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बेअदबी कांड: सबसे ऊपर मनुष्य है, उससे बड़ा सत्य कुछ और नहीं

बेअदबी कांड: सबसे ऊपर मनुष्य है, उससे बड़ा सत्य कुछ और नहीं

स्वर्ण मंदिर में हत्या की पुरजोर निंदा करने में राजनीतिक दल पीछे क्यों हैं? उन्हें किस बात का डर है?

शनिवार को स्वर्ण मंदिर अपवित्र किया गया। गुरुओं के अनुयायियों के द्वारा। उन्होंने उनके बंदे की जान ली, इस खुदाई के मालिक की एक रचना को तोड़ दिया। एक इंसान का खून इंसानों ने उस मुक़द्दस ज़मीन पर गिराया जो सिवा उसको, जो सबके ऊपर है और सबसे बड़ा है, याद करने के और किसी के लिए नहीं। कम से कम इंसान की अपनी शान या ताकत दिखलाने के लिए तो नहीं ही। लेकिन शनिवार को यही किया गया जब गुरु के बन्दों ने एक दूसरे शख्स को, जो गुरु का ही बंदा होगा, पीट पीटकर मार डाला। 

इस अंदेशे में कि वह वहाँ पवित्र ग्रंथ की बेअदबी करने के इरादे से गया था। मैं अखबारों को पलट रहा था जानने के लिए कि जो मारा गया उसका नाम क्या था। सिर्फ एक समाचार मंच पर मालूम हुआ कि वह उत्तर प्रदेश का था लेकिन कहीं उसका नाम नहीं। 

चंडीगढ़ से प्रकाशित होनेवाले अखबार ट्रिब्यून ने लिखा कि जब रोज़ाना की शाम की प्रार्थना, रेहरास पाठ के समय अचानक बिखरे बालों वाला एक शख्स उस बाड़ को फांद गया जिसके अंदर गुरु ग्रन्थ साहब का 'परकाश' विराजमान है। 

अखबार ने खबर की शुरुआत इस तरह की है कि 'क्रुद्ध 'संगत ने एक व्यक्ति  मार डाला जो कथित रूप से गर्भ गृह में पवित्र ग्रंथ की बेअदबी करनेवाला था। वह पकड़ लिया गया और उसे बगल के शिरोमणि गुरद्वारा प्रबंधक समिति के दफ़्तर में पूछताछ के लिए ले जाया गया जहाँ श्रद्धालुओं ने उसकी पीट पीट कर हत्या कर दी। 

अखबार लिखता है कि जब वह बाड़ फांद गया तब भी पाठ चलता रहा। उसने पवित्र कृपाण उठा ली थी। पाठ चलता रहा। उसे पकड़ लिया गया था। उसने पवित्र ग्रंथ के साथ अब तक कुछ नहीं किया था। कायदे से उसे पुलिस के हवाले किया जाना चाहिए था। उसके वर्णन से मालूम होता है कि वह विक्षिप्त रहा होगा। 

 - Satya Hindi

निंदा करने में पीछे क्यों?

एक हत्या हुई। पवित्र स्वर्ण मंदिर में। क्या हत्यारे पकड़े गए? क्या सरकार ने इस हत्या की निंदा की? क्या दूसरे राजनीतिक दलों ने हत्या की निंदा की? मैं अखबार पलटता गया। पंजाब के मुख्यमंत्री ने गर्भगृह में पवित्र ग्रंथ की बेअदबी की, इस कोशिश की तीव्र भर्त्सना की और इस मामले की तह तक जाने का आश्वासन दिया। 

बाकी सारे दलों ने भी एक दूसरे से प्रतियोगिता करते हुए पवित्र ग्रंथ की बेअदबी की साजिश का पता लगाने की बात कही। किसी ने स्वर्ण मंदिर में हत्या की निंदा नहीं की। मानो यह स्वाभाविक था।  

क्या अपने धर्म की हिफ़ाजत करनेवाले वीर बाँकुरों ने, जिन्होंने उस निहत्थे व्यक्ति को मिलकर मार डाला, खुद सामने आकर कहा कि उन्होंने यह महान काम किया है? हो सकता है कि वे ऐसा करें भी क्योंकि आजकल भारत में अपने धर्म की और राष्ट्र की महिमा की रक्षा के नाम पर निहत्थे लोगों को मार डालना गौरव का काम हो गया है जिसकी फिल्म बनाई जाती है और जिसका बड़ा दर्शक समूह है। वह खुद हत्या न करे लेकिन हत्या में दर्शक के तौर पर शामिल होकर उसका आनंद लेता है और इस तरह उसमें शामिल भी होता है।  

श्रीलंकाई व्यक्ति की हत्या 

कुछ ही रोज हुए, पाकिस्तान में सैकड़ों, बल्कि हजारों लोगों की भीड़ ने एक श्रीलंका के व्यक्ति को यही आरोप लगाकर मार डाला कि उसने एक पोस्टर फाड़ा था जिसमें पवित्र कुरआन की आयतें लिखी थीं। इस तरह उसने पवित्र शब्द के साथ बेअदबी की। पाक किताब या पैगंबर की बेहुरमती के लिए पाकिस्तान में कानून है और सख्त सजा है। 

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एक बार आप पर इल्जाम लग जाए तो आपका बचना मुश्किल है। हम सबने ख़ौफ़ के साथ यह खबर पढ़ी और कहा, “हम ऐसे समाज नहीं। यह कोई और हिंसक समाज है।”  

भारत में ऐसा कानून नहीं है, भले ही धार्मिक विद्वेष फैलाने के लिए कानून है और सजा भी है। 

भारत के सबसे नए और सबसे उदार माने जाने वाले धर्म में ग्रंथ की पवित्रता एक बड़ा सवाल है। हर कुछ दिन के बाद बेअदबी का आरोप सुनाई पड़ता है। सारे राजनीतिक दल उसमें एक दूसरे से प्रतियोगिता करने लगते हैं। उस वक्त की सरकार पर आरोप लगाने लगते हैं कि वह पवित्र ग्रंथ की रक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। 

अभी पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष ने इसी को सबसे बड़ा मसला बना रखा है। हर वक्त वे एक पुरानी बेअदबी की घटना का जिक्र करके उसके पीछे की साजिश का पता न कर पाने के लिए अपनी ही सरकार पर हमला करते रहते हैं। 

पंजाब में किसी में साहस नहीं कि वह इस बेअदबी की राजनीति पर एक शब्द बोल सके। क्योंकि सब मानते हैं कि सिखों के लिए यह बहुत संवेदनशील मसला है। कोई यह नहीं कहता कि अगर किताब पवित्र है तो उसकी बेअदबी कोई इंसान चाहकर भी नहीं कर सकता।

हमें मालूम है कि ऐसी स्थितियाँ होती हैं जिनमें पवित्र प्रतीकों के साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है. उसका मकसद उन्हें माननेवालों को अपमानित करना होता है। जैसे अभी त्रिपुरा में मस्जिदों को और कुरआन को जलाए जाने की घटना। उसके पहले दिल्ली में भी पिछले साल की हिंसा में भी यह देखा गया। मकसद मुसलमानों को नीचा दिखलाना था। 

पाकिस्तान में  कुरआन या मोहम्मद साहब की बेअदबी की हिमाकत कौन कर सकता है? जाहिर है, इस तरह का कानून सिर्फ अल्पसंख्यकों पर हिंसा का एक जायज़ रास्ता है। 

वैसे ही पंजाब में पवित्र गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी कोई सिरफिरा ही कर सकता है। और अगर वह सिरफिरा है तो उसपर दुनियावी कानून लागू नहीं होते। 

पंजाब में यह बेअदबी की राजनीति अपनी हर अति पार कर गई है और वक्त है कि कोई गुरु का बंदा हिम्मत करके इसके बारे में कुछ बोले। राजनीतिक दलों की कायरता, चालाकी तो साफ़ है। इससे यह भी मालूम होता है कि वे अपने मतदाताओं को मूर्ख समझते हैं कि वे इसे सबसे बड़ा मुद्दा मानकर उनके साथ हो जाएँगे। 

धार्मिक प्रतीकों की बेअदबी या दूषण कभी यूरोप में एक बड़ा मुद्दा था। धीरे धीरे उसने खुद को इससे मुक्त किया। लेकिन अभी भी 30 से ज़्यादा मुल्कों में यह कानून की किताब में जुर्म के तौर पर दर्ज है।

हम देख चुके हैं और भीष्म साहनी ने 'तमस' में इसका सजीव चित्रण किया है कि किस तरह सुअर के गोश्त के मस्जिद को नापाक करने और गाय के मांस से मंदिर को अपवित्र करने की राजनीति ने किस तरह एक समाज को तबाह कर दिया। ताजिए से पवित्र पीपल की डाल नहीं छूनी चाहिए और ताजिए का सर भी नहीं झुकना चाहिए, इसका मनोरंजक वर्णन इस्मत चुगताई ने अपनी आत्मकथा में किया है। हमारे जीवन में इसके कितने किस्से हैं। 

लेकिन हम जानते हैं कि जब हम अपने धर्म की पवित्रता की रक्षा का दावा करते हैं तो वास्तव में हम अपना दबदबा कायम करना चाहते हैं। 

धार्मिक समाज जबतक इसकी विसंगति पर चर्चा नहीं करेंगे और दूषण के नाम पर इंसानों की इस अहमन्यता पर कि वे खुदा या ईश्वर के रक्षक रहें, विचार नहीं करेंगे, बेअदबी या दूषण अपने समाज में कमजोरों, विशेषकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा का एक हथियार बना रहेगा। 

पंजाब बहुत तरह की चुनौतियाँ झेल रहा है। लेकिन उसके सामाजिक मनोविज्ञान में इस विकृति पर सिख समाज के प्रबुद्ध लोगों को, बुद्धिजीवियों को बात शुरू करनी पड़ेगी।

भीड़ देगी सजा! 

यह बहुत तकलीफ की बात है कि पंजाब के उपमुख्यमंत्री को छोड़कर किसी राजनेता, राजनीतिक दल ने हत्या के अपराध की बात ही नहीं की। अगर यह सिखों के लिए जायज़ है तो बाकियों के लिए क्यों नहीं! फिर पाकिस्तान में यह क्यों गलत है? फिर धर्म ही क्यों, राष्ट्र के अपमान का आरोप लगाकर, वह गाय के नाम पर, कभी वंदे मातरम या भारत माता का जय न बोलकर राष्ट्र के अपमान के नाम पर जो लोग हत्या या हिंसा करते हैं, वह भी जायज़ है! भारत में पाकिस्तान का झंडा या पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा भारत की बेअदबी है। उसकी सज़ा भी भीड़ को देने की इजाजत है। 

जब तक हम पवित्रता की इस ग्रंथि से खुद को मुक्त नहीं करेंगे तब तक समाज से हिंसा को निकालना असम्भव रहेगा। चंडीदास के इस कथन को दुहराएँ कि सबके ऊपर मनुष्य है, उससे बड़ा सत्य कुछ और नहीं।   

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