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श्रीलंका: दवाइयों की ऐसी कमी कि डॉक्टर दे रहे सलाह- 'बीमार न पड़ें'

श्रीलंका: दवाइयों की ऐसी कमी कि डॉक्टर दे रहे सलाह- 'बीमार न पड़ें'

श्रीलंका में जारी आर्थिक और राजनीतिक संकट के बीच क्या अब हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि अब खाने की कमी के साथ ही दवाइयों की भी कमी होने लगी है?

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ऐसी नौबत आ जाए कि डॉक्टर को मरीजों को यह सलाह देनी पड़े कि आप बीमार न पड़ें या फिर हादसे का शिकार न हों क्योंकि दवाएँ कम पड़ गई हैं? 

दरअसल, यही हकीकत है। श्रीलंका में जारी संकट के बीच दवाइयों की भारी किल्लत हो गई है। अब कुछ डॉक्टर सोशल मीडिया पर इसके लिए सहायता करने की गुहार लगा रहे हैं। दवाइयों की कमी का नतीजा यह निकल रहा है कि डॉक्टर अब मरीजों को सलाह दे रहे हैं कि बीमार न पड़ें या दुर्घटना में का शिकार नहीं हों।

श्रीलंका से ऐसी रिपोर्ट तब आ रही है जब प्रदर्शनकारी अब उग्र हो गए हैं और उन्होंने कोलंबो स्थित प्रधानमंत्री के दफ्तर पर कब्जा कर लिया है। देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई है। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे देश छोड़कर भाग चुके हैं। इससे दो दिन पहले प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के आवास पर कब्जा जमा लिया था और प्रधानमंत्री के निजी आवास में आग लगा दी थी। क़रीब तीन महीने से श्रीलंका में अप्रत्याशित घटनाएँ घट रही हैं। 

ये अप्रत्याशित घटनाएँ श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के बाद घटनी शुरू हुईं। इसके लक्षण साफ़ तौर पर तब दिखने लगे जब फ्यूल संकट खड़ा हुआ। क़रीब दो महीने पहले ही देश भर में ब्लैकआउट होने लगा। शहर के शहर अंधेरे में रहे। गाड़ियों में डालने के लिए पेट्रोल-डीजल की कमी हो गई। पेट्रोल पंपों पर गाड़ियों की लंबी-लंबी लाइनें लगने लगीं। महंगाई बेतहाशा बढ़ी। लोगों के भूखे रहने की नौबत आ गई। इसी बीच सरकार के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। अब तक उस संकट के ख़त्म होने का कोई संकेत नहीं है जिसने देश को आर्थिक मंदी और राजनीतिक संकट में डाल दिया है।

श्रीलंका के पास ईंधन और भोजन जैसे बुनियादी आयातों के भुगतान के लिए पैसे नहीं हैं। दवाएँ भी ख़त्म हो रही हैं। दवाओं के लिए कुछ डॉक्टरों ने सोशल मीडिया की ओर रुख किया है। 

डॉक्टर दान की दवाएँ या फिर उन्हें खरीदने के लिए धन प्राप्त करने की कोशिश में हैं। वे विदेशों में रह रहे श्रीलंकाई लोगों से भी मदद की गुहार लगा रहे हैं।

इस संकट का असर अब मरीज़ों पर पड़ने लगा है। न्यूज़ एजेंसी एपी ने रिपोर्ट दी है कि 15 साल की हसीनी वासना को वह दवा नहीं मिल सकती है जो उसे प्रत्यारोपित किडनी की रक्षा के लिए चाहिए। हसीनी के गुर्दे की बीमारी का इलाज किया गया है। हसीनी का परिवार अब मदद करने के लिए दानदाताओं पर निर्भर है क्योंकि उसका अस्पताल अब टैक्रोलिमस की गोलियाँ नहीं दे सकता है जो उसे कुछ सप्ताह पहले तक मुफ्त में मिली थीं। वह एक दिन में साढ़े आठ गोलियाँ लेती हैं और केवल एक दवा की कीमत 200 डॉलर प्रति माह से अधिक हो जाती है।

रिपोर्ट के अनुसार, कैंसर अस्पताल भी निर्बाध उपचार सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक दवाओं के भंडार को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। श्रीलंका मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष समथ धर्मरत्ने ने कहा, 'बीमार न हों, घायल न हों, ऐसा कुछ भी न करें जिससे आपको बेवजह इलाज के लिए अस्पताल जाना पड़े। इसी तरह मैं इसे समझा सकता हूं; यह एक गंभीर स्थिति है।' 

एपी की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक किडनी अस्पताल के प्रमुख डॉ. चार्ल्स नुगावेला ने कहा कि उनका अस्पताल दानदाताओं की उदारता की बदौलत चल रहा है, लेकिन उन्होंने केवल उन रोगियों को दवा उपलब्ध कराने का फैसला किया है जिनकी बीमारी उस अवस्था में पहुंच गई है जहां उन्हें डायलिसिस की आवश्यकता है।

नुगावेला को चिंता है कि सामग्री की कमी के कारण अस्पताल को सबसे ज़रूरी सर्जरी के अलावा सभी इलाज को बंद करना पड़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका कॉलेज ऑफ़ ऑन्कोलॉजिस्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय को दवाओं की एक सूची दी कि 'बहुत जरूरी है कि दवाएँ सभी अस्पतालों में हर समय होना चाहिए ताकि हम बिना किसी रुकावट के कैंसर का इलाज कर सकें। लेकिन सरकार को उन्हें उपलब्ध कराने में मुश्किल हो रही है।'

अस्पतालों में रेबीज, मिर्गी और यौन संचारित रोगों के लिए दवाओं की कमी है। सर्जरी के लिए रूई जैसी चीजें कम होने लगी हैं।

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