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रेल राजनीति: कौन झूठ बोल रहा है - पीयूष गोयल या उद्धव ठाकरे?

रेल राजनीति: कौन झूठ बोल रहा है - पीयूष गोयल या उद्धव ठाकरे?

कोरोना महामारी के संकट के दौरान जब लाखों श्रमिक महानगरों को छोड़कर जा रहे हैं, ऐसे में रेल को लेकर केंद्र व राज्य सरकारों के बीच हो रही राजनीति बेहद दुखद है। 

मुंबई के कई रेलवे प्लेटफ़ॉर्म के बाहर हजारों की संख्या में मजदूरों की कतारें और रेलवे मंत्री पीयूष गोयल का मंगलवार को आया यह बयान कि 'बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज 12.30 बजे तक मज़दूरों को कोई जानकारी नहीं थी। आज 5 बजे तक 74 ट्रेन महाराष्ट्र से रवाना होंगी, पर राज्य सरकार ने 24 ट्रेनों के लिए ही मजदूरों का इंतजाम किया है।' यह दोनों बातें एक बड़े विरोधाभास को दिखाती हैं। 

कौन झूठ बोल रहा है? क्या हमारे देश में राजनेता महामारी या संकट के दौर में भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं? वह भी ऐसे वक्त में जब देश दुनिया के सबसे भयावह विस्थापन से गुजर रहा है। लाखों परिवार अपनी जान बचाने के लिए उन शहरों को छोड़ अपने गांवों की तरफ पलायन कर रहे हैं, जहां वे कभी जीवन के नए ख्वाब और आशाएं लेकर आये थे। 

'प्रत्यक्षं किम प्रमाणं' यानी जो दिख रहा है, उसे सच मानें या केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रियों के बयानों को। सच तो यह है कि मुंबई में जो लाखों लोग काम-धंधे के सिलसिले में इस शहर में आये थे आज लॉकडाउन के चलते बेरोजगारी और तमाम संकटों से परेशान होकर अपने-अपने प्रदेश या गांव लौटना चाहते हैं। 

वतन वापसी के लिए लोगों की जद्दोजहद कितनी बड़ी है कि आज भी लाखों की संख्या में श्रमिक पैदल ही निकल रहे हैं। और ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार में आरोप-प्रत्यारोप का जो वाकयुद्ध चल रहा है, वह यह सवाल खड़ा करता है कि "क्या सरकारी काम सहजता या सामंजस्य से नहीं किया जा सकता? 

बदइंतजामी की मार 

मंगलवार को मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) पर करीब 10 हजार तो लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर 15 हजार श्रमिकों की भीड़ जमा थी। CSMT की क्षमता 23 गाड़ियों की है और यहां से 46 गाड़ियां छोड़े जाने की सूची रेलवे की तरफ से घोषित की गयी। स्थिति यह हुई कि 3 से 4 घंटे तक इंजन के अभाव में प्रवासियों से भरी गाड़ियां प्लेटफॉर्म पर खड़ी रहीं। यही नहीं अनेक गाड़ियों के लिए पर्याप्त रैक्स भी नहीं थे। 

कोरोना के इस संकट में प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार ‘दो गज की दूरी’ का दिन-रात प्रचार करते हैं लेकिन इन विशेष रेलगाड़ियों में जाने के लिए प्रवासियों की टिकट की लाइन क्यों लगाई जा रही है?

पुलिस कर्मियों की मुश्किलें बढ़ीं

महाराष्ट्र सरकार ने रेल मंत्रालय को पत्र लिखा है कि पैसा वह भर रही है, इसलिए एक ट्रेन का एक ही टिकट बनाया जाए। कोरोना से प्रभावित मुंबई की धारावी झोपड़पट्टी के लिए मंगलवार सुबह 10 बजे 36 गाड़ियां छोड़ने का पत्र वहां के स्थानीय पुलिस स्टेशन को सोमवार रात तीन बजे मिला। 

इतने कम समय में श्रमिकों को धारावी से एकत्र करना और उन्हें राज्य परिवहन या महानगरपालिका की परिवहन सेवा की बसों में बिठाकर ट्रेन के निर्धारित समय से डेढ़ घंटे पूर्व स्टेशन पर पहुंचाना पुलिस विभाग के लिए मुसीबत साबित हो रहा है। क्योंकि इस पूरी प्रक्रिया में उन्हें कोरोना को लेकर जारी किये गए दिशा-निर्देशों का पालन जिसमें श्रमिकों की स्वास्थ्य जांच आदि भी शामिल है, का पालन करना होता है। 

ओछी राजनीति करने का आरोप 

महाराष्ट्र से मंगलवार को 145 गाड़ियां छूटनी थीं जिसमें से मध्य रेलवे से 123, कोंकण रेलवे की से 1, दक्षिण मध्य रेलवे से 1 और पश्चिम रेलवे से 20 गाड़ियों के जाने का कार्यक्रम था। मध्य रेलवे से सर्वाधिक गाड़ियां CSMT स्थानक से 44, एलटीटी से 49, पनवेल से 7, पुणे से 8 गाड़ियां छोड़ी जानी थीं। वहीं, पश्चिम रेलवे में बांद्रा से व बोईसर से 7-7 गाड़ियां छोड़ी जानी थीं। 

लेकिन महाराष्ट्र सरकार का आरोप है कि रेलवे ने 34 गाड़ियां पश्चिम बंगाल भेज दीं जबकि बंगाल के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने 22 मई को रेलवे को पत्र लिखा कि चक्रवाती तूफ़ान की वजह से 26 मई तक प्रदेश में गाड़ियां नहीं भेजी जाएँ। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि उसे परेशान करने के लिए रेल मंत्री की तरफ से ओछी राजनीति की जा रही है। 

महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि चक्रवात की वजह से पश्चिम बंगाल सरकार का राज्य सरकार को पत्र आया है कि कुछ दिनों के लिए दो से तीन गाड़ियां ही भेजी जाएँ तो ठीक रहेगा। मुंबई में औसतन दो दिन पहले तक प्रवासियों को रेलवे स्टेशन तक पहुंचाने के लिए राज्य परिवहन की 70 से 80 बसें तथा महानगरपालिका की परिवहन सेवा की 400 बसें राज्य सरकार की तरफ से लगाई गयी थीं। 

रेल मंत्री के बयान से अफरा-तफरी 

मंगलवार को रेल मंत्री की घोषणा जिसमें कहा गया कि दोपहर तक 50 गाड़ियां छोड़ दी जाएंगी, इससे अफरा-तफरी मच गयी। राज्य सरकार द्वारा प्रवासियों को रेलवे स्टेशन तक पहुंचाने के लिए राज्य परिवहन की 150 तथा महानगरपालिका परिवहन की 900 बसें लगाई गयी। इसकी वजह से न सिर्फ परिवहन सेवा बल्कि पुलिस और प्रशासन पर भी अतिरिक्त दबाव बढ़ा क्योंकि प्रवासियों को अलग-अलग जगहों से लेकर रेलवे स्टेशन तक पहुंचाना था। 

सबसे बड़ी बात तो यह है कि हर प्रवासी परिवार अपना सामान भी लेकर निकल रहा है। हर गाड़ी के लिए 1200 से 1500 प्रवासियों का जिलेवार वर्गीकरण करना भी एक बड़ी कवायद है। इसी के चलते वसई में विद्योत्तमा शुक्ला नामक एक महिला की मृत्यु हो गयी। नालासोपारा में रहने वाली इस महिला और उसके परिवार को सुबह 7 बजे वसई स्थित सनसिटी परिसर में यात्रियों के लिए बनाए गए विशेष केंद्र में लाया गया था, इन्हें उत्तर प्रदेश के जौनपुर जाना था। दोपहर तक इंतज़ार करने के बाद इस महिला को चक्कर आने लगे और उसकी मौत हो गयी। 

आलम यह रहा कि मुंबई के विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर मंगलवार और बुधवार की रात तक लोगों को गाड़ियों में बिठाने की कसरत चलती रही। लेकिन जैसे ही रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बयान दिया कि महाराष्ट्र सरकार गाड़ियां भरने में विफल रही है, तो इस मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया।

केंद्र-राज्य सरकार में बढ़ा तनाव

रेल मंत्री और महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों के बीच प्रवासी यात्रियों के लिए रेलगाड़ियां उपलब्ध कराने को लेकर पहले से ही ट्विटर पर वाकयुद्ध चल रहा था। गोयल ने शिवसेना सांसद संजय राउत से प्रवासी मजदूरों की सूची भी माँगी थी। वैसे भी, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार को अस्थिर करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की अटकलों के बीच केंद्र और राज्य सरकार के बीच आये दिन तनाव बढ़ता जा रहा है। लेकिन इस राजनीति से ऊपर उठकर सरकारें जनता के बारे में कब सोचेंगी, यह एक बड़ा सवाल है। 

आज कोरोना के संकट के बीच देश सबसे बड़े विस्थापन का इतिहास लिख रहा है। लाखों परिवार भीषण गर्मी में सड़कों पर पैदल निकल पड़े हैं और सरकारें रेल जैसी बेसिक सुविधा को यदि राजनीति का हथियार बनाकर खेल रही हैं तो लोकतंत्र में इससे बड़ी शर्मनाक बात और कुछ हो नहीं सकती। 

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