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मणिपुरः मेइती-कुकी को अलग करने की मांग के बीच हिंसा, 11 मरे

मणिपुरः मेइती-कुकी को अलग करने की मांग के बीच हिंसा, 11 मरे

मणिपुर में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। इस बीच वहां मेइती और कुकी-ज़ो समुदायों को अलग-अलग करने की मांग भी उठी है। वहां के एक जनजातीय संगठन ने सरकार को लिखे पत्र में कहा है कि इस समस्या का एकमात्र समाधान दोनों समुदायों को अलग-अलग करना है।

मणिपुर में मेइती और कुकी-ज़ो समुदायों को अलग-अलग करने की मांग के बीच राज्य में जारी हिंसा के दौरान फिर 11 लोग मारे गए हैं और 10 लोग घायल हो गए हैं। हिंसा की ताजा घटना इंफाल पूर्व और कांगपोकपी जिलों के बीच बॉर्डर पर स्थित अगिजंग गांव में मंगलवार रात 10 से 10:30 बजे के बीच हुई।

क्या है मांग

इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने मणिपुर की राज्यपाल अनुसूया उइके को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य में 3 मई से जारी हिंसा का एकमात्र समाधान मेइती और कुकी-ज़ो समुदायों को पूरी तरह से अलग करना है। दो समुदायों के बीच अविश्वास सारी सीमाओं को पार कर गया है, जिसमें कोई समझौता कारगर नहीं होगा।

ITLF फोरम मणिपुर के लमका जिले में मान्यता प्राप्त जनजातियों का समूह है। फोरम ने कहा कि कुकी-ज़ो समुदाय मेइती और मणिपुर की सांप्रदायिक सरकार द्वारा जातीय सफाई अभियान की वजह से चुनौतीपूर्ण समय का सामना कर रहे हैं। 

पूर्वोत्तर राज्य 3 मई से एक युद्ध क्षेत्र में बदल गया है। मेइती मणिपुर में बहुमत में हैं। वो अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। जिसका आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं। ITLF के पत्र में कहा गया है कि 40 दिनों से अधिक समय से हिंसा हो रही है, 160 गांवों में 4500 घरों को जला दिया गया है, जिससे लगभग 36,000 लोग बेघर हो गए हैं। पत्र में आरोप लगाया है कि राज्य में 253 चर्चों को जला दिया गया और हमारे हजारों कूकी-ज़ो लोग देश भर में विभिन्न स्थानों पर स्थानांतरित हो रहे हैं।

फोरम ने कहा कि अगर राज्यपाल राहत केंद्रों में जाकर विस्थापित लोगों से बातचीत करती हैं, तो उन्हें एक नया नजरिया मिलेगा और आदिवासी समुदायों की दुर्दशा के बारे में जानकारी मिलेगी। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और उनके "कट्टर समर्थकों" पर राज्य को आदिवासी समुदायों के प्रति "असहिष्णुता" की ओर धकेलने का आरोप लगाते हुए, ITLF ने कहा कि कुकी-ज़ो लोगों पर हमले सरकारी "मार्गदर्शन" में किए जा रहे हैं। मणिपुर पुलिस कमांडो, आईआरबी और एमआर की ज्यादतियों ने इसे साम्प्रदायिक राज्य बना दिया है।

ITLF ने सरकार द्वारा कुकी-ज़ो लोगों को 'अवैध अप्रवासी,' 'विदेशी,' 'पोस्ता बोने वाले,' 'दवाओं के सौदागर,' 'वन अतिक्रमणकारी,' 'किरायेदार,' 'आतंकवादी' कहने की निन्दा की है।

पत्र में कहा गया है कि कुकी-ज़ो के लोगों के लिए अब इम्फाल घाटी में वापस जाना अकल्पनीय है। इसलिए, अंतिम समाधान यह है कि 'कनेक्टेड' समुदायों को अलग किया जाए ताकि उन्हें पड़ोसियों के रूप में रहने में सक्षम बनाया जा सके। 

फोरम ने यह भी दावा किया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की यात्रा के बाद से, "55 गांवों को जला दिया गया, 11 से अधिक लोगों की जान चली गई।" इसमें कहा गया है कि कांगचुप के गाँव जो विस्थापित कुकी-ज़ो ग्रामीणों द्वारा छोड़े गए थे, अब मेइती लोगों के कब्जे में हैं।


क्या हुआ गांव में

अगिजंग गांव में हमलावरों का मुकाबला करने के लिए सुरक्षा बलों के इलाके में पहुंचने के बाद भारी गोलाबारी हुई। गांव को चारों तरफ से घेर लिया गया था। पुलिस ने बताया कि सभी 10 घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां एक की हालत गंभीर बताई जा रही है।” असम राइफल्स पर इस क्षेत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी हैं, जहां से ताजा हत्याओं की सूचना मिली है। पुलिस ने कहा कि इलाके में अब स्थिति नियंत्रण में है।

मणिपुर में एक महीने से ज्यादा समय से हिंसा चल रही है। इंफाल घाटी में प्रमुख समुदाय मेइती, आदिवासी कुकी, जो ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।

हाल ही में एक याचिका पर अदालत ने मेइती लोगों को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया देने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ कुकी लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया, उसी दौरान हिंसा भड़की। इस हिंसा ने फिर पूरे राज्य को तेजी से अपनी चपेट में ले लिया। अधिकारियों ने कई जगह कर्फ्यू लगा दिया और इंटरनेट बंद कर दिया। बढ़ती झड़पों के बीच राज्य में अतिरिक्त सुरक्षा बलों को भेजा गया है। 

मेइती और कुकी समुदायों के प्रमुख नागरिक समाज संगठनों ने सोमवार को उस शांति समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया, जिसका गठन केंद्र सरकार ने राज्य में शांति कायम करने के लिए किया है। 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 1 जून को तनाव कम करने के उपायों के तहत पैनल के गठन की घोषणा की थी। उससे पहले अमित शाह ने राज्य का दौरा किया, यहां तीन दिनों तक रहे। कई बैठकों में समीक्षा की। लेकिन उनके जाने के बाद मणिपुर में हिंसा फिर बढ़ गई जो रुकने का नाम नहीं ले रही है।

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