ख़स्ताहाल है। इन सब वजहों से लोगों ने कांग्रेस का सफ़ाया कर दिया।