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मराठा आरक्षण और ठाकरे सरकार की परेशानी!

मराठा आरक्षण और ठाकरे सरकार की परेशानी!

महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार इन दिनों मराठा आरक्षण के सवाल को लेकर बहुत उलझन में है। 

महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार इन दिनों मराठा आरक्षण के सवाल को लेकर बहुत उलझन में है।एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है तो दूसरी तरफ सरकार पर दबाव है कि वह मराठा आरक्षण को लेकर कोई बड़ा कदम उठाए अन्यथा महाराष्ट्र का मराठा वोट बैंक खिसक सकता है। 

इस बात को लेकर सरकार के अंदर भी बहुत सारी परेशानियां हैं। एक तरफ जहां एनसीपी को लगता है कि अगर मराठा आरक्षण के सवाल पर सरकार ने कुछ नहीं किया तो फिर सबसे ज्यादा नुकसान उसी को होगा क्योंकि पश्चिम महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा मराठा हैं और एनसीपी का गढ़ भी वही है। 

ओबीसी पॉलिटिक्स की चाहत

कांग्रेस के मराठा नेता परेशान हैं कि उनकी पार्टी को भी राष्ट्रीय स्तर पर इस पर फैसला लेना होगा क्योंकि मराठवाड़ा से आने वाले कांग्रेस के नेता भी परेशान हैं कि कहीं उनका वोट बैंक ना खिसक जाए लेकिन कांग्रेस में मुश्किल यह है दिल्ली का हाईकमान हो या प्रदेश में बैठे अध्यक्ष नाना पटोले दोनों ही मराठा आरक्षण को लेकर बहुत आगे नहीं बढ़ना चाहते। उनको लगता है अब तो समय आ गया है ओबीसी पॉलिटिक्स की जाए। नाना पटोले खुद भी कुनबी ओबीसी हैं।  

मराठा आरक्षण के लिए बने आयोग ने तो अपनी सिफारिश में कुनबी को ही मराठा बता दिया। कहा कुनबी भी पिछड़े हैं इसलिए मराठा भी पिछड़े वर्ग के हैं और उनको आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन अदालत ने इस बात को नहीं माना और कहा यह साबित करने लायक तथ्य नहीं है कि मराठा समाज असल में पिछड़ा है। 

मराठा आरक्षण पर बने आयोग ने तो यह भी कहा कि मराठा असल में कोई जाति नहीं है, वह तो वे लड़ाके हैं जो कुनबी के तौर पर खेती करते थे और बाद में शिवाजी महाराज के कहने पर लड़ने के लिए तैयार हो गए। 

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नाना पटोले, महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष।

जमीनी असलियत यह है कि आज भी महाराष्ट्र में असल मराठों के 96 कुल माने जाते हैं जो अपने अलावा किसी कुल से भी व्यवहार नहीं करते और ना ही रोटी-बेटी का संबंध रखते हैं। सवाल ये उठता है कि आखिर ये कैसे साबित होगा कि कुनबी मराठा हैं। असल में देखा जाए तो कुनबी का मतलब है कुर्मी। ये काश्तकार होता है। विदर्भ में बड़ी प्रमुखता से छोटे काश्तकार हैं जो खेती करते हैं। विदर्भ में सच में कपास की खेती के कारण छोटे काश्तकारों की हालत खराब है। 

उधर, नाना पटोले को लगता है कि उनके अध्यक्ष बनने के बाद विदर्भ का कुनबी समाज उनके साथ खड़ा होगा और अगर मराठाओं को भी कुनबी समाज में गिना जाए तो ओबीसी कहलाने वाले कुनबी समाज का नुक़सान हो सकता है। 

महाराष्ट्र में 22 फ़ीसदी मराठा हैं जबकि ओबीसी की संख्या 26 फीसद से ज्यादा है। जाहिर है कि कांग्रेस चाहती है कि ओबीसी का साथ उसको मिले क्योंकि मराठा वोट बैंक तो क्षेत्र और नेता के हिसाब से अधिकतर एनसीपी के साथ और कुछ कांग्रेस के साथ जाता है। 

एनसीपी का दबाव

यह जानना अहम है कि बीजेपी ने महाराजा शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोसले और सोलापुर के मजबूत मराठा परिवार मोहिते पाटील परिवार को साथ में लेकर पश्चिम महाराष्ट्र के मराठों में सेंध लगाना शुरू कर दिया था। ऐसे में मराठा आरक्षण के सवाल पर एनसीपी चाहती है कि तत्काल विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए और एक प्रस्ताव पास किया जाए कि केंद्र सरकार इस विषय पर कानून बनाए ताकि सुप्रीम कोर्ट में मराठों के आरक्षण के दावे को साबित किया जा सके। 

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि किसी भी जाति को ओबीसी में गिनने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है और केंद्र का ओबीसी आयोग आयोग ही तय कर सकता है कि मराठा पिछड़े हैं या नहीं।

ज़मीनी हक़ीक़त है कि मराठा सामाजिक तौर पर महाराष्ट्र में उच्च वर्ग में आते हैं और उन पर सामाजिक विषमता का कोई दबाव नहीं है। लेकिन जब से खेती में नुक़सान होना शुरू हुआ है तबसे मराठों को लगता है शिक्षा और नौकरी में उनको आरक्षण मिलना चाहिए ताकि वह मराठा जो आर्थिक तौर पर गरीब हैं, उनको सहारा मिल सके। 

दिक्कत ये है कि महाराष्ट्र में करीब 52 फ़ीसदी आरक्षण है जिसमें से केवल 2 फ़ीसदी ही अति पिछड़ा और गरीब वर्ग के लिए है। मराठा इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं। बीजेपी सरकार ने अपने कार्यकाल में मराठा आरक्षण का बिल पास किया था जिसमें 16 फ़ीसदी आरक्षण मराठाओं को शिक्षा और नौकरी में दिया गया। 

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बीजेपी की कोशिश 

मुंबई हाई कोर्ट ने सरकार के इस फ़ैसले को सही करार दिया था। पर सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। अब सरकार मुश्किल में है। इस पर फ़ैसला कैसे किया जाए। बीजेपी पूरी तैयारी में है। वो मराठा आरक्षण के सवाल को बहुत ज्यादा उछालने के मूड में है ताकि राज्य में मराठा वोट बैंक उसकी तरफ आ सके। 

बीजेपी, कोरोना का कहर कम होते ही बड़े मोर्चे निकालेगी और इसका नेतृत्व राज्यसभा सांसद उदयन राजे भोसले और महाराजा शिवाजी के वंशज शिवेंद्रराजे भोसले करेंगे। इसका सीधा असर अगले साल होने वाले निकाय चुनाव में देखने को मिल सकता है।

पंढरपुर में बीजेपी की जीत

बीजेपी ने हाल ही में पंढरपुर का उपचुनाव जीतकर यह तो दिखा दिया है कि मराठा बहुल इस सीट पर उसकी पकड़ मजबूत हो चली है। इस उपचुनाव में जहां एनसीपी के अजित पवार पूरी कमान संभाले हुए थे, वहीं बीजेपी की तरफ से सोलापुर के दिग्गज मराठा परिवार मोहिते पाटील लगातार सक्रिय थे। बीजेपी की जीत से एनसीपी को बड़ा झटका लगा है। एनसीपी को डर है कि अगर इसी तरह बीजेपी मराठा वोट बैंक को साधने में कामयाब रही तो उसका बड़ा जनाधार खिसक जाएगा। 

वहीं, कांग्रेस के नेता एक तरफ एनसीपी की हार से खुश हैं तो दूसरी तरफ नाना पटोले जैसे नेता चाहते हैं अब फोकस ओबीसी पर हो। नाना पटोले का तर्क है कि पीएम मोदी ने ओबीसी राजनीति करके ही देश में बढ़त हासिल की है। 

कांग्रेस हाईकमान भी उनकी बात से सहमत दिखायी पड़ता है। मगर मुश्किल कांग्रेस के बड़े नेताओं की है जिनमें बालासाहेब थोरात और अशोक चौहान जैसे नाम शामिल हैं, सबको लगता है कि मराठा कमजोर हुए तो उनका जीतना मुश्किल हो जायेगा और राजनीति में भी उनकी पकड़ कम होगी। 

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