बंगाल की दुर्गा पूजा में उभरा प्रवासी मज़दूरों का दर्द
लगातार बढ़ते कोरोना संक्रमण और इसकी वजह से चले लंबे लॉकडाउन ने पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा की तसवीर भी बदल दी है। इसके बावजूद मौजूदा दौर में भी राजधानी कोलकाता के आयोजकों और कलाकारों ने थीम-आधारित मूर्तियों और पंडालों की परंपरा जस की तस बरक़रार रखी है। पश्चिम बंगाल में बीते एक दशक के दौरान थीम-आधारित आयोजनों का प्रचलन तेज़ी से बढ़ा है। इसके तहत पूरे साल के दौरान देश-विदेश में घटने वाली प्रमुख घटनाओं को पंडालों और बिजली की सजावट के जरिए उकेरा जाता है।
कोरोनासुर
इस साल दुनिया की सबसे बड़ी खबर या घटना कोरोना ही है। ऐसे में तमाम बंदिशों और बजट में कटौतियों के बावजूद इसे जगह मिलना लाज़िमी ही था। यही वजह है कि कुछ पंडालो में प्रवासी महिला मजदूर को ही माँ दुर्गा का रूप दे दिया गया है तो कहीं महिषासुर की जगह 'कोरोनासुर' बनाया गया है। यानी कोरोना वायरस को ही राक्षस का स्वरूप देकर देवी के हाथों उसका वध होते दिखाया गया है।दुर्गापूजा के दौरान पूरे साल दुनिया भर में घटने वाली प्रमुख घटनाओं को पंडालों की सजावट और लाइटिंग के जरिए सजीव किया जाता रहा है।
यहां पहले भी कभी कहीं बालाकोट एअर स्ट्राइक, कहीं दक्षिण के किसी मशहूर मंदिर या फुटबाल औऱ क्रिकेट विश्वकप की थीम पर पूजा का आयोजन होता रहा है।
इन आयोजनों के लिए महीनों पहले से तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। आयोजकों में एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ मची रहती है।
हाई कोर्ट का फ़ैसला
कोलकाता में कम से कम दो दर्जन पूजा समितियाँ ऐसी हैं, जहां लोग घंटों कतार में खड़े रहते हैं। ऐसे पंडालों में रोज़ाना लाखों लोग जुटते हैं। लेकिन कोरोना और कलकत्ता हाईकोर्ट के फ़ैसले ने इस बार तसवीर बदल दी है। हालांकि अदालती आदेश से पहले दो दिनों तक तमाम पंडालो में भारी भीड़ जुटती रही थी।बिजली की सजावट के ज़रिए पूरे साल के दौरान देश-विदेश में घटने वाली घटनाओं को साकार करने के मामले में हुगली ज़िले के चंदननगर के कलाकार पूरी दुनिया में मशहूर है। चंदननगर के कलाकार बिजली की सजावट की थीम पर पूजा के महीनों पहले से काम शुरू कर देते हैं। हुगली के तट पर बसा चंदननगर बिजली की रोशनी से साज-सज्जा के मामले में पूरे देश में मशहूर है। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि यह छोटा-सा शहर प्रकाश की सजावट का पर्याय बन गया है।
चंदननगर में 5 हज़ार से ज़्यादा ऐसे बिजली कारीगर हैं जो दुनिया की किसी भी घटना और जगह को बिजली की सजावट के जरिए सजीव बनाने में सक्षम हैं। हुगली ज़िले में इनकी तादाद 40 हज़ार से ज़्यादा है। पूजा के मौके पर इन कारीगरों का हुनर देखने को मिलता है।
प्रवासी मज़दूर
कोलकाता के बेहाला में बारिशा क्लब ने दुर्गा पूजा में एक बड़ा बदलाव किया है। उसने प्रवासी मजदूरों की समस्या को उठाते हुए एक प्रवासी महिला मजदूर को ही दुर्गा का रूप दे दिया है। फाइबर ग्लास ने बनी इस प्रतिमा में वह महिला अपने बच्चों, जिनको गणेश व कार्तिक बनाया गया है, लेकर जा रही है। पूरे पंडाल में सिर पर गठरी लादे प्रवासी मजदूर नज़र आते हैं।क्लब की पूजा समिति के एक सदस्य मंटू पाल बताते हैं,
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'यही हमारी दुर्गा है। मूर्ति में आठ अन्य हाथ भी दिखाई दे रहे हैं। यह मूर्ति प्रवासी कामगारों के दर्द व तकलीफ को बताती है। अचानक लॉकडाउन से उनको जो मुसीबतें झेलनी पड़ीं, हमने उनको ही दिखाने का प्रयास किया है। यह आयोजन प्रवासियों की हिम्मत को हमारा सलाम है।'
मंटू पाल, सदस्य, बारिशा क्लब
कई अन्य पूजा समितियों ने भी प्रवासी कामगारों की दिक्क़तों को इस बार का विषय बनाया है। कुछ ने अपने आयोजन को कोरोना योद्धाओं को समर्पित किया है। महानगर की एक पूजा समिति ने तो अबकी महिषासुर की जगह 'कोरोनासुर' बनाया है। इसमें कोरोना वायरस को ही राक्षस का स्वरूप दिया गया है। देवी त्रिशूल से उसका वध करती नजर आ रही हैं।
इससे साफ है कि कोरोना और लंबे लॉकडाउन के साथ ही तमाम बंदिशों के बावजूद इस साल भी कोलकाता के दर्गापूजा आयोजकों और कलाकारों के हैसले जस के तस हैं।