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माहवारी स्वच्छता दिवसः बिहार ने दिखाई रोशनी, फिर भी बहुत काम बाकी

माहवारी स्वच्छता दिवसः बिहार ने दिखाई रोशनी, फिर भी बहुत काम बाकी

विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस के लिए लिखे गए इस महत्वपूर्ण लेख में बिहार यूनिसेफ की प्रमुख नफीसा बिन्ते शफीक ने कहा है कि बिहार में इसे लेकर लड़कियों में बहुत जागरूकता आई है लेकिन अभी बहुत काम किया जाना बाकी है।

नफीसा बिन्ते शफीक

“हम स्कूल क्यों नागा करेंगे?” बिहार के पूर्णिया जिले के कस्बे में स्कूल में सातवीं में पढ़ रही एक चुलबुली सी लड़की से जब मैंने पूछा कि क्या वहां की लड़कियां माहवारी के समय स्कूल नहीं आती हैं? उसने मुझे तड़ाक से यह जवाब दिया। उसने कहा कि हमारे शौचालय में कुंडी लगा दरवाजा है, ढक्कन वाला डिब्बा है, हाथ धोने के लिए साबुन और पानी है और साथ में छोटा सा पैड-बैंक भी।’ उसने पैड बैंक से एक सैनिटरी पैड निकालकर दिखाया और खुश होकर बोली, माहवारी तो अचानक आती है। ऐसे उपायों से हमें बहुत राहत मिली है। 

यह देखकर खुशी होती है कि बिहार के कुछ हिस्सों में किशोरियां माहवारी पर खुलकर चर्चा करने लगी हैं,और उन्हें अपनी माहवारी के दौरान की जरूरतों का सुरक्षा,सम्मान और विश्वास के साथ ध्यान रखने में मदद भी मिल रही है।

भारत की लंबी छलांग   

हाल के राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वे  (एनएफएचएस-5) के अनुसार भारत में लगभग 77% प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं (15-24 आयुवर्ग) माहवारी के दौरान स्वच्छता के सुरक्षित तरीके अपनाती हैं। यह एनएफएचएस-4 के आंकड़े से 20 अंक अधिक है। बिहार में भी 27 अंकों की अच्छी वृद्धि हुई है  और इसी सर्वे के अनुसार अब 58 प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं सुरक्षित माहवारी का साधन इस्तेमाल करती हैं। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का महिला सशक्तीकरण पर विशेष ध्यान जेंडर संवेदनशील की कई पहलों का मुख्य आधार रहा है। मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना लड़कियों के सशक्तीकरण के लिए प्रोत्साहन राशि योजना है जिसके तहत 7वीं से 12वीं क्लास की सभी लड़कियों को अपनी माहवारी का ध्यान रखने के लिए सालाना 300 रुपये दिये जाते हैं। स्वच्छ भारत अभियान,लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान और ‘हर घर नल का जल’ योजना से घरों, स्कूलों और सार्वजनिक जगहों पर सुरक्षित शौचालयों और पानी की सुविधा मिल रही है।  

माहवारी स्वच्छता दिवस (28 मई) पर जागरूकता अभियान राजनेताओं,सरकारों,समुदायों,परिवारों और आम आदमियों को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि वे माहवारी से जुड़ी गलतफहमियों,रूढ़ियों और वर्जनाओं को दूर करें और जरूरी हल पर ध्यान दें।

सफर बहुत लंबा है   

इसमें कोई शक नहीं कि लड़कियों के लिए सुरक्षित माहवारी की दिशा में राज्य के प्रयास सराहनीय हैं। ‘किसी को छोड़े बगैर’ का संकल्प लेने के बाद,जो कि संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों में शामिल है। यह महत्वपूर्ण है कि राज्य उन तक पहुंचने को प्राथमिकता में शामिल करे जो माहवारी स्वच्छता सुरक्षा-चक्र से बाहर रह गयी हैं।

एनएफएचएस-5 के अनुसार बिहार में लगभग 41.7 प्रतिशत लड़कियां (15-24 वर्ष) अब भी सुरक्षित माहवारी का साधन इस्तेमाल नहीं करतीं जबकि भारत में यह प्रतिशत 22.7 है। बिहार के कई जिलों में यह प्रतिशत 62 तक पहुंच जाता है।  यह एक चिंता का विषय है क्योंकि ऐसी लड़कियों को इन्फेक्शन और बीमारियों का खतरा रहता है। इसके साथ उन्हें सामाजिक पृथकता,लोक-लाज और भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। ऐसी लड़कियां शिक्षा, हुनर,नौकरी और प्रगति के पथ पर पिछड़ जाती हैं।  इनमें से बहुत सी लड़कियां समाज के सबसे उपेक्षित समुदायों की होंगी जो सुरक्षित माहवारी के साधनों के बारे में नहीं जानतीं और उन्हें खरीद भी नहीं सकतीं। 

माहवारी स्वच्छता पर काम करने वाले एक एनजीओ कार्यकर्ता ने एक बार बताया था, “कई बार हमें लगता है कि पैड के साथ पैंटी भी बांटनी चाहिए क्योंकि दूर-दराज की बहुत सी महिलाओं को सैनिटरी पैड के इस्तेमाल का तरीका नहीं मालूम होता है। यह बात भी है कि उन्हें उन्हें शौचालय या बाथरूम जैसी बंद जगह की भी जरूरत होती है, जहां साबुन और पानी हो ताकि वे कपड़े/पैड बदल सकें और सफाई कर लें। इन जरूरी चीजों के न होने से माहवारी वाली लड़कियों और औरतों के पास मासिक चक्र के दिनों में अपने घरों के एक कोने में सिमटे रहने के अलावा कोई चारा नहीं होता।”

इसके अलावा, माहवारी में इस्तेमाल हुए सामान को जहां-तहां फेंकने से आम स्वास्थ्य और पर्यावरण को बहुत बड़ा खतरा होता है। स्वच्छ माहवारी के लिए इस्तेमाल होने वाले कई साधन सड़-गलकर मिट्टी में तब्दील (बायो-डिग्रेडेबल) नहीं होते। खासकर इस वजह से कि उनमें नन-कम्पोस्टेबल सुपर एब्जॉर्वेन्ट (एसएपी) होता है। इन्हें जलाने से हवा में हानिकारक बैक्टीरिया फैल सकते हैं जिससे सांस की बीमारियोंका खतरा बढ़ सकता है। यह तो बहुत साफ है कि साफ-सुथरी माहवारी का मतलब सिर्फ लड़की का स्वास्थ्य या उसकी साफ-सफाई नहीं है। यह जीवन में उसके सीखने,कमाने,भाग लेने और प्रगति के अवसरों का मामला है। साथ ही एक जिम्मेदार नागरिक के नाते परिवार व देश को कुछ देने का मामला है,सिर्फ ’बच्चे पैदा करने’ का नहीं। 

इसलिए एक समुचित माहवारी स्वच्छता प्रबंधन (मेंस्ट्रुअल हाइजीन मैनेजमेंट- एमएचएम) में जरूरी है कि इसके लिए समस्त सरकार और समस्त समुदाय का अंदाज अपनाया जाए जिसमें एक मजबूत दृष्टि और स्पष्ट योजना हो। इसमें कई बातों की जरूरत होती है - जागरूकता, माहवारी के लिए किफायती और पर्यावरण उपयुक्त सामान तक पहुंच,साफ पानी,सफाई की सुविधाएं और इस्तेमाल किये हुए सामान को निपटाने का तरीका।  

समस्त सरकार सोच महत्वपूर्ण   

इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि महाराष्ट्र, झारखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के पास माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के लिए एक विस्तृत राज्य कार्य योजना और रोडमैप है। इसमें समन्वित तरीके से सतत समाधान के लिए जिम्मेदार सारे विभागों की भूमिकाएं तय हैं। बिहार में पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार ने इस मामले में पहल करते हुए इसी साल मार्च में सभी प्रमुख विभागों से समन्वय और ’यूनिसेफ’ के तकनीकी सहयोग के साथ जिला माहवारी स्वच्छता प्रबंधन योजना शुरू की है। इसके बाद सीतामढ़ी ने भी यह योजना अपनायी है। इस तरह की पहल को बिहार में बढ़ाने की जरूरत है। जरूरत इस बात की है कि बिहार सरकार माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के लिए राज्य कार्य योजना को प्राथमिकता के आधार पर शुरू करे। इसके लिए जरूरी है कि महिला एवं बाल विकास विकास निगम, समाज कल्याण,शिक्षा,स्वास्थ्य,ग्रामीण विकास,पंचायती राज और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग मिलकर योजना बनाएं ताकि संसाधनों व कार्यकर्ताओं को एक साथ लाकर माहवारी स्वास्थ्य व स्वच्छता प्रबंधन के लिए एकीकृत,पर्यावरण-उपयुक्त और सतत समाधान की दिशा में काम हो। 

सिविल सोसायटी समूहों, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों, धर्म-गुरुओं, स्थानीय व्यापारियों और मीडिया के साथ पहली कड़ी के कार्यकर्ताओं, ‘आशा’,आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं,शिक्षकों,जीविका स्वयं सहायता समूहों और सामुदायिक कार्यकर्ताओं को इस बात के लिए तैयार किया जा सकता है कि वे माहवारी के बारे में मौन की संस्कृति, लोक-लाज,रुढ़ियों और वर्जनओं को तोड़ें।

‘जीविका’ (राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन) के सूक्ष्म-उद्यम मॉडल की क्षमता का इस्तेमाल कर महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित विकेन्द्रित उत्पादन इकाइयों की स्थापना की जा सकती है। इससे माहवारी-उपयोगी उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित करने और आमदनी प्राप्त करने का दोहरा उद्देश्य पूरा हो सकता है। किफायती,पर्यावरण-उपयुक्त सैनिटरी पैड की व्यापक उपलब्धता के लिए पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी बढ़ायी जानी चाहिए।   माहवारीपैड के कचरे से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों को देखते हुए सरकार को बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ बेहतर समन्वय कर इन उत्पादों का मानक तय करना चाहिए। 

एक साथ काम करने का संकल्प

विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस पर इस बार #रेडडॉटचैलेंज स्वीकार करें और संकल्प लें कि हर  लड़की और महिला को स्वच्छ माहवारी का अधिकार मिले जिसमें सुरक्षा हो,सम्मान हो और कोई झिझक न हो। आइये हम हर व्यक्ति को  खासकर मर्दों और लड़कों को एक ऐसा माहौल बनाने के लिए तैयार करने का संकल्प लें कि जहां पीरियड या मासिक चक्र लड़कियों और महिलाओं को अपनी पूरी क्षमता प्राप्त करने से न रोके। आइये,हम सामूहिक रूप से सरकारों से कहें कि वे माहवारी स्वच्छता प्रबंधन  को प्राथमिकता दें। इससे किशोरी सशक्तीकरण,लैंगिक समानता ओर पर्यावरण सुरक्षा को बल मिलेगा।

(लेखिका बिहार यूनिसेफ की प्रमुख हैं)

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