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मणिपुरः इस ढोंग पाखंड को बर्दाश्त करने को हम क्यों मजबूर हैं ?

मणिपुरः इस ढोंग पाखंड को बर्दाश्त करने को हम क्यों मजबूर हैं ?

मणिपुर पर यह कहकर बचा नहीं जा सकता कि ऐतिहासिक रूप से कुकी-मैतेयी विभाजन का मामला है। मणिपुर की हिंसा के लिए राज्य ज़िम्मेवार है, यह साफ़ साफ़ कहने की आवश्यकता है। 

बार बार हमें समझाने की कोशिश की जा रही है कि प्रधानमंत्री ने मणिपुर की हिंसा पर बहुत कड़ाई से अपनी बात कह दी है, इसलिए अब सरकार से मणिपुर के बारे में सवाल करने का मतलब क्या है। कहा जा रहा है कि इस बयान के बाद विपक्ष को अपनी ज़िद छोड़ देनी चाहिए कि मणिपुर की हिंसा पर संसद में चर्चा हो।सरकार विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री ने सरकार का रुख़ साफ़ कर दिया है।

 उसके बाद उन औरतों के साथ हिंसा करनेवालों की वीडियो के आधार पर पहचान क़रके 4 लोगों की गिरफ़्तारी भी कर ली गई है। बल्कि उनमें से  एक के घर गांव की औरतों ने मिलकर जला दिया है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने दोषियों को फाँसी तक देने का इरादा ज़ाहिर किया है। तो बात ख़त्म हो जानी चाहिए। और मीडिया में बात ख़त्म भी हो गई है। टेलीविज़न देखनेवाले बताते हैं कि मणिपुर अब मुख्य खबर नहीं है। 

प्रधानमंत्री के बयान का अर्थ हमें तब समझ में आएगा जब हम उसके बाद राज्य सरकार, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और मीडिया की प्रतिक्रिया पर ध्यान दें।कुकी औरतों के साथ सरेआम यौन हिंसा के वीडियो के प्रसारित होने के बाद देश में जो क्षोभ की लहर उठी उसे शांत करने के लिए प्रधानमंत्री ने अपने लंबे बयान में तक़रीबन 30 सेकेंड में अपना क्रोध व्यक्त किया।पहले उन्होंने कहा कि पूरे देश में मुख्यमंत्रियों को औरतों की हिफ़ाज़त करनी चाहिए। मणिपुर के पहले उन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ का नाम लिया। यानी यह जो आप देख रहे है, इसमें कोई ख़ास बात नहीं, यह और राज्यों में भी हो रहा है।खासकर विपक्ष की सरकारों वाले राज्यों में। 

इस बयान में एक इशारा था और उसे भाजपा नेताओं और मीडिया ने समझ लिया। भाजपा नेताओं ने पूछना शुरू किया कि अभी ही यह वीडियो क्यों प्रसारित किया जा रहा है। कुछ यह भी कह रहे हैं कि विपक्ष को पहले से इस वीडियो का पता था। इसके पीछे ज़रूर साज़िश यह है कि विपक्ष इसके बहाने मणिपुर को संसद में बहस का मुद्दा बनाए और सरकार को ज़रूरी काम न करने दे। लेकिन विपक्ष ने तो पहले ही साफ़ कर दिया था कि वह बाक़ी विषयों से पहले मणिपुर पर चर्चा चाहता है। आख़िर उससे बड़ा और ज़रूरी मुद्दा और क्या हो सकता है जब वह प्रदेश 3 महीने से हिंसा की आग में झुलस रहा हो और राज्य और संघीय, दोनों सरकारें उसके आगे बेबस हों! विपक्ष को इसके लिए इस वीडियो की ज़रूरत न थी।फिर भी भाजपा के नेता कह रहे हैं कि हिंसा होने के कोई 3 महीना बाद वीडियो क्यों जारी हुआ:ज़रूर कोई साज़िश है!

इसके अलावा अब बहस दूसरे राज्यों में औरतों पर होने वाली हिंसा की तरफ़ मोड़ दी गई है। न सिर्फ़ भाजपा के नेता बल्कि मीडिया भी अब मणिपुर के अलावा दूसरे राज्यों में औरतों की हिंसा के आँकड़े दिखला रहा है। समझाने की कोशिश हो रही है कि यह मामला सिर्फ़ मणिपुर का नहीं है। भाजपा नेता पूछ रहे हैं कि लोग बंगाल, राजस्थान की बात क्यों नहीं कर रहे, क्यों सिर्फ़ मणिपुर की हिंसा की बात की जा रही है।मंत्री कह रहे हैं कि बंगाल, राजस्थान में औरतों पर होने वाली हिंसा पर बहस बहुत ज़रूरी है क्योंकि मसला औरतों पर होने वाली हिंसा है। कुछ बुद्धिजीवी भाजपाई कह रहे हैं कि बलात्कार या यौन हिंसा ऐसी कोई असाधारण बात तो है नहीं। यह सुनकर भाजपा के सहयोगी जॉर्ज फ़र्नांडीस का बयान याद आ गया। उन्होंने 2002 में गुजरात में मुसलमान औरतों पर की गई यौन हिंसा के बाद यह कहा था कि यह तो होता ही रहता है।

ट्विटर को कहा गया है कि वह ऐसी सामग्री को प्रसारित न होने दे। मणिपुर के मुख्यमंत्री को इसका अफ़सोस है कि इस वीडियो ने मणिपुर जैसे राज्य की छवि धूमिल की है जहाँ के लोग औरत को माँ मानते हैं। यानी पूरा दोष इस वीडियो का है। चिंता मणिपुर की छवि की है। मणिपुर बदनाम नहीं होना चाहिए, भारत की इज्जत दुनिया में बनी रहनी चाहिए। क्या आपको कुछ साल पहले झारखंड में भीड़ के द्वारा तबरेज़ अंसारी को मार डाले जाने के वीडियो के बाद प्रधानमंत्री मोदी का बयान याद हैं? उस वक्त उन्होंने कहा था कि झारखंड को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। उस वक्त भी हिंसा से अधिक छवि की चिंता थी। क्या आपको गुजरात में 2002 की मुसलमानों के ख़िलाफ़ चली लंबी हिंसा के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री के बयान याद हैं? वे बार बार राज्य के हिंदुओं को कह रहे थे कि हिंसा की बात करने वाले गुजरात को बदनाम कर रहे हैं। बिलकीस बानो सिर्फ़ एक नाम नहीं है। उस वक्त गुजरात में  बीसियों मुसलमान औरतों ने बतलाया कि किस तरह उनके साथ यौन हिंसा की गई। क्या आपको याद है कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उस पर कोई प्रतिक्रिया दी हो? हाँ! उन्होंने गुजरात गौरव यात्रा निकाली जिसमें हर जगह यह कहा कि इस हिंसा की बात करके गुजरात को बदनाम किया जा रहा है।  

मणिपुर के मुख्यमंत्री इसके विरुद्ध राज्य भर में विरोध प्रदर्शन की घोषणा कर रहे हैं। यह नहीं मालूम कि यह विरोध किसका है: वीडियो का या हिंसा का? मुख्यमंत्री विरोध प्रदर्शन क्यों आयोजित कर रहे हैं? क्या यह उनका काम है? वे अब तक हिंसा क्यों नहीं रोक पाए हैं? क्या इसका अनुमान करने की आवश्यकता है कि उनके आह्वान पर कौन इस प्रदर्शन में शामिल होगा?


क्षणिक उत्तेजना से हटकर कुछ सवाल करने की आवश्यकता है। क्या भाजपा हमें यह यक़ीन करने को कह रही रही है कि इस वीडियो के प्रसारण के बाद ही राज्य और केंद्र सरकार को इस हिंसा का पता चला? लेकिन पुलिस के पास रिपोर्ट  तो 18 मई को ही कर दी गई थी। इस हिंसा की भयावहता को जानने के लिए वह रिपोर्ट पर्याप्त थी, इस वीडियो की ज़रूरत न पड़नी चाहिए थी। अगर यह पुलिस रिपोर्ट इतना पहले हो गई थी तो कार्रवाई या गिरफ़्तारी  वीडियो के प्रसारण के बाद  ही क्यों की गई? मीडिया में भी यौन हिंसा के बारे में रिपोर्टें प्रकाशित हो चुकी थीं।लेकिन वह किसी के लिए चिंता और क्षोभ का विषय न था। क्यों? अगर यह वीडियो सामने न आता? हिंसा तो थी ही, बस हम उसे देखते नहीं।

इसके बाद पहचाने गए अभियुक्तों में से एक की गाँव की औरतों ने उसका घर तोड़ फोड़कर जला डाला। इसकी इजाज़त उन्हें क्यों दी गई? और मैतेयी बहुल गाँव की औरतें क्या यह कह रही हैं कि उन्हें भी इन घटनाओं का पता वीडियो से ही चला? हम जानते हैं कि औरतें और पुरुष मिलकर कुकी लोगों पर हमले कर रहे हैं।मैतेयी औरतें भी औरतों पर यौन हिंसा में हिस्सा ले रही थीं। फिर यह अचानक क्रोध क्यों? क्या इसलिए कि यह बतलाया जा सके कि इंसाफ़ कर दिया गया है और अब शोर मचाने की ज़रूरत नहीं है?

मामला सिर्फ़ दो औरतों के साथ की गई इस जघन्य हिंसा का नहीं।हज़ारों कुकी लोगों के ख़िलाफ़ उकसाई गई हिंसा का है। उसमें ये दो ही नहीं, अनेक औरतों ने यौन हिंसा झेली है। सैंकड़ों कुकी मारे गए हैं। इस हिंसा में राज्य कुकी लोगों के ख़िलाफ़ रहा है। हिंसक गिरोहों को हथियार लूटने दिए गए हैं। इन औरतों ने भी बतलाया कि यह कहना ग़लत होगा कि भीड़ ने पुलिस से उन्हें छीन लिया, असल में पुलिस ने ही उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया। इसलिए यह कहकर बचा नहीं जा सकता कि ऐतिहासिक रूप से कुकी-मैतेयी विभाजन रहा है। आज की हिंसा के लिए राज्य ज़िम्मेवार है, यह साफ़ साफ़ कहने की आवश्यकता है। 

मुख्यमंत्री, भाजपा के नेता और मीडिया अभी भी हिंसा के लिए ‘ड्रग माफिया’ तस्करी और बाहरी लोगों को ज़िम्मेवार ठहरा रहे हैं। यह कहने में अभी भी हिचकिचाहट बनी हुई है और वह बौद्धिक समाज में भी है कि यह वास्तव में  बहुसंख्यकवाद को माननेवाली भाजपा सरकार की शह पर की जा रही हिंसा है जिसका निशाना अल्पसंख्यक हैं।

इस हिंसा को जारी रहने देने में भाजपा का फ़ायदा है। इससे न सिर्फ़ बहुसंख्यकवाद और मज़बूत होता है बल्कि साथ ही वह ‘बाहरी घुसपैठियों’ के हव्वे से देश के दूसरे हिस्सों की जनता को डराने का काम भी सधता है। असम में वे बाहरी और हैं, बिहार, उत्तर प्रदेश के लिए और। लेकिन भाजपा इस हिंसा के ज़रिए यह बतलाना चाहती है कि बाहरी तत्वों की पहचान और उन्हें क़ाबू  करने की अपनी क़ीमत है और उस क्रम में अगर हिंसा हो तो उससे इतना बेचैन नहीं हो जाना चाहिए।

हर तरफ़ से यह कोशिश की जा रही है कि हिंसा के चरित्र और उसकी गंभीरता को कम किया जाए और उसे दो समुदायों के बीच होनेवाले झगड़े में बदल दिया जाए।


मणिपुर की हिंसा पर हमारी प्रतिक्रिया से हमारे चरित्र का भी पता चलता है। आज सुना कि नागा समूहों ने हिंसा पर चिंता ज़ाहिर की है। इसके पहले तक वे कह रहे थे कि इसमें हम शामिल नहीं। जब तक वे हिंसा से प्रभावित नहीं होते, उसे लेकर उन्हें बहुत फ़िक्र थी, यह न दीखा। जब एक नागा औरत मारी गई तब जाकर उनका मुँह खुला।उस समय भी उन्होंने यह कहा कि हमें इसमें मत घसीटिये। लेकिन इस वीडियो के प्रसारण के बाद उन्हें हिंसा के ख़िलाफ़ बोलना पड़ा।

भाजपा के समर्थक तो इस हिंसा को भी जायज़ ठहराने का प्रयास कर रहे हैं। उनके मुताबिक़ कुकी लोग औरतों को ढाल बनाकर हमला कर रहे हैं। फिर उन औरतों को भी कुछ झेलना होगा ही! हम यह भी देख रहे हैं कि जिस तरह मणिपुर में हिंसा भड़काई गई, वैसे ही असम के मुख्यमंत्री असम में हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। वे लगातार बांग्लाभाषी मुसलमानों को बाहरी रख कर उनके ख़िलाफ़ राजकीय हिंसा के नए नए कारण तलाश कर रहे हैं। देश के दूसरे हिस्सों में अभी ऐतिहासिक बाहरी या घुसपैठियों के ख़िलाफ हिंसक भाषा में प्रचार किया जा रहा हैं। इसमें बंबई का सिनेमा और मीडिया उनका साथ दे रहा है। राज्य का तंत्र भी पूरी तरह इसमें शामिल है।  

सर्वोच्च न्यायालय को भी वीडियो के बाद ही स्थिति की गंभीरता समझ में आई जबकि उसके सामने यह मसला मई के पहले हफ़्ते में ही पहले पेश किया जा चुका था। उसे बतलाया गया था कि हिंसा को तत्काल रोकना ज़रूरी है। लेकिन न्यायालय सामान्य राजकीय मर्यादा को नहीं तोड़ना चाहता था। उसने कहा कि वह अतिरेक से बचना चाहता है। अब अपना क्षोभ व्यक्त कर क्या वह सिर्फ़ अपनी आत्मा को तसल्ली देना चाहता है या वह दुनिया को दिखलाना चाहता है कि उसके पास एक संवैधानिक आत्मा मौजूद है?

आख़िर इस ढोंग, पाखंड, झूठ, धोखाधड़ी और बेशर्मी का सामना करने को हम मजबूर क्यों हैं? क्योंकि हमने झूठ और हिंसा के विचार को सत्ता दे दी थी। अब हमारा निस्तार उसे वहाँ से अपदस्थ करके वापस अपने लिए नैतिक अवकाश हासिल करके ही हो सकता है।

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