क्या मायावती वोट कटवा राजनीति कर रही हैं?
पश्चिमी यूपी में दो चरण के चुनाव हो चुके हैं। 113 विधानसभा क्षेत्रों के लिए हुए मतदान में सपा आरएलडी गठबंधन को बढ़त मिलती हुई दिख रही है। हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि खासकर जाटलैंड में होने वाले, पहले चरण के चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन खराब नहीं है। अगड़ी जातियों के साथ गैर-जाट छोटे समूह वाली जातियों; प्रजापति, नाई, कश्यप, सैनी, वाल्मीकि, कोरी, धोबी आदि का एक हिस्सा बीजेपी को मिला है। सपा आरएलडी गठबंधन और बीजेपी के बीच मुकाबले में बसपा को नजरअंदाज किया जा रहा है। क्या बसपा मुकाबले से एकदम बाहर है?
मानीखेज है कि पिछले चुनाव में 22 फ़ीसदी वोट प्राप्त करने वाली बसपा को ज्यादातर विश्लेषण लड़ाई से बाहर मान रहे हैं। प्रतिद्वन्द्वी दल भी इस बात को खूब प्रचारित कर रहे हैं। बावजूद इसके सपा और उसके समर्थक मायावती पर बीजेपी से मिले होने के आरोप लगा रहे हैं। इतना ही नहीं बीजेपी का आईटी सेल भी एक वीडियो प्रचारित कर रहा है, जिसमें मायावती सपा को हराने के लिए बीजेपी का समर्थन करने की बात कर रही हैं।
गौरतलब है, सपा बसपा गठबंधन टूटने के बाद बसपा के कई विधायक सपा में शामिल हो गए थे। इससे नाराज मायावती ने एमएलसी चुनाव के संदर्भ में यह बयान दिया था। बीजेपी के लोग इस आधार पर दलितों को विवेकहीन समझकर यह कह रहे हैं कि मायावती बीजेपी का समर्थन करने के लिए कह रही हैं।
ऐसे लोग दलितों को यह भरोसा देते हैं कि चुनाव के बाद मायावती बीजेपी के साथ आएंगी। सपा और उनके समर्थकों के प्रचार को बीजेपी के इस दुष्प्रचार से बल मिलता है।
मायावती पर बीजेपी से सांठ-गांठ के आरोप लगातार लग रहे हैं। कुछ दिनों पहले दैनिक भास्कर ने एक स्टिंग के आधार पर बसपा के एक जोनल कोर्डिनेटर पर 300 करोड़ में 50 सीटें बेचने का आरोप लगाया। मायावती ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया है। बसपा ने इस अखबार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है।
फिलहाल, एक अनाम न्यूज पोर्टल ने यह आरोप लगाया है कि मायावती उप प्रधानमंत्री बनने के लिए मोदी से मोलतोल कर रही हैं। जाहिर है यूपी चुनाव के मद्देनजर ही इस मोलतोल को प्रचारित किया जा रहा है। निश्चित तौर पर चुनाव के वक्त ऐसे आरोप बसपा की विश्वसनीयता को कमजोर कर सकते हैं।
अब सवाल यह है कि जो राजनीतिक दल और उनके समर्थक बसपा को लड़ाई में ही नहीं स्वीकार कर रहे हैं, फिर ऐसे आरोप क्यों लगा रहे हैं? क्या इन्हें मायावती से कोई निजी दिक्कत है? जी नहीं। असल में, मायावती खामोश रहकर मजबूती से चुनाव लड़ रही हैं। उन्होंने प्रत्येक विधानसभा पर बेहतरीन सामाजिक समीकरण के साथ मजबूत प्रत्याशी उतारे हैं।
प्रत्याशियों के चयन का मामला
प्रत्याशियों के चयन के कारण भी मायावती पर आरोप लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि मायावती जानबूझकर ऐसे प्रत्याशियों का चयन कर रही हैं, जो सपा को नुकसान पहुँचा रहे हैं। यह बात विशेष रूप से मुसलिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों के बारे में कही जा रही है। ऐसे क्षेत्रों में मायावती ने मुसलिम प्रत्याशी उतारे हैं। तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे मुसलिम वोट विभाजित होगा। इसका लाभ बीजेपी को होगा। कुछ अति महत्वपूर्ण सीटों पर भी बसपा के प्रत्याशियों को लेकर यह बात कही जा रही है।
मसलन, मैनपुरी की करहल सीट पर अखिलेश यादव के मुकाबले बसपा ने दलित कुलदीप नरायन को खड़ा किया है। इसी तरह से गाजीपुर की जहूराबाद सीट पर ओम प्रकाश राजभर के खिलाफ शादाब फातिमा को चुनाव मैदान में उतारा है। कुशीनगर की फाजिल नगर सीट पर स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ इलियास अंसारी को बसपा ने प्रत्याशी बनाया है। आरोप है कि इन सीटों पर बसपा वोट कटवा पार्टी है। इससे ये कद्दावर नेता मुश्किल में फंस गए है। इन आरोपों को सुनकर बड़ा अचरज होता है।
ऐसा लगता है, गोया लोग मायावती से राजनीति नहीं बल्कि बीजेपी को हराने के लिए आत्म समर्पण करने की माँग कर रहे हैं। क्या राजनीति में इस तरह की मासूमियत और नैतिकता की कोई गुंजाइश है? राजनीति शतरंज की बिसात है, जिस पर बहुत से प्यादों की बाजी लगाकर दुश्मन को मात दी जाती है। दूसरी बात, बीजेपी को हराने के लिए मायावती से ही कुर्बानी की माँग क्यों की जा रही है? क्या बीजेपी को हराने के लिए मायावती को राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिए?
बसपा एक राष्ट्रीय दल है और मायावती चार बार सूबे की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा का औसत वोट 25 फीसद है। ऐसे में क्या बसपा को वोट कटवा पार्टी माना जा सकता है?
बीजेपी की मदद करने के आरोप
मायावती पर बीजेपी की मदद करने के आरोप लग रहे हैं। इस आरोप को साबित करने के लिए एक उदाहरण दिया जाता है। कौशांबी की सिराथू सीट पर सपा गठबंधन की पल्लवी पटेल और बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्या के सामने ब्राह्मण प्रत्याशी को हटाकर मायावती ने मुंसब उसमानी को खड़ा किया है। क्या मुसलिम वोट काटने के लिए और केशव प्रसाद मौर्या को जिताने के लिए मायावती ने उसमानी को उतारा है?
दरअसल, मायावती ने एक-एक सीट पर बहुत देख परखकर प्रत्याशी दिए हैं। इस सीट पर दलित और मुसलिम बड़ी तादाद में हैं। बीजेपी से नाराज अगड़ी जातियों के सहारे वे जीत के आंकड़े को पाने की जुगत में हैं। इसके सामने एक दूसरा उदाहरण दिया जा सकता है।
लखनऊ की कैंट सीट बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ है। इस सीट पर बीजेपी के ब्रजेश पाठक के मुकाबले मायावती ने अनिल पाण्डेय को चुनाव मैदान में उतारा है। बसपा का यह मजबूत प्रत्याशी बहुत मेहनती भी है। लगातार डोर टू डोर कैंपेन के जरिए अनिल पांडेय अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। गरीब दलित और ब्राह्मण भी उसे वोट करने की बात कह रहे हैं। अगर जातिगत समीकरण देखे जाएं तो बसपा का प्रत्याशी बीजेपी के लिए वोट कटवा होगा। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। यह उनकी चुनावी रणनीति है।
कोई भी पार्टी हमेशा अपने प्रत्याशी को चुनाव जिताना चाहती है। और हाँ, कहीं उसकी रणनीति मुख्य प्रतिद्वन्द्वी को दूसरे ढंग से मात देने की भी होती है। राजनीति में ना तो कोई नाते रिश्ते होते हैं और ना कोई नैतिकता होती है। इसलिए मायावती पर वोट कटवा होने या बीजेपी की मदद करने के आरोप तार्किक नहीं लगते।