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मैतेई उग्रवादी समूहों को लेकर केंद्र के इरादे क्या हैं, ट्रिब्यूनल क्यों बनाया?

मैतेई उग्रवादी समूहों को लेकर केंद्र के इरादे क्या हैं, ट्रिब्यूनल क्यों बनाया?

केंद्र ने मणिपुर में मैतेई उग्रवादी समूहों पर प्रतिबंध का फैसला लेने के लिए एक ट्रिब्यूनल का गठन किया है। मणिपुर में हिंसक घटनाओं के मद्देनजर केंद्र सरकार ने मैतेई समूहों पर प्रतिबंध लगाया था। लेकिन अब ट्रिब्यूनल इसलिए बनाया गया है कि इन पर पाबंदी आगे बढ़ाई जाए या नहीं। केंद्र सरकार का खुद का क्या रुख है, इसकी स्पष्ट जानकारी देने से वो कतरा रही है। अगर ट्रिब्यूनल ने पाबंदी हटाने को कहा तो क्या सरकार इन विवादित मैतेई समूहों से पाबंदी हटा देगी। मणिपुर में भाजपा सरकार है और वहां मैतेई समुदाय से मुख्यमंत्री है।

गृह मंत्रालय (एमएचए) ने एक ट्रिब्यूनल का गठन किया है कि जो केंद्र सरकार को सलाह देगा कि क्या मणिपुर के मैतेई उग्रवादी समूहों प्रतिबंध जारी रहना चाहिए। उसे यह भी बताना है कि प्रतिबंध जारी रखने के लिए क्या पर्याप्त आधार हैं।

गोहाटी हाईकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार मेधी के नेतृत्व में गठित इसका नाम है- गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) ट्रिब्यूनल। 

केंद्र सरकार ने 13 नवंबर को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और इसकी राजनीतिक शाखा, रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और इसकी सशस्त्र शाखा मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए), पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेईपाक (पीआरईपीएके) और इसकी सशस्त्र शाखा, 'रेड आर्मी', कांगलेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी) और इसकी सशस्त्र शाखा, जिसे 'रेड आर्मी' भी कहा जाता है, प्रतिबंधित करते हुए अवैध घोषित किया था। इनके अलावा कांगलेई याओल कनबा लुप (केवाईकेएल), समन्वय समिति (कोरकॉम) और एलायंस फॉर सोशलिस्ट यूनिटी कांगलेइपाक (एएसयूके) को उनके सभी गुटों, विंगों और फ्रंट संगठनों के साथ 'गैरकानूनी संगठन' घोषित किया गया था।

मैतेई चरमपंथी संगठन, जो ज्यादातर मणिपुर में काम करते हैं, को पांच साल की अवधि के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत "गैरकानूनी एसोसिएशन" के रूप में रखा गया था। गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना के अनुसार, इन समूहों को कथित तौर पर "भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरनाक गतिविधियों में शामिल होने" के लिए प्रतिबंधित किया गया है।

सरकार को यह कदम इन समूहों को उनकी "अलगाववादी, विध्वंसक, आतंकवादी और हिंसक गतिविधियों" पर अंकुश लगाने के लिए उठाना पड़ा है। सरकार ने यह भी बताया कि इन संगठनों का घोषित उद्देश्य, "सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से मणिपुर को भारत से अलग करके एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना करना और मणिपुर के स्वदेशी लोगों को इस तरह के अलगाव के लिए उकसाना" है।

मणिपुर में 3 मई को पहली बार जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 170 से अधिक लोग मारे गए हैं और कई सौ अन्य घायल हुए हैं। मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया गया था। इसी दौरान हिंसा भड़की थी। इसके बाद मणिपुर की कुछ युवतियों से गैंगरेप और उनकी नग्न परेड से पूरा भारत हिल गया था। इसके बाद मैतेई समूहों पर पुलिस थानों से हथियार लूटने के आरोप लगे। काफी हथियार अभी भी बरामद नहीं हो पाए हैं। असम राइफल्स की बैरिकेडिंग पर कुछ मैतई महिलाओं के हमले तक के आरोप हैं। इन तमाम मुद्दों पर भाजपा शासित राज्य सरकार विवादों में रही है। 

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