असम: मुसलिम ने म्यूजियम की बात की तो 'बांग्लादेश' से जोड़ा!
कुछ महीने बाद ही होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले असम में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों ने मुख्यतः मुसलिम लोगों को समर्पित एक संग्रहालय स्थापित करने के मुद्दे पर एक-दूसरे पर आक्रमण शुरू कर दिया है। यह मुसलिम आबादी ब्रह्मपुत्र के कछार और बालूचर में रहती है जिसे असम में चर अंचल कहा जाता है।
पिछले सप्ताह कांग्रेस के विधायक शेरमन अली अहमद द्वारा राज्य के संग्रहालयों के निदेशक को लिखे गए पत्र के बाद पिछले सप्ताह यह मामला सार्वजनिक हुआ, जिसमें 'चर अंचल' में रहने वाले लोगों की संस्कृति और विरासत को दर्शाते हुए एक संग्रहालय स्थापित करने की माँग की गई थी।
चर क्षेत्रों के विकास निदेशालय के अनुसार असम में ये रेत के मैदान और छोटे नदी द्वीप लगभग 3.6 लाख हेक्टेयर में फैले हुए हैं और लगभग 24.90 लाख लोग कई दशकों से इस अंचल में रहते हैं। ये लोग बांग्लाभाषी मुसलिम हैं जिनके पूर्वज मुख्य रूप से पूर्वी बंगाल और वर्तमान बांग्लादेश से आए थे।
गुवाहाटी में सरकार द्वारा स्थापित एक सांस्कृतिक परिसर श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में संग्रहालय की स्थापना के लिए अहमद ने अनुरोध करते हुए लिखा है, ‘मैं आपसे अनुरोध करना चाहूँगा कि उसकी स्थापना की प्रक्रिया में तेज़ी लाई जाए।’
अहमद का पत्र सोशल मीडिया पर कई सवालों के साथ वायरल हुआ, जिसमें कहा गया है कि सरकारी फंडिंग के साथ राज्य में एक ‘मियाँ संग्रहालय’ कैसे स्थापित किया जा सकता है। ‘मियाँ’ बांग्ला भाषी मुसलमानों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक शब्द है। इन लोगों ने ब्रिटिश काल से असम में बसना शुरू कर दिया था। इस शब्द का उपयोग पड़ोसी देश से अवैध प्रवासियों को चिह्नित करने के लिए भी किया जाता है।
राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र मुसलिम प्रवासियों का एक अप्रत्यक्ष संदर्भ देते हुए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में 'मुग़लों ने हमला किया है' जैसी सांप्रदायिक टिप्पणी की थी। उसने जल्द ही इस मुद्दे को लपक लिया और कांग्रेसी विधायक को जलील करना शुरू कर दिया कि उन्होंने इस तरह की माँग रखने की ज़ुर्रत कैसे की।
असम के स्वास्थ्य मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने शनिवार को अहमद के पत्र की एक प्रति संलग्न करते हुए ट्विटर पर लिखा,
“
मेरी समझ में असम के चर अंचल में कोई अलग पहचान और संस्कृति नहीं है क्योंकि ज़्यादातर लोग बांग्लादेश से चले आए थे। ज़ाहिर है श्रीमंत शंकरदेव कला क्षेत्र में, जो असमिया संस्कृति का प्रतीक है, हम किसी भी विकृति की अनुमति नहीं देंगे। क्षमा करें विधायक साहब।
हिमंत विश्व शर्मा, असम के स्वास्थ्य मंत्री
In my understanding, there is no separate identity-and culture in Char Anchal of Assam as most of the people had migrated from Bangladesh. Obviously, in Srimanta Sankardeva Kalakhetra, which is the epitome of Assamese culture, we will not allow any distortion. Sorry MLA Sahab pic.twitter.com/6a2urvTRg4
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) October 24, 2020
सोमवार को मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पत्रकारों को बताया कि श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र की स्थापना श्रीमंत शंकरदेव (15वीं -16वीं शताब्दी के संत-विद्वान) के आदर्शों के साथ की गई है और राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि उन्हें बरकरार रखा जाए।
2016 में पहली बार असम में सत्ता में आई बीजेपी कट्टर आप्रवासी विरोधी रुख के साथ नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का समर्थन करने के चलते राज्य में कुछ वर्गों के विरोध का सामना कर रही है।
यह क़ानून बांग्लादेश सहित तीन पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान करता है, जिसका असम में कई नागरिक संगठन जोर-शोर से विरोध करते रहे हैं।
असम से कांग्रेस के लोकसभा सांसद अब्दुल खालेक ने ट्वीट किया, ‘क्षमा करें हिमंत विश्व शर्मा सर। इन लोगों के पूर्वज (चर के निवासी) पूर्ववर्ती बंगाल से आए थे, जो अविभाजित भारत का अभिन्न अंग था। कृपया सत्ता पाने के लिए इतिहास को और अधिक विकृत न करें।’
Sorry Sir @himantabiswa . Ancestors of these people were migrated from erstwhile Bengal, which was integral part of undivided India. Kindly don't distort history more just sake of getting power. https://t.co/vFSlmDON8G
— Abdul Khaleque (@MPAbdulKhaleque) October 24, 2020
इस मामले ने रविवार को तब तूल पकड़ लिया जब पत्रकार से राजनेता बने अजीत कुमार भुइयाँ, जिन्होंने इस साल की शुरुआत में विपक्षी कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के समर्थन से राज्यसभा में प्रवेश किया, ने इस मुद्दे पर कई ट्वीट किए।
भुइयाँ, जिन्होंने जून में एक राजनीतिक पार्टी आंचलिक गण मोर्चा बनाई, ने रविवार को ट्वीट किया,
‘डीआरएससी (विभाग से संबंधित स्थायी समिति-शिक्षा) द्वारा चर-चापोरी संग्रहालय की सिफारिश की गई थी, जिसके अधिकांश सदस्य बीजेपी और उसके सत्तारूढ़ गठबंधन से हैं। बहुमत के सदस्यों के समर्थन से एक सिफारिश पारित करने के बाद बीजेपी पूरे मुद्दे का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए राजनीतिकरण कर रही है। किस कदर शर्म की बात है।’
हालाँकि अहमद के पत्र में डीआरएससी की सिफ़ारिशों के बारे में उल्लेख किया गया था, भुइयाँ के ट्वीट के बाद ही यह साफ़ हुआ कि 15 सदस्यीय समिति, जिसने इस वर्ष मार्च में असम विधानसभा के लिए अपनी सिफ़ारिशें प्रस्तुत की थीं, की अध्यक्षता सत्ताधारी असम गण परिषद के एक विधायक ने की थी और समिति में बीजेपी के 6 सदस्य, असम गण परिषद के 2 सदस्य और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ़) के दो सदस्य शामिल थे। संग्रहालयों के निदेशक को पत्र लिखने वाले कांग्रेस के अहमद भी समिति के सदस्य थे।
संयोग से एक चर-चापोरी संग्रहालय स्थापित करने के अलावा समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र में असम के गोरिया समुदाय (असम के मूल मुसलिम) के लिए एक अलग संग्रहालय होगा।