+
कर्नाटक नतीजे बाद ममता का रुख बदला? 'कांग्रेस को समर्थन को तैयार पर...'

कर्नाटक नतीजे बाद ममता का रुख बदला? 'कांग्रेस को समर्थन को तैयार पर...'

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ किसी गठबंधन के प्रति अनिच्छुक दिखती रही कर्नाटक चुनाव नतीजे के बाद क्या ममता बनर्जी के सुर बदल गए?

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने कांग्रेस के प्रति रुख में नरमी का संकेत दिया है। उन्होंने सोमवार को कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस को समर्थन देने को तैयार है। हालाँकि उन्होंने एक शर्त भी जोड़ी है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी 'जहां कांग्रेस मजबूत है, वहां समर्थन देने के लिए तैयार है।'

ममता का यह बयान कांग्रेस द्वारा कर्नाटक विधानसभा चुनाव में निर्णायक जीत के दो दिन बाद आया है। नतीजों के बाद अपने संदेश में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कांग्रेस का ज़िक्र करने से पूरी तरह परहेज किया। इससे कुछ महीने पहले वह कांग्रेस के संदर्भ में ही कहा था कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ेगी। लेकिन हाल में नीतीश कुमार की मुलाक़ात और विपक्षी एकता पर जोर दिए जाने के बाद से ममता के रुख में कुछ बदलाव आया है।

टीएमसी प्रमुख ने सोमवार को कहा, 'कांग्रेस जहां मजबूत है, हम उसका समर्थन करने के लिए तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस को यहां हमारे खिलाफ हर दिन लड़ना बंद करना चाहिए।' कहा जा रहा है कि विपक्षी एकता वार्ता में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक यह तय करना है कि इस तरह के मोर्चे का नेतृत्व कौन करेगा, क्षेत्रीय दलों की बढ़ती मांग के साथ कांग्रेस उन सीटों पर ध्यान केंद्रित करे जहां वह मजबूत है और जहां अन्य पार्टियां मजबूत हैं उन्हें छोड़ दें।

टीएमसी सुप्रीमो ने सोमवार को कहा, 'कांग्रेस जहां भी मजबूत है, 200 सीटें या कुछ और, उन्हें लड़ने दें, हम समर्थन देंगे। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन उन्हें अन्य राजनीतिक दलों का भी समर्थन करना चाहिए। मैं आपको कर्नाटक में समर्थन दे रहा हूं और आप हर दिन मेरे खिलाफ लड़ रहे हैं.. ऐसा नहीं होना चाहिए। यदि आप कुछ अच्छी चीजें प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको किसी क्षेत्र में कुछ त्याग भी करना होगा।'

विपक्षी दलों के बीच सीट समायोजन पर ममता ने कहा, 'यह अंतिम चरण में नहीं है। जब इस पर चर्चा होगी, तो इस पर चर्चा की जाएगी।'

कर्नाटक के नतीजों के बाद अपनी टिप्पणी में ममता ने राज्य के लोगों को सलाम किया था और भाजपा पर निशाना साधा था। हालाँकि उन्होंने कांग्रेस का जिक्र करने से परहेज किया था। उन्होंने कहा था, 'मेरा मानना है कि अहंकार, भेदभावपूर्ण व्यवहार, एजेंसी की राजनीति (केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग) और आम आदमी के खिलाफ भाजपा के अत्याचारों के कारण आज के परिणाम सामने आए हैं। मैं भाजपा के दमनकारी उपायों के खिलाफ मतदान करने और 'भाजपा को वोट नहीं' देने के लिए कर्नाटक के लोगों को सलाम करती हूं... निकट भविष्य में छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं। मुझे यक़ीन है कि भाजपा इन राज्यों में भी हारेगी।'

अप्रैल महीने में विपक्षी एकता के मिशन पर कोलकाता पहुंचे नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव की ममता बनर्जी के साथ बैठक बेहद सफल रही थी। बैठक के बाद नीतीश और ममता ने कहा था कि हम सब एकजुट हैं। कहीं कोई मसला नहीं है।

ममता ने कहा था, 'मैंने नीतीश जी से अनुरोध किया है कि विपक्षी एकता की बैठक बिहार से हो। क्योंकि वहीं से जयप्रकाश नारायण जी ने अपना आंदोलन शुरू किया था। बिहार में बैठक के बाद हम लोग तय करेंगे कि हमें आगे कैसे बढ़ना है। लेकिन उससे पहले हमें यह संदेश देना चाहिए कि हम एकजुट हैं। मैंने पहले भी इसके बारे में कहा है कि मुझे विपक्षी एकता को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। मैं चाहती हूं कि बीजेपी जीरो हो जाए, जो मीडिया के समर्थन से हीरो बन गए हैं।'

नीतीश ने ममता के अलावा, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, नवीन पटनायक जैसे नेताओं से मुलाक़ात की है। इन मुलाक़ातों को लेकर अहम बात यह है कि नीतीश उन दलों से मुलाक़ात कर रहे हैं जिन दलों की कांग्रेस के साथ तालमेल उतनी अच्छी नहीं है। नीतीश ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से भी मुलाक़ात की थी।

नीतीश के साथ बैठक में राहुल गांधी सहित कई नेताओं ने कहा था, 'हमने यहाँ एक ऐतिहासिक बैठक की। बहुत सारे मुद्दों पर चर्चा की गई और हमने फ़ैसला किया कि हम सभी दलों को एकजुट करेंगे और आगामी चुनाव एकजुट तरीके से लड़ेंगे। हमने यह फैसला किया है और हम सभी इसके लिए काम करेंगे।'

समझा जाता है कि नीतीश कुमार ने उन दलों को भी साथ जोड़ने की पहल की है जो कांग्रेस के साथ विपक्षी एकता में आने में असहज महसूस करते हैं। इसमें टीएमसी, आप और समाजवादी पार्टी प्रमुख हैं। इसके अलावा नीतीश एनडीए के क़रीब रहे नवीन पटनायक के बीजेडी जैसे दलों को भी साथ लाने में भूमिका निभा सकते हैं। पहले जहाँ कांग्रेस के प्रयास से 14-15 दल साथ आते दिख रहे थे वहीं नीतीश के प्रयास से यह संख्या 20 के आसपास भी पहुँच सकती है। इतने दलों का एक साथ आना बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है। 

पहले बीजेपी के लिए विपक्षी एकता बड़ी मुश्किल नहीं पेश कर पाई थी तो इसकी कई वजहें रहीं। उनमें से एक तो यही है कि विपक्ष की सभी बड़ी पार्टियाँ एक साथ नहीं आ पाई थीं।

पिछले महीने ही टीएमसी चीफ ममता बनर्जी ने अचानक कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से ख़बर आई थी कि ममता ने अपनी पार्टी की बैठक में कहा था- "अगर राहुल गांधी विपक्ष का चेहरा हैं, तो कोई भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना नहीं बना पाएगा। राहुल गांधी पीएम मोदी की 'सबसे बड़ी टीआरपी' हैं।"

और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने साफ कह दिया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अमेठी और रायबरेली से अपने प्रत्याशी खड़े करेगी। अमेठी और रायबरेली गांधी परिवार की परंपरागत सीट है और सपा हमेशा से उनके सम्मान में यहां से प्रत्याशी नहीं खड़े करती रही है। लेकिन हाल में आए कांग्रेस और सपा में बयानबाजी के बाद से तनाव बढ़ गया था और दोनों दलों के बीच दूरियाँ बढ़ गई थीं। लेकिन अब ये दूरियाँ कम होती दिख रही हैं।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें