मणिपुर हिंसा: प्रधानमंत्री फिर से ‘चुप’!
जब प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री समेत देश के तमाम केन्द्रीय मंत्री ‘कर्नाटक विजय’ की चाह के अपने चुनावी अभियान में लगे हुए थे तब देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का एक राज्य आग में झुलसने को तैयार था।मई 2023 की शुरुआत में मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क उठी। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया। आज स्थिति यह है कि इस हिंसा में 118 लोगों की जान जा चुकी है (रॉयटर्स) और हमेशा की तरह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपत्ति में ‘चुप’ रहने का रास्ता अपनाया।
विपक्षी दलों द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं पर आलोचनात्मक मुखरता में रहने वाले नरेंद्र मोदी अपनी सरकार में चल रही गड़बड़ियों, अपने नेताओं और सांसदों पर लगने वाले भ्रष्टाचार और बलात्कार के आरोपों और अपनी सरकार की असक्षमताओं को लेकर पता नहीं क्यों हमेशा चुप रहते हैं? यही सलूक उन्होंने महिला पहलवानों के यौन शोषण के मामले में किया, और अब ऐसा ही कुछ वह और उनकी सरकार मणिपुर में जारी हिंसा के दौरान कर रहे है।
अपने देश में होने वाले हर विरोध प्रदर्शन के प्रति उदासीन रहने वाले वर्तमान प्रधानमंत्री अब मात्र एक चुनावी नेता बनकर रह गए हैं। मणिपुर में तो प्रधानमंत्री जी के पेटेंटेड ‘डबल इंजन’ की सरकार चल रही है इसके बावजूद हिंसा का बढ़ता स्तर और सरकारी मशीनरी का सम्पूर्णता में ढह जाना, केंद्र और राज्य दोनो की असक्षमता का ही प्रदर्शन है। वास्तविकता तो यह है कि भारत की जनता के साथ-साथ यह बात उन राजनैतिक और चुनावी विश्लेषकों को भी समझनी है जो लोकतंत्र को चुनावतंत्र समझने वाले नेताओं को “24@7 राजनीति करने वाले सक्रिय और प्रोफेशनल राजनेता” कहते थकते नहीं हैं।
विश्लेषक ‘निष्पक्षता’ के दबाव में नृशंसता को भूल जाने की प्रवृत्ति के शिकार हैं। देश के हर जरूरी मुद्दे पर चुप रहने वाले नेतृत्व की सराहना का कोई भी फ्रंट निंदनीय है क्योंकि जिस तंत्र और सरकार में जनता की आवाज को अनसुना करने की प्रवृत्ति जन्म ले चुकी हो उसे लोकतान्त्रिक नेतृत्व की संज्ञा से बाहर कर दिया जाना चाहिए।
भारत का कितना भी प्रतिष्ठित व्यक्ति या बुद्धिजीवी हो और वह कितना भी जरूरी मुद्दा उठा रहा हो वर्तमान केंद्र सरकार उसे सुनना ही नहीं चाहती। मणिपुर में जारी हिंसा को रोकने में लगातार विफल रही सरकार को संबोधित करते हुए 550 से अधिक नागरिक समाज समूहों, कार्यकर्ताओं औरवकीलों ने प्रधानमंत्री से मणिपुर हिंसा पर चुप्पी तोड़ने की मांग की है। नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए पत्र में कहा गया है कि “मणिपुर आज केंद्र और राज्य में भाजपा और उसकी सरकारों द्वारा निभाई गई विभाजनकारी राजनीति के कारण बहुत बड़े हिस्से में जल रहा है।” गृहयुद्ध की आशंका जताते हुए समूह द्वारा कहा गया है कि भाजपा को राजनैतिक लाभ से पहले राष्ट्रीय एकता और अखंडता को ध्यान में रखना चाहिए।
वर्तमान हिंसक संघर्ष में कुकी-जोमी समुदाय और मेइती दोनो पक्षों में मौतें हुई हैं लेकिन सर्वाधिक क्षति कुकी जनजाति के लोगों को हुई है। मणिपुर को करीब से जानने वाले लोगों का मानना है कि वर्तमान में कुकियों के खिलाफ सबसे खराब हिंसा अराम्बाई तेंगगोल और मेइतेई लेपुन जैसे सशस्त्र मेइती बहुसंख्यक समूहों द्वारा की गई है और यह भी कि मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के इन दोनो समूहों के साथ निकटता के संबंध हैं। इन दोनो मेइती समूहों द्वारा कुकी जनजाति को ‘अवैध बाहरी लोग’ और ‘नार्को आतंकवादी’ के रूप में चिन्हित किया गया है।
ऐसी बहुत सी घटनाएं घट रही हैं और बीते कुछ दिनों में घट चुकी हैं जिन पर यदि सही समय पर कार्यवाही की जाती तो सरकार पर लोगों का भरोसा बनता लेकिन सरकार द्वारा कुछ नहीं किया गया। हाल में ही मेइतेई लेपुन समूह के प्रमुख ने एक साक्षात्कार में कहा कि विवादित क्षेत्रों से कुकी जनजाति का ‘सफाया’ किया जाएगा। जब इस समूह के लोग कुकी जनजाति के लोगों को ‘अवैध’, ‘बाहरी’ और मणिपुर में ‘किरायेदार’ व ‘मणिपुर के लिए स्वदेशी नहीं’ जैसे तमगे लगा रहे थे तब राज्य और केंद्र सरकार को सचेत होकर इसको रोकना चाहिए था। लेकिन मुद्दा यह है कि ऐसी अनर्गल बातों को कौन रोकता जब स्वयं मणिपुर के मुख्यमंत्री एक कुकी मानवाधिकार कार्यकर्ता को विदेशी कहकर म्यांमार से जोड़ चुके हैं।
मणिपुर में हिंसा की आग अब सिर्फ आम जनमानस तक ही सीमित नहीं है इसकी लपटें अब सांसदों और मंत्रियों तक पहुँच रही है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्रीऔर मणिपुर से सांसद डॉ. राजकुमार रंजन सिंह के घर में शरारती तत्वों ने आग लगा दी। मंत्री जी मेइती समुदाय से संबंधित हैं।
इस घटना के पहले मणिपुर राज्य सरकार में एकमात्र महिला मंत्री और कुकी समुदाय से संबंधित नेमचा किपगेन के सरकारी आवास को आग लगा दी गई। जहां मंत्री और सांसद सुरक्षित नहीं वहाँ अल्पसंख्यक समुदाय और महिला बच्चों के साथ कैसा बर्ताव हो रहा होगा इसकी कल्पना मात्र से डर लगता है। लेकिन ऐसी भयावह घटना के बाद भी प्रधानमंत्री की चुप्पी कायम है। विदेश राज्य मंत्री ने अपने घर में लगाई गई आग के बाद जो कहा वो राज्य की डबल इंजन सरकार की कार्यक्षमता को बताता है। ANIसे बात चीत करते हुए उन्होंने कहा कि “....सब कुछ सामान्य था और अचानक भीड़...आ गई और हमला कर दिया, मुझे बताया गया। फायर ब्रिगेड भी इलाके में नहीं घुस सकती, लोगों ने जाम लगा दिया। पता नहीं क्यों, किस कारण से मुझ पर हमला कर रहे हैं... जलाना... पेट्रोल फेंकना, मेरी भी जान लेने की कोशिश लग रही है... मणिपुर राज्य की कानून-व्यवस्था पूरी तरह से फेल हो चुकी है....”। एक लोकल नेता जो केंद्र में मंत्री भी है, वे कुछ कह रहे हैं कम से कम उनको तो सुन लेना चाहिए था।
आवाजें तो और भी हैं लेकिन देश का सबसे बड़ा ‘कान’ जिसे सबकी और सबकुछ सुनने की बड़ी जिम्मेदारी दी गई है वह अपनी सारी ऊर्जा खामोशी में खर्च कर रहा है।
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असल में महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी में जबरदस्त निरन्तरता है।
भारत के प्रसिद्ध रंगमंच व्यक्तित्व रतन थियमने कहा है कि "एक मजबूत राजनीतिक इच्छा की आवश्यकता है"। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी से लगभग हताश हो चुके थियम ने कहा कि "प्रधानमंत्री को बोलना चाहिए और एक समाधान देना चाहिए"। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में वो कहते हैं कि यदि जल्द ही इस पर कोई समाधान नहीं पेश किया गया तो यह एक आपदा के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। थियम ने मणिपुर पर केंद्र द्वारा गठित एक शांति समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है।
राज्य में इंटरनेट बंद है और मुख्यधारा की मीडिया द्वारा न के बराबर रिपोर्टिंग हो रही है। इसके बावजूद जो खबरें और वीडिओज़ आ रहे हैं उससे पता चलता है कि राज्य के हालात बहुत खराब हैं। हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के अनुसार भारत की केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने मणिपुर पुलिस को सूचित किया कि शरारती तत्व पुलिस कमांडो की वर्दी की व्यवस्था कर रहे हैंऔर इसके माध्यम से वे राज्य में समन्वित हमले और हिंसा को भड़काने के लिए उनका इस्तेमाल कर सकते हैं। हर तरफ अविश्वास का माहौल है और राज्य सरकार व केंद्र की मोदी सरकार भरोसे को विकसित नहीं कर पा रही है। एक तरफ एक कुकी मिलिटन्ट का कहना है कि भाजपा के उत्तर पूर्वी राज्य से एक मुख्यमंत्री और एक आरएसएस के बड़े पदाधिकारी मणिपुर में सरकार बनवाने और सीटें जीतने में कुकी मिलिटन्ट का सहयोग ले चुके हैं तो दूसरी तरफ एक मेइती राजनीतिक संगठन के सलाहकार जगत थोडम द्वारा लिखे गए लेख में दावा किया गया है कि असम राइफल्स म्यांमार स्थित कुकी "आतंकवादियों" की रक्षा कर रही थी। इस संबंध में इस लेख के लिए असम राइफल्स ने जगत थोडम के खिलाफ देशद्रोह के कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराई है।
एक समुदाय का दूसरे समुदाय पर आरोप प्रत्यारोप से अविश्वास की खाई बढ़ती ही जा रही है। केंद्र सरकार, जिसे इस खाई को पाटना है वह सिर्फ चुप रहकर सब भूल जाना चाहती है। अपने परिवार और समुदाय के लोगों को खो चुकी एक प्रमुख मेइती बुद्धिजीवी बिनालक्ष्मी नेपरामने द वायर के लिए करण थापर को दिए अपने साक्षात्कार में प्रधानमंत्री की चुप्पी पर हताशा भरे शब्दों में रोष के साथ कहा कि “प्रधानमंत्री जी आपकी हिम्मत कैसे हुई चुप रहने की!” प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा करती हुई नेपराम कहती हैं कि “पीएम की चुप्पी दिखाती है कि वह मिलीभगत कर रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता के तौर पर वे चुप क्यों हैं? यह उनकी स्थिति के अनुरूप नहीं है... नैतिक जिम्मेदारी लें और खुद इस्तीफा दें”। नेपराम ‘यह समय मणिपुर के इतिहास का सबसे काला समय है’ कहते हुए रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समितिऔर संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के सैनिकों पर भी विचार करने का सुझाव दे डालती हैं।
यह सुझाव वैसे तो भारत की संप्रभुता के खिलाफ है लेकिन यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे ही मनचाहे तरीके से चुप रहने के अपने दृष्टिकोण में बदलाव नहीं ला पाए तो ऐसी आवाजें और बढ़ेंगी जोकि भारत की संप्रभुता के लिए ठीक नहीं।
अखिल भारतीय कॉंग्रेस कमेटी के महासचिव केसी वेणुगोपाल सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग कर रहे हैं। उनका भी प्रश्न यही है कि केंद्र सरकार के मंत्री का घर भी जला दिया गया, इसके बावजूद क्यों पीएम मोदी कुछ नहीं बोल रहे हैं? उन्होंने ट्वीट करके बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “मणिपुर पिछले 40 दिनों से जल रहा है और संघर्ष नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है। कानून के शासन का कोई आभास नहीं है और जो सत्ता में हैं वे स्वयं नरसंहारों का नेतृत्व कर रहे हैं और हथियारों और गोला-बारूद के साथ उग्रवादियों की मदद कर रहे हैं”।
सरकार की कार्यशैली पर प्रश्न सिर्फ बुद्धिजीवी, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ता समूह और विपक्ष से ही नहीं आ रहे हैं, इन प्रश्नों का आगमन उन लोगों की तरफ से भी हो रहा है जो देश की रक्षा सेवाओं के उच्चतम पदों पर रह चुके हैं। मणिपुर में रह रहे एक सेवानिवृत्त, लेफ्टिनेंट जनरल निशिकांत सिंह ने बहुत ही निराशा और चिंता में कहा कि “मैं मणिपुर का एक साधारण भारतीय हूँ जो सेवानिवृत्त जीवन जी रहा है। राज्य अब 'स्टेटलेस' है। लीबिया, लेबनान, नाइजीरिया, सीरिया, आदि जैसे देशों की तरह यहाँ भी किसी के भी द्वारा जीवन और संपत्ति को कभी भी नष्ट किया जा सकता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि मणिपुर को उसके हाल पर बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया गया है। क्या कोई सुन रहा है?” लेफ्टिनेंट जनरल की चिंता भी यही है कि भारत का एक राज्य लीबिया और सीरिया जैसे हालातों में पहुँचने वाला है लेकिन कोई सुन नहीं रहा है! उन्हे ऐसा इसलिए लग रहा है क्योंकि केंद्र की सत्ता पर बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं! वो कुछ भी ऐसा नहीं बोल रहे हैं जिससे प्रदेश की जनता को साहस मिल सके!
मणिपुर से उठी इस बेहद संवेदनशील आवाज को आवाज दिया कारगिल युद्ध के दौरान भारत के आर्मी चीफ रहे वी.पी. मलिक ने। निशिकांत सिंह के ट्वीट पर अपनी बात को जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि “मणिपुर के एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल का एक असाधारण दुखद कॉल। मणिपुर में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर उच्चतम स्तर पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है”।
समस्याओं की जड़ में केन्द्रीय नेतृत्व का हर जरूरी मुद्दे पर चुप रह जाना है। आमजनता मांग कर रही थी नरेंद्र मोदी नहीं बोले, नागरिक समाज ने पूछा तब भी नरेंद्र मोदी नहीं बोले, विपक्ष ने पूछा तब भी नहीं बोले लेकिन अब तो फौज के सर्वोच्च अधिकारी और उनके स्वयं के प्रशंसक अपने अनुभव से बोल रहे हैं इसके बावजूद नरेंद्र मोदी का न बोलना कहीं न कहीं यह साबित करता है कि पीएम मोदी के पास इस समस्या से निपटने का कोई रास्ता नहीं सिवाय चुप रहने और समय गुजर जाने के। इस असक्षमता के लिए किसी को तो जिम्मेदारी लेनी होगी। यौन शोषण का आरोपी खुलेआम बचाया जा रहा है, ट्रेन दुर्घटना में किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली और अब मणिपुर की हिंसा को भी ‘चुप्पी’ साध के सुलझा लेने का हुनर देश के लिए घातक है।
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अक्षमता से बेहतर है इस्तीफा! प्रधानमंत्री जी को इस्तीफ़ा देने पर विचार करना चाहिए, और किसी अन्य जिम्मेदारी निभाने वाले व्यक्ति को बुलाकर मौका देना चाहिए, देश की जनता से कहना चाहिए कि मैं प्रधानमंत्री जैसे पद के लायक नहीं हूँ।
क्योंकि समस्या बहुत बड़ी है और समस्या को सुलझाने के तरीकों में सबसे अहम है समस्या को सुलझाने के प्रति ईमानदार रवैया और उच्च दर्जे की राजनैतिक इच्छाशक्ति। इसके अतिरिक्त भारत का संविधान अनुच्छेद-355 के तहत केंद्र को शक्ति प्रदान करता है कि वह उचित कार्यवाही कर सके। इस अनुच्छेद का इस्तेमाल कैसे किया जाए इसकी अनुशंसा केंद्र-राज्य संबंधों पर बने पुंछी कमीशन द्वारा 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार के समय दे दी गई थी। एक पूर्ण बहुमत की सरकार न होने के कारण यूपीए सरकार इन अनुसंशाओं को लागू नहीं कर सकी लेकिन 2014 के बाद आयी नरेंद्र मोदी सरकार के पास मौका था कि वह इस आयोग की सिफारिशों पर विचार कर उसे लागू करे लेकिन दुखद कि नरेंद्र मोदी सरकार इन अनुसंशाओं पर चुप्पी साधकर बैठी रही और कुछ भी ठोस विचार नहीं कर पाई।
पुंछी कमीशन की अनुशंसा के पॉइंट 2 (k) के अनुसार "परिस्थितिअनुसार राज्यों में केंद्रीय बलों की स्वत: तैनाती के उद्देश्य के लिए अनुच्छेद-355 के तहत एक सहायक कानून की व्यवहार्यता”।इन सिफारिशों ने अनुच्छेद-355 के तहत "स्थानीयकृत आपातकालीन प्रावधानों" को अपनाने की सिफारिश की, जिसके तहत आवश्यकता पड़ने पर केंद्रीय शासन के अंतर्गत एक जिले या एक जिले का कोई हिस्सा भी लाया जा सके। अगर आज ऐसा प्रावधान उपलब्ध होता तो इम्फाल वैली और उसके आसपास के कुछ जिलों में इसे इस्तेमाल करके केन्द्रीय बलों की स्वतः तैनाती की व्यवस्था हो जाती जिससे मणिपुर के हालात इस कदर खराब न होते।
लेकिन राज्यों के नागरिकों को सुरक्षा देने की अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता को केंद्र सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया। भारतीय राज्यों में राज्य के नागरिक नहीं भारत के नागरिक होते हैं। आधुनिक राष्ट्रवाद में जातीयता और धार्मिकता के विपरीत नागरिकता एक सर्वश्रेष्ठ पहचान है। इसके बावजूद सैकड़ों बेगुनाह भारतीय नागरिकों की हत्या को रोकने में विफल सरकार को भारत सरकार नहीं रहना चाहिए, इसे अब बदलना चाहिए।