सियासत की बिसात पर लॉकडाउन बना मोहरा, मोदी-ममता फिर आमने-सामने
तृणमूल शासित पश्चिम बंगाल राज्य सरकार और बीजेपी शासित केंद्र सरकार एक बार फिर आमने-सामने हैं। राजनीतिक घात-प्रतिघात में कोरोना जैसे संवेदनशील मुद्दे को मोहरा बनाने की रणनीति है। कोरोना और इसकी रोकथाम के लिए किए गए लॉकडाउन को इस बार राजनीतिक रस्साकसी के केंद्र में रखा गया है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से पूछा है कि केंद्रीय टीम को बंगाल क्यों भेजा जा रहा है।
केंद्रीय टीमें भेजीं
केंद्र सरकार ने लॉकडाउन प्रावधानों के कथित उल्लंघन की जाँच के लिए दो केंद्रीय टीमें बंगाल भेजने का फ़ैसला किया। ये टीमें कोलकाता, हावड़ा, मिदनापुर पूर्व, उत्तर 24 परगना, कालिम्पोंग, दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी गई हैं।लेकिन पश्चिम बंगाल का कहना है कि केंद्र ने टीम भेजने के पहले राज्य सरकार से कोई सलाह मशविरा नहीं किया। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने जिस तरीके से टीमें भेजी गईं, उस पर ही सवाल उठाया है। उन्होंने एनडीटीवी से कहा,
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‘केंद्रीय टीम भेजने के बारे में हमसे पूछा नहीं गया, बस इसकी जानकारी दी गई। हमें जानकारी देने के 15 मिनट के अंदर ही दो टीमें पहुँच गईं, एक टीम कोलकाता तो दूसरी टीम जलपाईगुड़ी गई है।’
राजीव सिन्हा, मुख्य सचिव, पश्चिम बंगाल
तिलमिलाई राज्य सरकार!
उन्होंने कहा कि राज्य के साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है मानो वह कुछ छिपा रही है। लेकिन इसके साथ ही राजीव सिन्हा ने साफ़ संकेत दे दिया कि राज्य सरकार इन टीमों के साथ सहयोग नहीं करेगी।
मुख्य सचिव ने कहा, ‘जिस तरह वे लोग आए हैं और बीएसएफ़ के लोगों को लेकर फ़ील्ड में उतर गए हैं, हम स्वीकार नहीं कर सकते। हमने उनसे कहा कि पहले वे हमारे पास आएँ, उसके बाद ही ज़रूरत पड़ने पर फ़ील्ड में जाएँ।’
राज्य सरकार की आक्रामकता मुख्यमंत्री के बयान से साफ़ है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘हम कोविड-19 संकट कम करने के लिए केंद्र सरकार के हर रचनात्मक सलाह को मानते हैं, पर केंद्र सरकार जिस तरह दो टीमें भेज रही है, उसका मक़सद साफ़ नहीं है।’
We welcome all constructive support & suggestions, especially from the Central Govt in negating the #Covid19 crisis. However, the basis on which Centre is proposing to deploy IMCTs in select districts across India including few in WB under Disaster Mgmt Act 2005 is unclear.(1/2)
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) April 20, 2020
आरोप क्या हैं?
गृह मंत्रालय की 10 अप्रैल की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि मिठाई की दुकानें खुली रहती हैं, बाज़ारों में भीड़ रहती है, धार्मिक आयोजन हुए हैं, राशन दुकानों पर भीड़ रहती है, जहाँ राजनीतिक दलों के नेता राशन बाँटते दिखे हैं।इसके बाद मुख्यमंत्री ने ठोस कदम उठाए और कहा कि बाज़ार में पुलिस वाले तैनात रहें और सोशल डिस्टैसिंग का पालन करवाएँ।
बीजेपी ने ही किया था उल्लंघन?
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जहाँ तक धार्मिक आयोजन का सवाल है, बीजेपी के लोगों और स्थानीय नेताओं ने रामनवमी के मौके पर राम मंदिरों में भीड़ लगाई और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए। वे नारा लगाते हुए सड़कों पर भी उतर आए थे। वे लोग बड़ी तादाद में थे और पुलिस ने मुश्किल से उन्हें रोका।
पर्यवेक्षकों ने यह सवाल भी उठाया है कि केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में केंद्रीय टीम न भेज कर क्या संकेत दिए हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामनवमी के मौके पर खुद अयोध्या जाकर पूजा अर्चना की थी और उनके साथ बड़ी तादाद में दूसरे भक्त, पार्टी के लोग और सरकार के अफ़सर मोजूद थे।
कर्नाटक क्यों नहीं?
कर्नाटक में तो इससे भी बढ़ कर काम हुए। वहाँ सिद्धालिंगेश्वर मंदिर में रथ यात्रा निकाली गई और इसमें हज़ारों लोगों ने शिरकत की। सैकड़ों लोगों ने रथ की रस्सी खींची, वे उस दौरान एक दूसरे से सटे हुए थे और सोशल डिस्टैंसिंग का ख्याल नहीं रख रहे थे।
इससे भी बड़ी बात तो यह है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा स्वयं उस शादी में मौजूद थे, जिसमें सोशल डिस्टैंसिंग का ख्याल नहीं रखा गया था।
यह शादी थी राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एच. डी. कुमार स्वामी के बेटे और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के पोते की। इस शादी में पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री मौजूद थे और उन्होंने भी सोशल डिस्टैसिंग का कोई ख्याल नहीं रखा।
कई जगहों पर बीजेपी के नेताओं ने अपना जन्मदिन धूमधाम से मनाया, जिसमें बड़ी तादाद में लोग मौजूद थे।
ऐसे में यदि केंद्रीय टीमें पश्चिम बंगाल भेजी जाती हैं और वह भी बग़ैर सलाह मशविरा के और वे बीएसएफ़ के जवानों के साथ फ़ील्ड में उतर जाती हैं तो सवाल उठना लाज़िमी है।