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इन मंदिरों के अंदर नहीं घुस सकते हैं पुरुष

इन मंदिरों के अंदर नहीं घुस सकते हैं पुरुष

स्त्रियां ही नहीं, पुरुषों को भी कई मंदिरों में अंदर नहीं जाने दिया जाता है। यहां सवाल मान्यताओं का है या इस पर भी लैंगिक भेदभाव का आरोप लग सकता है?

सबरीमला विवाद ने स्त्रियों के मंदिरोें में प्रवेश पर लगी रोक के मुद्दे पर बहस के बीच में ला दिया। पर इसके साथ ही यह सवाल भी उठने लगा कि क्या कोई ऐसा  मंदिर भी है, जहां पुरुषों को अंदर नहीं जाने दिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि देश में कई ऐसे मंदिर भी हैं, जहां पुरुषों के प्रवेश पर रोक लगी है। वहां का सारा काम, प्रबंधन वगैरह स्त्रियां ही करती हैं। कुछ  मंदिरोें में पुरुषों को एक सीमा तक जाने दिया जाता है तो कुछ में मुख्य द्वार से ही वापस कर दिया जाता है।

अट्टूकल भगवती मंदिर

केरल के त्रिवेंद्रम में बने अट्टूकल भगवती मंदिर में पुरुष अंदर नहीं जा सकते। इस मंदिरकी अधिष्ठात्री देवी भद्रकाली हैं, जिन्होेने डरुक राक्षस का वध किया था। यह बड़ी तादाद में महिलाओं के वहां जाने की वज़ह से चर्चा में रहता है। पिछले साल यहां पोंगल के मौके पर तीस लाख से ज़्यादा महिलाएं गईं थी। इससे इस मंदिर का नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज़ हो गया।

केरलके अलप्पुज़ा ज़िले में चक्कुलथ कवु मंदिर स्थित है। इस मंदिर की देवी दुर्गा है। इस मंदिर में मुख्य कामकाज महिलाएं करती हैं और वे पोंगल के मौके पर वहां लाखों की तादाद में पंहुचती हैं। इस सालाना उत्सव में दस दिनों तक लोग व्रत करते हैं। पुरुष पुजारी सिर्फ़ देवी के पांव पखारते हैं। महिलाएं पूजा करती हैं। दसवें दिन ‘नारी पूजा’ होती है। नारी पूजा में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है।

ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर

राजस्थान के पुष्कर में ब्रह्मा का मंदिर है। इस मंदिर में विवाहित पुरुष नहीं जा सकते।

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पौराणिक कथा है कि यहां ब्रह्मा ने पुष्कर झील में सरस्वती के साथ यज्ञ किया। पर सरस्वती के देर से पंहुचने पर उन्होंने गायत्री से विवाह कर लिया और सरस्वती की ग़ैर मौज़ूदगी में गायत्री के साथ ही यज्ञ पूरा कर लिया। सरस्वती इससे बेहत कुपित हो गईं। उन्होंने शाप दिया कि कोई विवाहित पुरुष इस मंदिर में प्रेवश नहीं करेगा, यदि वह ऐसा करेगा तो उसे वे शाप दे देंगी और उसका अनिष्ट होगा।

भगती मां मंदिर, कन्याकुमारी

केरल के कन्याकुमारी में बना भगती मां मंदिर में भी पुरुष अंदर नहीं जा सकते। इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी कन्या मां भगवती दुर्गा है।

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पौराणिक कथा के अनुसार, मां भगवती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए यहां तपस्या की थी। मान्यता यह भी है कि यहीं सती के रीढ़ की हड्डी गिरी थी। यह स्थान संन्यास से जुड़ा माना जाता है। यहां संन्यासी पुरुषों को मुख्य दरवाज़े में प्रवेश है, पर वे गर्भ गृह नहीं जा सकते। विवाहित पुरुष तो मंदिर के प्रांगण में ही नहीं जा सकते।

कामरूप कामाख्या मंदिर

असम के गुवाहाटी में बना यह मंदिर शक्ति पीठ है। मान्यता है कि यहां सती का योनि गिरा था।

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इसलिए यहां माहवारी को पवित्र माना जाता है और हर महीने बह्रमपुत्र नदी के रंग बदल कर लाल होने को इससे जोड़ कर देखा जाता है। इस मंदिर में सिर्फ़ माहवारी महिलाओं को ही दाख़िला मिलता है, पुरुष नहीं जा सकते। महिला संन्यासिन ही इसकी पुजारी होती हैं। 

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