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मनरेगा के लिए पिछले साल ख़र्च की गई राशि से भी कम आवंटन क्यों?

मनरेगा के लिए पिछले साल ख़र्च की गई राशि से भी कम आवंटन क्यों?

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के इस पहले बजट में मनरेगा को लेकर जो आवंटन किया गया है, क्या वह पर्याप्त है? जानिए, इससे किस तरह का असर पड़ेगा।

सरकार ने इस साल मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। यह पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में योजना के वास्तविक व्यय 1.05 लाख करोड़ रुपये से 19,297 करोड़ रुपये कम है। हालाँकि, पिछले वित्त वर्ष में 60 हज़ार करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए थे। इस साल मनरेगा के लिए आवंटन कुल बजटीय आवंटन का सिर्फ 1.78% है, जो योजना के वित्तपोषण में दस साल का सबसे कम है। पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह से मनरेगा के आवंटन में कमी आई है, इसको लेकर ग्रामीण रोजगार और ख़पत को लेकर कई तरह की आशंकाएँ जताई जा रही हैं।

मनरेगा हर ग्रामीण परिवार को न्यूनतम वेतन के साथ 100 दिन के रोज़गार की गारंटी देता है। कहा जाता है कि मनरेगा भारत में ग्रामीण रोजगार के लिए एक क्रांतिकारी क़दम है। अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार विजेता जोसेफ़ स्टिग्लिट्ज़ ने कहा था, 'मनरेगा भारत का एकमात्र सबसे बड़ा प्रगतिशील कार्यक्रम और पूरी दुनिया के लिए सबक़ है।' जब 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट आया था, इसने भारत को आर्थिक मंदी से उबरने में मदद की थी।

अब इसी मनरेगा के कमजोर पड़ने या किए जाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। कहा जाता है कि हर साल, ग्रामीण रोजगार योजना को धन के कम आवंटन की समस्या का सामना करना पड़ता है। 

रिपोर्टें हैं कि भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के नाम पर इस तंत्र को दबाया गया है। भुगतान में देरी की जाती रही है। श्रमिक इससे दूर होकर उधर चले जाते हैं जहां मज़दूरी तुरंत मिलती है, भले ही ये न्यूतम मज़दूरी से कम हो। पिछले साल पश्चिम बंगाल सरकार आरोप लगाती रही थी कि राज्य में एक करोड़ मज़दूरों को एक साल से भुगतान नहीं दिया गया है। आरोप लगाया गया कि कथित तौर पर मनरेगा में भारी भ्रष्टाचार हुआ है।

बहरहाल, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कम आवंटन को लेकर तर्क दिया है कि मनरेगा एक मांग आधारित योजना है और सरकार आवश्यकता पड़ने पर अधिक धन देती है। लेकिन एक्टिविस्टों ने तर्क दिया है कि कम आवंटन योजना के तहत काम की मांग को कृत्रिम रूप से दबाने में योगदान देता है।

शिक्षाविदों और एक्टिविस्टों के एक संघ लिबटेक इंडिया से जुड़े चक्रधर बुद्ध ने द हिंदू से कहा, 'वित्त वर्ष 2024-25 के लिए आवंटन न केवल वित्त वर्ष 2023-24 के व्यय से कम है, बल्कि इसमें इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में बढ़ी हुई मांग को भी शामिल नहीं किया गया है। 2023-24 की तुलना में चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों में 5.74 करोड़ अधिक व्यक्ति दिवस सृजित किए गए हैं। इसके अलावा चालू वर्ष के लिए मज़दूरी में वृद्धि को भी शामिल नहीं किया गया है।' 

वास्तव में इस वित्तीय वर्ष के पहले चार महीनों में इस योजना के तहत 41,500 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, जबकि शेष आठ महीनों के लिए केवल अब 44,500 करोड़ रुपये ही बचे हैं।

सरकार का ऐसा रवैया तब है जब 2024 के आम चुनाव में ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की महत्वपूर्ण हार हुई है। 'द हिंदू' के विश्लेषण के अनुसार, भाजपा ने 2019 की तुलना में इस साल 53 लोकसभा क्षेत्रों को खो दिया, जिन्हें ग्रामीण सीटों के रूप में माना जा सकता है। वैसे, पीएम मोदी ने 2015 में कहा था कि मनरेगा, कांग्रेस की असफलता का एक जीता-जागता उदाहरण के रूप में जारी रहेगा।

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