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मणिपुरः सच से बौखलाई सरकार ने एडिटर्स गिल्ड के लोगों पर FIR कराई 

मणिपुरः सच से बौखलाई सरकार ने एडिटर्स गिल्ड के लोगों पर FIR कराई 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने मणिपुर की जातीय हिंसा पर मीडिया कवरेज को लेकर एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट जारी की तो मणिपुर सरकार ने गिल्ड के अध्यक्ष और तीन सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। देश के तमाम पत्रकार संगठनों ने इसकी निन्दा की है।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने मणिपुर में मीडिया कवरेज की सच्चाई अपनी रिपोर्ट में बताई है। लेकिन वहां के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह कुछ और ही बयान दे रहे हैं। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा कि गिल्ड के सदस्य 'मणिपुर राज्य में और अधिक झड़पें पैदा करने की कोशिश कर रहे थे' और 'जहर उगलने आए थे।' एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया देश के पत्रकारों का प्रतिष्ठित संगठन है। इसके सदस्य अधिकतर संपादक हैं। लेकिन मुख्यमंत्री उन्हें कुछ और साबित करने पर जुटे हैं। 

यहां जारी एक बयान में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने एफआईआर वापस लेने की मांग की है। पीसीआई ने कहा 'यह राज्य में शांति बहाल करने के उपाय करने के बजाय मैसेंजर (संदेशवाहक) को ही गोली मारने का मामला है। हम मांग करते हैं कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और बाकी पदाधिकारियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर फौरन वापस ली जाए या रद्द की जाए।

क्या कहा एडिटर्स गिल्ड ने

मणिपुर में जातीय हिंसा के मीडिया कवरेज पर अपनी रिपोर्ट में, ईजीआई ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्य में पत्रकारों ने एकतरफा रिपोर्ट लिखी। इंटरनेट प्रतिबंध ने एक-दूसरे के साथ बातचीत करने की उनकी क्षमता को प्रभावित किया। पत्रकार ज्यादातर सरकार की बताई गई सूचना पर निर्भर थे। राज्य सरकार ने जातीय संघर्ष में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाई। गिल्ड की तीन सदस्यीय टीम में ईजीआई सदस्य सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर शामिल थे। उन्होंने बताया कि ऐसा लगता है कि मणिपुर में मीडिया 'मैतेई मीडिया' बन गया है, जहां संपादक एक-दूसरे से परामर्श कर रहे थे और किसी घटना की रिपोर्ट करने के लिए एक सामान्य कहानी पर सहमत हो रहे थे। .

मणिपुर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की कई धाराओं और सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए का इस्तेमाल करते हुए एफआईआर दर्ज की है। हालांकि मणिपुर पुलिस को शायद यह जानकारी नहीं है कि धारा 66ए को सुप्रीम कोर्ट रद्द कर चुका है।

रिपोर्ट में कहा गया, 'राज्य सरकार ने मणिपुर पुलिस को असम राइफल्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देकर इस अपमान का मौन समर्थन किया, जिससे पता चलता है कि राज्य का एक हाथ नहीं जानता था कि दूसरा क्या कर रहा था या यह एक जानबूझकर की गई कार्रवाई थी।'

एडिटर्स गिल्ड ने कहा- 'स्पष्ट संकेत हैं कि संघर्ष के दौरान राज्य का नेतृत्व पक्षपातपूर्ण हो गया। रिपोर्ट में कहा गया, 'इसे जातीय संघर्ष में पक्ष लेने से बचना चाहिए था, लेकिन एक लोकतांत्रिक सरकार के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में विफल रही, जिसे पूरे राज्य का प्रतिनिधित्व करना चाहिए था।'

महिला पत्रकारों के संगठन आईडब्ल्यूपीसी ने कहा कि ईजीआई, जो लगातार मीडिया के अधिकारों के लिए खड़ा रहा है, के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए अनुचित है। आईडब्ल्यूपीसी मणिपुर सरकार से एफआईआर रद्द करने की मांग करती है।

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