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प्रधानमंत्री, गृहमंत्री किसानों का अपमान नहीं करें: मेघालय के राज्यपाल

प्रधानमंत्री, गृहमंत्री किसानों का अपमान नहीं करें: मेघालय के राज्यपाल

मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसानों के लिए एमएसपी को क़ानूनी मान्यता देने की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह किया कि वे किसानों का अपमान नहीं करें। 

किसान आंदोलन पर किसानों को एक अनपेक्षित समर्थन मिला है और बीजेपी को झटका लगा है। वह भी बीजेपी सरकार द्वारा नियुक्त मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक से। उन्होंने किसानों के लिए एमएसपी को क़ानूनी मान्यता देने की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह किया कि वे किसानों का अपमान नहीं करें। उन्होंने तो कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री से यह आग्रह किया था कि वह किसानों को खाली हाथ नहीं जानें दें और उनपर बल प्रयोग नहीं करें। मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक अपने गृह ज़िले उत्तर प्रदेश के बागपत में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। 

सत्यपाल मलिक उन तीन कृषि क़ानूनों के संदर्भ में बोल रहे थे जिसका किसान 100 से भी ज़्यादा दिनों से दिल्ली की सीमा पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान नेता अब देश भर में घूम-घूम कर किसान महापंचायत कर रहे हैं। किसान नेता अब विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में जाकर किसान पंचायतें कर रहे हैं और लोगों से अपील कर रहे हैं कि वे बीजेपी को वोट नहीं दें। किसानों का कहना है कि इन कृषि क़ानूनों से एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी व्यवस्था ख़त्म हो जाएगी और बड़े उद्योगपतियों को किसानों की 'लूट' की खुली छूट मिल जाएगी। 

किसानों की इन्हीं चिंताओं के संदर्भ में सत्यपाल मलिक ने कहा कि एमएसपी की क़ानूनी गारंटी मिल जाने पर किसान शांत हो जाएँगे। 

मलिक ने प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह से आग्रह करते हुए उन्होंने कहा, 'कोई भी क़ानून किसानों के पक्ष में नहीं हैं। जिस देश में किसान और सैनिक संतुष्ट नहीं हैं, वह देश आगे नहीं बढ़ सकता। उस देश को बचाया नहीं जा सकता। इसलिए, सेना और किसानों को संतुष्ट रखा जाना चाहिए।'

वह कहते हैं, 'मैं अभी बहुत बड़े जर्नलिस्ट से मिलकर आया हूँ। जो प्रधानमंत्री के बहु अच्छे दोस्त हैं। मैंने उन्हें कहा कि मैंने तो कोशिश कर ली लेकिन अब तुमलोग उनको समझाओ। यह ग़लत रास्ता है। किसानों को दबकार यहाँ से भेजना, अपमानित करके दिल्ली से भेजना। पहले तो ये जाएँगे नहीं, ये जाने को आए ही नहीं हैं। दूसरे ये चले गए तो 300 बरस भूलेंगे नहीं। लिहाजा इन्हें कुछ देकर (भेजो), एक चीज है, ज़्यादा कुछ करना भी नहीं है। एमएसपी को क़ानूनी तौर पर मान्यता दे दो।'

वह आगे कहते हैं कि लेकिन अगर यह ज़्यादा चलता रहा तो मैं नहीं जानता कि आप लोगों में से कितने लोग जानते हो, मैं सिखों को जानता हूँ। उन्होंने कहा, 'इंदिरा गांधी ने जब ब्लू स्टार किया उसके बाद उन्होंने अपने फार्म हाउस से एक महीना महामृत्युंजय का यज्ञ कराया। अरुण नेहरू ने मुझे बताया कि उन्होंने उनसे कहा कि वह तो अनुष्ठानों को नहीं मानती थीं, वह ये क्यों करा रही हैं। तो उन्होंने कहा कि तुम्हें पता नहीं है। मैंने इनका अकाल तख्त तोड़ा है ये मुझे छोड़ेंगे नहीं।'

मलिक ने किसानों की ख़राब स्थिति का हवाला दिया और कहा कि कृषि क़ानूनों के मामले में जो उनके सवाल हैं उनके जवाब दिए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए किसी भी हद तक जाएँगे।

उन्होंने कार्यक्रम में यह भी दावा किया कि उन्होंने जब कानाफूसी सुनी तो उन्होंने किसान नेता राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी रुकवाई। 

उन्होंने किसानों की स्थिति ख़राब बताई और कहा कि वे दिन-प्रतिदिन ग़रीब होते जा रहे हैं, जबकि सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का वेतन हर तीन साल के बाद बढ़ता जाता है। मलिक ने कहा कि जो भी किसान द्वारा बोया जाता है वह सस्ता होता है और जो कुछ भी वह खरीदता है वह महंगा होता है।

मलिक ने कहा, 'वे नहीं जानते कि वे कैसे ग़रीब होते जा रहे हैं। वे नहीं जानते कि उनका सत्यानाश कैसे हो रहा है। जब वे बोते हैं तो क़ीमत कुछ अच्छी होती है, और जब वे इसे काटने जाते हैं तो क़ीमत 300 रुपये तक घट जाती है।'

मलिक ने नए कृषि क़ानूनों के पक्ष में पेश किए गए तर्कों के विरोध में कहा, 'बहुत शोर मचाया गया कि किसान अब किसी भी स्थान पर (फ़सल) बेच सकते हैं। यह 15 साल पुराना क़ानून है। इसके बावजूद जब मथुरा का किसान गेहूँ लेकर पलवल जाता है तो उस पर लाठीचार्ज होता है। जब सोनीपत का किसान नरेला आता है तो उस पर लाठीचार्ज होता है।'

मलिक कहते हैं, 'मैं गवर्नर होने लायक आदमी नहीं हूँ। और उसकी वजह यह है कि गवर्नर को चुप रहना पड़ता है। गवर्नर को सिर्फ़ दस्तख़त करने पड़ते हैं। गवर्नर को आराम करना पड़ता है। गवर्नर को कोई काम नहीं करना पड़ता है। कोई बात पर बोलना नहीं पड़ता है। लेकिन मेरी जो आदत है कि कोई बात होती है तो उस पर ज़रूर बोलूँगा। और इससे मुझे बहुत दिक्कत पेश आती है जैसे किसानों के मामले में है।'

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